पीएम की सुरक्षा में सेंध: मुख्यमंत्री बनाम प्रधानमंत्री, अपरिपक्व बयानबाजी कर रही है पंजाब सरकार
पाकिस्तान सीमा से सटा पंजाब पहले ही कई वर्षो तक ऐसे अनिर्णायक नेतृत्व का संताप झेल चुका है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पंजाब और पंजाबियत का दंभ भरने वाले राजनीतिक दल और नेता ऐसे संवेदनशील मसलों पर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और दलगत वैचारिक मतभेदों को आड़े नहीं आने देंगे।
चंडीगढ़, अमित शर्मा। बात लगभग तीन महीने पहले की है। प्रदेश कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत के बाद पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बेटे की शादी से जुड़े एक पारिवारिक समारोह के कुछ वीडियो वायरल हो गए। विवाह समारोह से जुड़ा आयोजन होने के कारण वहां आमंत्रित मेहमानों का मुख्यमंत्री के इर्द गिर्द इकट्ठे होना या सेल्फियां लेना स्वाभाविक था।
वीआइपी सुरक्षा की दृष्टि से इन तमाम वीडियो में मुख्यमंत्री और उनके परिवार के लिए तय किए गए सुरक्षा प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ते साफ साफ दिख रही थी। सो राज्य के गृह विभाग ने सुरक्षा में ऐसी चूक का स्वत: संज्ञान लेते हुए पुलिस विभाग से रिपोर्ट मांगी। खुफिया विभाग तुरंत हरकत में आया और विभागीय रिपोर्ट के आधार पर वीडियो वायरल होने के चंद घंटों में ही एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया और चार अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू हो गई।
अब बात बीते बुधवार की जब बठिंडा से फिरोजपुर आ रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का काफिला एक फ्लाईओवर पर 20 मिनट तक इसलिए फंसा रहा, क्योंकि वहां कुछ प्रदर्शनकारियों ने उस सड़क मार्ग को अचानक अवरुद्ध कर दिया। जबकि पूर्व निर्धारित इस रूट प्लान को राज्य पुलिस द्वारा अंतिम क्लीयरेंस दी जा चुकी थी। लंबी अवधि तक वहां फंसे रहने के बाद काफिले ने वहीं से यू-टर्न लिया। इससे पहले कि यू-टर्न लेकर प्रधानमंत्री की गाड़ी वहां से निकल पाती फ्लाईओवर की दूसरी तरफ से ट्रैफिक के लिए रास्ता खोल दिया गया। एक बड़ा जोखिम उत्पन्न हो चुका था। फ्लाईओवर पर निर्धारित रूट प्लान में आगे प्रदर्शनकारी जमे थे तो पीछे रैली में भाग लेने जा रहे वाहनों की कतारें प्रधानमंत्री की बुलेट प्रूफ कार के समानांतर पहुंच चुकी थीं। प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर पैदा हुए इस अप्रत्याशित जोखिम का साक्ष्य बने वीडियो क्लिप्स चंद मिनटों में वायरल हो गए।
विडंबना देखिए कि तीन महीने पहले जिस मुख्यमंत्री चन्नी के एक पारिवारिक कार्यक्रम में हुई सुरक्षा सेंध को लेकर राज्य के पुलिस अधिकारियों पर चंद घंटों में निर्णायक कार्रवाई कर सरकार ने एक नजीर पेश करने की कोशिश की, उसी मुख्यमंत्री ने देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए ब्लू बुक के तहत तय प्रोटोकाल में इतनी भारी चूक को एक ‘ड्रामा’ और ‘ध्यान भटकाऊ प्रयास’ बताते हुए अपने संवैधानिक दायित्वों की खुलेआम अनदेखी की। केवल अनदेखी ही नहीं, बल्कि गैर-जिम्मेदाराना बयानों से अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का खुलेआम प्रदर्शन किया। नतीजतन चन्नी सरकार की एक बड़ी ‘प्रशासनिक चूक’ पार्टी स्तर पर उससे भी बड़ी ‘राजनीतिक चूक’ में ऐसे तब्दील हुई कि चुनावी माहौल में डूबे पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पूरा प्रकरण भाजपा के लिए राजनीतिक लहजे में एक तरह से बूस्टर डोज बन गया।
खैर, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ क्यों और कैसे हुआ, इससे जुड़े हर पहलू का सच तो आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने वाली जांच में आ ही जाएगा, लेकिन प्रथम दृष्टया इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि यह खिलवाड़ पंजाब पुलिस के अधिकारियों के स्तर पर कम, बल्कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के ‘अपरिपक्व मार्गदर्शन’ का ही सीधा सीधा परिणाम है। जिस सरकार के 111 दिनों के कार्यकाल में मुख्यमंत्री द्वारा तीन बार डीजीपी (राज्य पुलिस महानिदेशक) केवल इसलिए बदल दिए जाते हैं कि एक व्यक्ति विशेष (नवजोत सिंह सिद्धू) को उनके द्वारा चुने गए अधिकारियों पर विश्वास नहीं।
तो जाहिर है राज्य की अफसरशाही में नियुक्तियों और निष्कासन को लेकर अनिश्चितता पनपेगी ही। फिर यही अनिश्चितता आधिकारिक स्तर पर संवैधानिक उत्तरदायित्व के प्रति अकर्मण्यता में जब तब्दील होगी तो ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं होंगी ही। यहां यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि पिछले तीन महीनों में राज्य में तमाम दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य घटनाएं कहीं न कहीं इसी अनिर्णायक नेतृत्व और अपरिपक्व मार्गदर्शन का परिणाम हैं। चूंकि पाकिस्तान सीमा से सटा पंजाब पहले ही कई वर्षो तक ऐसे अनिर्णायक नेतृत्व का संताप झेल चुका है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पंजाब और पंजाबियत का दंभ भरने वाले राजनीतिक दल और नेता ऐसे संवेदनशील मसलों पर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और दलगत वैचारिक मतभेदों को आड़े नहीं आने देंगे।
[स्थानीय संपादक, पंजाब]