किसानों के विरोध से पंजाब में भाजपा अचंभे में, किसानों की नाराजगी दूर करना हुआ मुश्किल
पंजाब में केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों के खिलाफ किसानों की नाराजगी और बढ़ते विरोध से भाजपा अचंभे में है। राज्य में उसका सियासी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर उससे अलग है। ऐसे में भाजपा के लिए राज्य में बड़ी चुनौती पैदा हो गई है।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में केंद्र के कृषि विधेयकों के चौतरफा विरोध ने भारतीय जनता पार्टी को सकते में डाल दिया है। भाजपा नेता किसानों, आढ़तियों आदि के प्रदर्शनों पर ध्यान रख रहे हैं कि आखिर उनके आरोपों के जवाब वह कैसे दें। शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में भाजपा को 117 में से 23 सीटें मिलती रही हैैं। पिछले कुछ समय से भाजपा में भीतर ही भीतर यह सुगबुगाहट होती रही है कि या तो अलग लड़ा जाए या फिर सीटों का कोटा बढ़ाया जाना चाहिए। भाजपा का शहरी आधार रहा है लेकिन उसने देहात में भी पकड़ बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी। लेकिन अब किसान बहुल देहात इलाके में उसके लिए राह और कठिन हो सकती है।
देहात ही नहीं, शहरी इलाकों में भी विरोध से बढ़ी परेशानी
कृषि विधेयकों के बारे में किसानों की शंकाएं दूर करने के लिए भाजपा ने गांवों में जाकर जनसंपर्क करने की योजना बनाई तो कई किसान संगठनों ने एलान कर दिया है कि भाजपाइयों को गांवों में घुसने नहीं देंगे। भाजपा को यह डर भी सता रहा है कि शहरों में भी उसके खिलाफ लामबंदी शुरू हो गई है। पार्टी नेता मानते हैं कि लोगों का गुस्सा उसके प्रति है। शहरों का आढ़ती वर्ग, जो पार्टी का कोर वोट बैंक भी है, इस समय खासा नाराज है। बात केवल आढ़तियों की नहीं है बल्कि उनके साथ जुड़ा हुआ व्यापार मंडल, शैलर उद्योग, करियाना व्यापारी भी अब भाजपा के खिलाफ हो रहे हैं।
पार्टी को उम्मीद धान की खरीद शुरू होने के बाद समझ जाएंगे किसान
भाजपा ने नवंबर या दिसंबर महीने में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। अब अगर इन चुनाव में पार्टी अकाली दल के बिना उतरती है तो यह उसके लिए पहली कसौटी होगी। भाजपा महासचिव सुभाष शर्मा कहते हैैं कि हम इसका आकलन कर रहे हैं कि क्या यह विरोध सचमुच बिलों के कारण हो रहा है या फिर हमें कमजोर करने के लिए जानबूझकर करवाया जा रहा है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि रविवार से धान की खरीद शुरू हो जाएगी और किसान व्यस्त हो जाएंगे तो उनका यह गुस्सा ठंडा हो जाएगा। किसानों को भी यह बात समझ आ जाएगी कि जो हम बिलों के बारे में कह रहे हैं वह सही है। वह मानते हैैं कि अभी किसानों का गुस्सा सातवें आसमान पर हैं।
सुभाष शर्मा कहते हैं कि जब कृषि अध्यादेश जारी किए गए थे तो अकाली दल उनका पूरा साथ दे रहा था और हमें उम्मीद थी कि पार्टी किसान वर्ग को इसके बारे में समझाने में केंद्र सरकार को सहयोग करेगी। परंतु जब अध्यादेश विधेयक के रूप में संसद में पेश किए गए तो हमारा सहयोगी साथ छोड़ गया। इसकी उम्मीद नहीं थी, लेकिन हमें आने वाले समय में इसका फायदा ही होगा। आज हमारी स्थिति सभी पार्टियां बनाम भाजपा हो गई है। जहां-जहां भी स्थिति ऐसी हुई है, पार्टी को उसका लाभ ही हुआ है।
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