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पंजाब में नई सियासी दांव की तैयारी में भाजपा, खेल सकती है गैर जट्ट राजनीति कार्ड

शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन तोड़ने के बाद भारतीय जनेा पार्टी पूरे पंजाब में अपने पैर जमाने में जुटी है। इसके लिए पार्टी ने नई रणनीति तैयार की है। भाजपा पंजाब में अब गैर जट्ट राजनीतिक कार्ड खेल सकती है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 08:17 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 08:17 AM (IST)
पंजाब में नई सियासी दांव की तैयारी में भाजपा, खेल सकती है गैर जट्ट राजनीति कार्ड
भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा और पंजाब भाजपा प्रधान अश्‍वनी शर्मा। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। शिरोमणि अकाली दल (SAD) से गठबंधन टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) पूरे पंजाब में अपने पैर जमाने की कोशिशों में जुटी है। भाजपा के 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में सभी 117 सीटों पर चुनाव लडऩे के ऐलान और शिअद से उसका नाता टूटने के बाद साफ है कि राज्‍य की सियासत में  नए समीकरण बनेंगे। भाजपा पंजाब में अपने पैर जमाने के लिए नई रणनीति तैयार कर रही है। पार्टी पंजाब की सियासत में गैर जट्ट कार्ड खेल सकती है।

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पंजाब में भाजपा का फोकस दलित, शहरी सिख और गैर राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर

दरअसल, कृषि सुधार कानूनों का विरोध करके कांग्रेस, शिरेामणि अकाली दल और आप जहां एक छोर पर खड़ी हैैं तो यह कानून लागू करने वाली भाजपा दूसरे छोर पर खड़ी नजर आ रही है। शिअद से नाता टूटने के बाद भाजपा के पास मौका है कि वह मालवा में अपना आधार मजबूत कर सके। विस्तार के लिए भाजपा के सामने खासतौर पर राज्य की वह आरक्षित सीटें हैैं और राज्य में दलित वोट बैैंक भी सबसे ज्यादा है। परंतु पंजाब में जट्ट राजनीति के प्रभावी होने के कारण दलित वर्ग से कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बना। पार्टी सूत्रों के अनुसार अब पंजाब में भाजपा का फोकस हरियाणा में अपनाए गए गैर जट्ट राजनीति के फार्मूले पर है।

राजनीति से संबंध न रखने और लोगों में आधार रखने वाले कई चेहरे शामिल हो सकते हैैं पार्टी में

भाजपा राज्‍य में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ में केवल 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी। इनमें केवल पांच आरक्षित सीटें थीं। अब भाजपा की नजर राज्य की 34 आरक्षित सीटों पर है, यानी पार्टी के पास 29 और आरक्षित सीटों पर विस्तार करने का रास्ता खुला है।

राजनीति के जानकारों के अनुसार अगर किसान वोट बैंक भाजपा से नाराज भी है तो भी गैर जट्ट सिख वोट के सहारे भाजपा विरोधियों को कड़ी टक्कर दे सकती है। इन सीटों पर भाजपा ऐसे नए चेहरों की तलाश में है जो राजनीति से तो दूर रहे हैैं लेकिन लोगों में उनकी छवि साफ सुथरी है। भाजपा के पास माझा और दोआबा के जिलों अमृतसर, जालंधर, पठानकोट व होशियारपुर में अच्छा वोट बैंक भी है। इस बात की संभावना भी है कि हिमाचल के साथ लगती कंडी बेल्ट में भी भाजपा बेहतर टक्कर दे सकती है।

किसान संघर्ष के समय व्यापारी वर्ग को नुकसान हुआ और वह किसानों से दूर होने लगे हैं। जिसमें बड़ी संख्या में शहरी सिख भी शामिल हैैं। निश्चित तौर पर भाजपा की इन पर नजर है। कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ की ओर से पंजाब को हुए आर्थिक नुकसान के बयान से साफ है कि कांग्रेस भी अब यह समझने लगी है कि शहरी वर्ग नाराज हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शहरी वोट बैंक के कारण ज्यादा सफलता मिली थी।

भाजपा के प्रदेश महासचिव डा. सुभाष शर्मा ने कहा कि अनुसूचित जातियों को सही अर्थों में उनका प्रतिनिधित्व भाजपा ही देगी। भाजपा ने सत्ता में रहते हुए पूरे पांच साल के लिए विधायक दल का नेता एक दलित को ही बनाया, आज तक किसी पार्टी ने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अनुसूचित वर्ग के लिए काम कर रहे हैं। बिहार चुनाव के परिणाम इसका उदाहरण हैं।

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