Bank Strike in Chandigarh : चंडीगढ़ में बैंकों की हड़ताल दूसरे दिन भी जारी, 1000 कर्मचारियों ने की नारेबाजी
चंडीगढ़ में 9 बैंक यूनियनों ने 15 मार्च और 16 मार्च को हड़ताल का ऐलान किया है जिसके दूसरे दिन जमकर नारेबाजी देखने को मिल रही है। सेक्टर-17 प्लाजा में चल रही हड़ताल के दूसरे दिन करीब एक हजार कर्मचारियों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
चंडीगढ़, जेएनएन। बैंकों के निजीकरण करने के खिलाफ यूनाइडेट फोरम आफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के बैनर तले 9 यूनियनों ने 15 मार्च और 16 मार्च को हड़ताल का ऐलान किया है, जिसके दूसरे दिन जमकर नारेबाजी देखने को मिल रही है। सेक्टर-17 प्लाजा में चल रही हड़ताल के दूसरे दिन करीब एक हजार कर्मचारियों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया। जहां पर सुबह नौ बजे से ही केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी चली। बैंक कर्मचारियों ने कहा कि केंद्र सरकारी जबरदस्ती निजीकरण को बढ़ावा दे रही है जबकि फायदे में चल रहे बैंकों का निजीकरण करना कोई तुक नहीं बनता है।
हड़ताल में मौजूद यूनाइडेट फोरम ऑफ बैंक यूनियन के कनवीनर संजीव बंदलिश (एनसीबीई) वासुदेव सिंगला (बीओएम्मआरओ) राजीव रंजन चौबे (एनओबीओ) अनंत दत्ता (बीओएम्मओ) सौरभ सैनी (बीओएम्मओ) राघव पांडे, परमीत सहारन (एनओबीडबलयु)आदि ने कर्मचारियों को संबोधित किया। संजीव बंदलिश ने कहा कि इस हड़ताल में करीब 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी शामिल है और साथ ही सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी और अधिकारी भी इस हड़ताल प्रदर्शन का भाग ले रहे है जिसका कारण बैंकों का निजीकरण से दूर रख्ना है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने पहले भी कई बैंकों को प्राइवेट किया है लेकिन किसी भी बैंक को कोई लाभ नहीं हुआ उल्टा नुक्सान हुआ है। उन बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ-साथ ग्राहकों को भी भारी नुक्सान का सामना करना पड़ा है। सैकड़ों ग्राहकों ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र के निजीकरण के बाद आत्महत्या की थी। जिसकी जिम्मेवारी सिर्फ सरकार थी। उन्होंने कहा कि निजीकरण से सिर्फ चंद पूजीपंतियों को लाभ मिलने वाला है इसके अलावा किसी को कोई फायदा नहीं होगा।
वहीं वासुदेव सिंगला ने कहा कि सरकार इससे पहले भी आडीबीआई बैंक में अपनी अधिकांश की हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम को बेच चुकी है। पिछले चार साल में सार्वजनिक क्षेत्र के 14 बैंकों का विलय किया जा चुका है, जिससे सबसे ज्यादा आम जनता को फर्क पड़ा है और हजारों लोगों की नौकरियां जाने के साथ-साथ ग्राहकों को भी पूंजी से हाथ धोना पड़ा है। जरूरी है कि इस समय हम मिलकर सरकार का विरोध करें और निजीकरण पर नकेल डाले।