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वारदात के बाद छत्रपति का एक बेटा अस्पताल में, तो दूसरा थाने में था

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को गोली मारने के बाद जब उनकी हालत नाजुक थी, तो उनका एक बेटा अस्पताल में, तो दूसरा थाने में था। अंशुल छत्रपति अस्पताल में पिता की देखभाल कर रहा था, तो 13 साल का अरिदमन थाने में एफआइआर लिखवा रहा था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 01:15 AM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 01:15 AM (IST)
वारदात के बाद छत्रपति का एक बेटा अस्पताल में, तो दूसरा थाने में था
वारदात के बाद छत्रपति का एक बेटा अस्पताल में, तो दूसरा थाने में था

जास, पंचकूला : पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को गोली मारने के बाद जब उनकी हालत नाजुक थी, तो उनका एक बेटा अस्पताल में, तो दूसरा थाने में था। अंशुल छत्रपति अस्पताल में पिता की देखभाल कर रहा था, तो 13 साल का अरिदमन थाने में एफआइआर लिखवा रहा था। छत्रपति के बेटे अंशुल ने इस हत्याकांड से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया। अंशुल ने बताया कि वह करवाचौथ का दिन था और किसी की अचानक मौत की वजह से उनकी मां को मायके जाना पड़ा था। उनके पिता अखबार की व्यस्तताओं की वजह से अक्सर देर से घर पहुंचते थे, लेकिन उस दिन वह जल्दी घर आ गए थे। अरिदमन गया था थाने

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अंशुल छत्रपति बताते हैं कि 24 अक्टूबर 2002 को घर के बाहर उनके पिता को गोली मार दी गई। आनन-फानन में मैं उन्हें सिरसा अस्पताल लेकर गया। हालत खराब होने के कारण उन्हें रोहतक पीजीआई रेफर कर दिया गया। मैं पापा के साथ था। मुझे पता चला कि आरोपी कुलदीप को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और कुछ दिन बाद दूसरे आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच मेरी गैरमौजूदगी में मेरे छोटे भाई अरिदमन ने गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। तब रोहतक में इलाज चल रहा था। इसी बीच उनके पिता की हालत बिगड़ी तो उन्हें अपोलो अस्पताल, दिल्ली भेज दिया गया। कुल 28 दिन के बाद 21 नवंबर 2002 को उनकी मौत हो गई। छत्रपति की मौत के बाद प्रदेशभर में प्रदर्शन हुए। तत्कालीन सीएम ओमप्रकाश चौटाला ने जांच के आदेश दिए। पुलिस ने राम रहीम को कहीं भी केस में नहीं दिखाया और आनन-फानन में चार्जशीट फाइल कर सिरसा कोर्ट में चालान पेश कर दिया। सिरसा कोर्ट में ट्रायल शुरू हो गया। इसके बाद अंशुल ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। 2014 में सबूतों पर कोर्ट में शुरू हुई थी बहस

10 नवंबर 2003 को हाईकोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दिए और सिरसा कोर्ट के ट्रायल को रुकवा दिया। सीबीआइ जांच ही कर रही थी कि राम रहीम सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और इस पर स्टे ले आए। एक साल तक स्टे रहा। अंशुल ने सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ी और नवंबर 2004 में स्टे हट गया था। सीबीआइ ने फिर जांच शुरू की। लगातार जांच चलती रही। 31 जुलाई 2007 को सीबीआइ ने चार्जशीट पेश की। 2014 में सबूतों पर कोर्ट में बहस शुरू हुई। अंशुल बताते हैं कि दोनों भाइयों ने आखिरी दम तक केस लड़ने की ठान रखी थी। दूसरे लोग हमारा साथ दे रहे थे, तो हमारे पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता था। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कभी हमारे रिश्तेदारों के माध्यम से तो कभी जानने वालों के माध्यम से समझौता के दबाव बनाया गया। एक बार पंजाब के एक पूर्व मंत्री ने उन्हें समझौते का ऑफर किया, तो उनके पापा के दोस्त एक सरपंच को हरियाणा के एक पूर्व सीएम ने समझौते का दबाव बनाया। लेकिन वे कभी नहीं झुके। हत्या के दिन का घटनाक्रम

अंशुल के मुताबिक रात को जब उनका परिवार खाना खाने की तैयारी कर रहा था, तभी किसी ने बाहर से उनके पिताजी को पुकारा। रामचंद्र छत्रपति देखने के लिए बाहर निकले और पीछे-पीछे अंशुल भी। उसने देखा कि बाहर स्कूटर पर दो लोग खड़े हैं और दोनों के हाथ में रिवॉल्वर है। इससे पहले की कोई कुछ समझ पाए उनमें से एक ने फाय¨रग शुरू कर दी। रामचंद्र छत्रपति को पांच गोलिया लगीं और वह गिर गए। जैसे ही रामचंद्र छत्रपति को गोली मारी गई अंशुल ने शोर मचाना शुरू कर दिया। इस शोर की वजह से दोनों हत्यारे बुरी तरह घबरा गए और भागने लगे। दोनों इस तरीके से घबरा गए थे कि एक स्कूटर छोड़कर पैदल ही भागने लगा। इनमें से एक को मौके से पकड़ लिया गया। अंशुल ने बताया कि वह पिताजी के साथ अस्पताल में थे इसलिए उनके छोटे भाई ने थाने में एफआईआर लिखाई और डेरा पर शक जताया। बाद में पुलिस ने दूसरे हत्यारे को भी पकड़ लिया। दोनों के पास से हत्या में इस्तेमाल किया गया रिवॉल्वर भी बरामद हो गया। जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि दूसरे हत्यारे के पास जो रिवॉल्वर था वह नकली था। जिस रिवॉल्वर को हत्या में इस्तेमाल किया गया था उसका लाइसेंस डेरा के प्रधान किशनलाल के नाम पर था। किशनलाल ने कुछ ही दिनों में पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। राम रहीम का कहीं नाम नहीं दिखाया था

अंशुल बताते हैं कि जब उनके पिता को होश आया तो उन्होंने अपने बयान में गुरमीत राम रहीम का नाम लिया, लेकिन पुलिस ने बयान बदल दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस डेरा के दबाव में काम कर रही थी, इसलिए उसने जांच को तीन लोगों (किशनलाल और दो हत्यारों) से आगे नहीं बढ़ने दिया। पुलिस की कार्रवाई से असंतुष्ट होकर उन्होंने सीबीआई जांच के लिए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2003 में जांच सीबीआई को सौंपी गई। फैसला स्वागत योग्य

अंशुल बताते हैं कि न्याय के लिए भले ही लंबा इंतजार करना पड़ा हो, लेकिन उन्हें हमेशा इस बात का भरोसा था कि मामले में न्याय जरूर होगा। जब वह राम रहीम को शक्तिशाली लोगों के साथ देखते तो डर जरूर लगता, लेकिन साध्वियों के यौन शोषण मामले में कोर्ट ने जो फैसला दिया, वह स्वागत योग्य है। कोर्ट परिसर के चप्पे-चप्पे पर रहीं सुरक्षा बलों की मुस्तैदी

साध्वी यौन शोषण मामले में सुनवाई के बाद पंचकूला में ¨हसा की बात को ध्यान में रखते हुए पंजाब और हरियाणा में सुरक्षा व्यवस्था का खास प्रबंध किया गया था। कोर्ट परिसर में पूरी सुरक्षा थी। पत्रकार छत्रपति हत्याकांड में पंचकूला की विशेष सीबीआइ अदालत ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और कृष्ण लाल को आइपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश रचने) और 302 के तहत दोषी करार दिया था, जबकि कुलदीप ¨सह तथा निर्मल ¨सह को आइपीसी की धारा 302 ( हत्या की सजा) और 120बी (आपराधिक साजिश) का दोषी बताया था। निर्मल ¨सह को आ‌र्म्स एक्ट 1959 के सेक्शन 25 तथा कृष्ण लाल को आ‌र्म्स एक्ट 1959 के सेक्शन 29 के तहत भी दोषी करार दिया गया था।


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