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'किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का समाधान न करने से प्रभावित होती है वयस्कता'

डॉ. सविता मल्होत्रा ने कहा कि भारत में बाल मनोचिकित्सा अभी काफी प्रारंभिक अवस्था में है और शिशु मनोचिकित्सा जैसे क्षेत्र में काम करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

By Edited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 10:34 PM (IST)Updated: Mon, 11 Nov 2019 02:53 PM (IST)
'किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का समाधान न करने से प्रभावित होती है वयस्कता'
'किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का समाधान न करने से प्रभावित होती है वयस्कता'

चंडीगढ़, जेएनएन। मानसिक स्वास्थ्य की किसी भी अवांछित स्थिति का समाधान नहीं करने के परिणाम वयस्कता तक बढ़ जाते हैं। ऐसे में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और ये हालात वयस्कों के रूप में जीवन का नेतृत्व करने के अवसरों को सीमित करते हैं। यह बात डॉ. शोबा श्रीनाथ, सीनियर कंसल्टेंट, चाइल्ड एंड एडोलसेंट साइक्रेट्री, बैंगलौर ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ (आइएसीएएम) के 15वीं द्विवार्षिक नेशनल कांफ्रेंस के दौरान कही। रविवार को गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच) सेक्टर 32 में इस तीन दिवसीय कांफ्रेंस का समापन हुआ। कांफ्रेंस का थीम चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ: फ्रॉम इंटरवेंशन टू प्रिवेंशनज था।

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इस दौरान डॉ. शोबा ने बहुत ही बुनियादी अभी तक प्रभावशाली सुबूतों पर आधारित प्रिवेंटिव इंटरवेंशंस के बारे में बात की। जिनको कर्नेल्स कहा जाता है। इन कर्नेल्स में बच्चों और किशोरों के लिए टीवी के समय को कम करने जैसे स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ावा देने के सरल उपाय शामिल थे। इस संबंधित अन्य प्रयासों में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को घर पर सार्थक भूमिकाएं प्रदान करना, माता-पिता के बच्चे के संबंधों में सुधार करने के लिए मौखिक प्रशंसा, कार्यस्थल के रिश्ते, स्कूल में सीधे प्रशंसा नोट्स का उपयोग, परिवार या घर में प्रोत्साहन और सॉफ्ट टीम प्रतियोगिता आदि में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना आदि शामिल हैं।

कांफ्रेंस के दौरान हुए सेशंस में से एक में डॉ. सविता मल्होत्रा, चंडीगढ़ की जानी मानी बाल मनोचिकित्सक ने गर्भाधान सहित शिशु अवस्था से ही प्रिवेंशन को लेकर अलग-अलग पहलुओं के बारे में बात की। उन्होंने बचपन से किशोरावस्था तक रोकथाम के संबंध में एक बड़े बदलाव की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत में बाल मनोचिकित्सा, अभी खुद ही काफी प्रारंभिक अवस्था में है और शिशु मनोचिकित्सा जैसे क्षेत्र में काम करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। डिपार्टमेंट ऑफ साइक्रेट्री, जीएमसीएच-32 प्रो बीएस चवन के नेतृत्व में नियमित रूप से चाइल्ड गाइडेंस क्लीनिक चला रहा है। इसके अलावा ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए एक विशेष क्लिनिक खानपान और अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकारों के लिए समूह सेटिंग्स में एक अलग पैरेंट ट्रेनिंग भी प्रदान करता है। इस कांफ्रेंस में देशभर से लगभग 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इसमें बाल और किशोर मानसिक स्वास्थ्य के लगभग हर पहलू को शामिल करते हुए 29 वर्कशॉप्स शामिल की गई।

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