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कमाल की बेटियां : कोरोना से मरे लोगों की अर्थी को कंधा देकर पेश की मानवता की मिसाल

चंडीगढ़ रेडक्रॉस सोसाइटी से जुड़ी युवतियों ने साहस का काम कर दिखाया है। इनमें जश्न और सविता शामिल हैं। 24 वर्षीय जश्न पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं। जबकि सविता ने भी पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए चंडीगढ़ का रुख किया।

By Edited By: Published: Mon, 26 Apr 2021 07:19 AM (IST)Updated: Mon, 26 Apr 2021 09:59 AM (IST)
कमाल की बेटियां : कोरोना से मरे लोगों की अर्थी को कंधा देकर पेश की मानवता की मिसाल
कोरोना काल में चंडीगढ़ रेडक्रॉस सोसायटी से जुड़ी जशन और सविता।

चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। महामारी के दौर में भी मानवता के लिए कुछ हटकर करने वाले कम ही हैं। मगर चंडीगढ़ रेडक्रॉस सोसाइटी से जुड़ी युवतियों ने ऐसा करने का साहस दिखाया है। इनमें जश्न और सविता शामिल हैं। 24 वर्षीय जश्न पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं। जबकि सविता ने भी पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए चंडीगढ़ का रुख किया। वह सेल्फ स्टडी करने के साथ चंडीगढ़ रेडक्रॉस सोसाइटी से जुड़ी हुई हैं।

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पिछले मार्च 2020 में जैसे ही कोरोना ने शहर में दस्तक दी, हर तरफ डर का माहौल था, इन दिनों ने जोखिम मोल लेने से हिचकता मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने एक साल के अंदर करीब एक सौ से ज्यादा कोरोना मरीजों की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार कराने में महत्वपूर्ण भूमिका। यहां तक कि जब गाइडलाइन लागू होने के कारण मृतकों के अपने लोग अर्थियों को कंधा देने से वंचित रह गए, तब इन दोनों युवतियों ने कोरोना वॉरियर के तौर पर अर्थियों को कंधा देने का भी काम किया।

जरूरत के अनुसार किया काम- जश्न

कोरोना के कारण मरे लोगों की अर्थी को कंधा देने वाली मोहाली की जश्न ने बताया कि कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद हर तरफ डर का माहौल था। मगर उन्होंने डरना उचित नहीं समझा। उन्होंने बताया कि मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी से मास्टर इन वूमेन स्टडी की है, जिसमें समाज के लिए काम करने को जोर दिया जाता है। मैंने अपनी पढ़ाई के अनुसार काम करने की शुरुआत की। जब मृतकों के शव को उनके परिवारों को नहीं दिया जाता था, तब उनका पूरे नियमों के अनुसार संस्कार करना भी जरूरी था। इसलिए रेडक्रॉस सोसाइटी के साथ उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला किया और पीपीई किट डालकर अर्थियों को कंधा देना शुरू कर दिया। इस बीच एक महीने तक मैंने घर में किसी को पता नहीं चलने दिया कि मैं क्या कर रही हूं। जैसे ही घर में पता चला तो विरोध हुआ, लेकिन बाद में मेरे पिता सुरेंद्र सिंह जो कि पंजाब सचिवालय में कार्यरत हैं और माता भगवंत कौर जो कि सरकारी स्कूल में कार्यरत थी.. उन्होंने मेरे काम का समर्थन किया।

माता-पिता के खो पाने का था दर्द, उसी को बना लिया ताकत : सविता

कोरोना संक्रमण से मरने वालों का अंतिम संस्कार करने वाली हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले की सविता ने बताया कि मेरे मम्मी-पापा का देहांत हो चुका है। अपनों को खोने का दर्द मैं समझ सकती हूं। चंडीगढ़ में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी, उसी दौरान मुझे यह काम करने का मौका मिला तो मैंने एक बार भी नहीं सोचा। क्योंकि मैं सिविल सर्विसेज में समाज सेवा के लिए जाना चाहती हूं और उसी की शुरुआत मैंने कोरोना काल में की। अंतिम संस्कार में जाने पर परिवार के लोगों ने आपत्ति जताई, लेकिन मैंने इसकी परवाह नहीं की। मेरा मानना है कि कर्म से ही इंसान की पहचान है।


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