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ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह नहीं रहे, 'बॉर्डर' के असली हीरो के बारे में जानें सिर्फ 8 प्वाइंट में

बॉलीवुड फिल्म बॉर्डर में जिस मेजर कुलदीप सिंह की वीरता की कहानी दर्शायी गई उन ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह का शनिवार को मोहाली में निधन हो गया।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 11:14 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 11:55 AM (IST)
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह नहीं रहे, 'बॉर्डर' के असली हीरो के बारे में जानें सिर्फ 8 प्वाइंट में
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह नहीं रहे, 'बॉर्डर' के असली हीरो के बारे में जानें सिर्फ 8 प्वाइंट में

नई दिल्ली, जेएनएन। फिल्म बॉर्डर तो आपने देखी ही होगी। फिल्म में सनी देओल ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की भूमिका निभायी थी। फिल्म में देश के इस बेटे की वीरता को बखूबी दर्शाया गया था। शनिवार 17 नवंबर की सुबह एक दुखद खबर यह आयी कि देश का यह वीर सपूत अब नहीं रहा। सुबह करीब 9 बजे ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह का मोहाली स्थित फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया।

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लोंगेवाल की लड़ाई के दौरान मेजर रहे कुलदीप सिंह ने विषम परिस्थितियों में भी गजब का साहस दिखाया था। दुश्मन की टैंक रेजिमेंट के सामने वह न सिर्फ चंद सैनिकों के साथ टिके रहे, बल्कि दुश्मन को धूल भी चटा दी थी।

साल 1997 में जब फिल्म बॉर्डर रिलीज हुई तो यह बड़ी सुपरहिट साबित हुई थी। लोंगेवाल में जिस तरह से कुलदीप सिंह और उनके चंद सैनिकों की वीरता को इस फिल्म में दर्शाया गया था, ऐसे में फिल्म का सुपरहिट होना लाजमी भी था। साल 1971 में मेजर कुलदीप सिंह ने जिस वीरता का परिचय दिया था, उसे इस फिल्म में बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया था। 1971 के बाद जन्म लेने वाली जिस पीढ़ी ने कुलदीप सिंह का नाम नहीं सुना था, उसे भी इस फिल्म के जरिए ही इस वीर की वीरता के बारे में पता चला।

ये है कुलदीप सिंह की कहानी

  • सिर्फ 22 साल की उम्र में ही कुलदीप सिंह पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में शामिल हो गए थे। ज्ञात हो कि यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी और सम्मानित यूनिट्स में से एक है।
  • कुलदीप सिंह ने साल 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी भाग लिया था। उन्होंने गाजा और मिश्र में संयुक्त राष्ट्र की आपातकालीन सेना में भी अपनी सेवाएं दी हैं।
  • 4 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कुलदीप सिंह अपनी 120 सैनिकों की कंपनी के साथ लोंगेवाल में भारतीय सीमा की रक्षा कर रहे थे। इस दौरान पाकिस्तान की 51वीं इंफैंट्री ब्रिगेड के करीब 3000 सैनिकों ने उनकी पोस्ट पर हमला बोल दिया। यही नहीं पाकिस्तान को उसकी 22वीं आर्मर्ड रेजिमेंट भी मदद कर रही थी।
  • फिल्म बॉर्डर में दिखाया गया है कि इस युद्ध में भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए थे। लेकिन असल में कुलदीप सिंह को फिल्म में जितना बहादुर दिखाया गया है वह उससे भी कहीं ज्यादा थे। पाकिस्तानी सैनिक कुलदीप सिंह के सैनिकों को छू भी नहीं पाए और सिर्फ दो सैनिक घायल हुए थे।
  • साल 1971 में उन्हें युद्ध के मैदान पर जबरदस्त साहस दिखाने के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। महावीर चक्र से सम्मानित किए जाने के दौरान उनके संबंध में कहा गया - "In this action, Major Kuldip Singh Chandpuri displayed conspicuous gallantry, inspiring leadership and exceptional devotion to duty in keeping with the highest traditions of the Indian Army."
  • साल 1997 में फिल्म बॉर्डर रिलीज होने के बाद मेजर जनरल आत्मा सिंह और एयर मार्शल एमएस बावा ने दावा किया कि कुलदीप सिंह चांदपुरी और अल्फा कंपनी पाकिस्तानी हमले के दौरान बॉर्डर पर मौजूद ही नहीं थी। यही नहीं उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने में सिर्फ एयरफोर्स का हाथ था। इस पर कुलदीप सिंह ने कहा कि लगता है फिल्म में हमें प्रमुखता से दिखाने पर उन्हें जलन हो रही है। अगर उनका दावा ठीक है दो पिछले दो दशक में किसी ने ऐसा दावा क्यों नहीं किया।
  • इस संबंध में ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह ने एक रुपये का मानहानि का सांकेतिक मुकदमा भी किया। उन्होंने कहा, मैंने यह मानहानि का मुकदमा सिर्फ यह बताने के लिए किया है कि मैं वहां बॉर्डर पर मौजूद था, और वह दोनों लोग वहां नहीं थे। मुझे उनका पैसा नहीं चाहिए, इसीलिए मैंने सिर्फ एक रुपये की छतिपूर्ति की मांग की है। मुझे सिर्फ न्याय चाहिए।
  • साल 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय वह मेजर थे, और बाद में वह ब्रिगेडियर के पद तक गए और रिटायर होने के बाद चंड़ीगढ़ में रहने लगे थे।

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