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अतिरिक्त निर्माण होते रहे, सीएचबी एंफोर्समेंट टीम हाथ पर हाथ धरे बैठी रही

चंडीगढ़ हाउसिग बोर्ड (सीएचबी) के मकानों में नीड बेस्ड चेंज का मुद्दा शहर की सबसे बड़ी आबादी को प्रभावित करता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Sep 2021 07:42 AM (IST)Updated: Tue, 07 Sep 2021 07:42 AM (IST)
अतिरिक्त निर्माण होते रहे, सीएचबी एंफोर्समेंट टीम हाथ पर हाथ धरे बैठी रही
अतिरिक्त निर्माण होते रहे, सीएचबी एंफोर्समेंट टीम हाथ पर हाथ धरे बैठी रही

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : चंडीगढ़ हाउसिग बोर्ड (सीएचबी) के मकानों में नीड बेस्ड चेंज का मुद्दा शहर की सबसे बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। बोर्ड के 60 हजार अलॉटी मझधार में फंसे हैं, लेकिन इस समस्या के लिए केवल सीएचबी रेजिडेंट्स ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि ग्राउंड इंस्पेक्शन टीम और अधिकारी भी शामिल हैं, जिन्होंने नीड बेस्ड चेंज को पनपने दिया। एक-दूसरे की देखा देखी यह निर्माण होते चले गए, लेकिन फील्ड इंस्पेक्शन इंस्पेक्टर ने सख्त कदम नहीं उठाए। इस निर्माण के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार का खेल भी जारी रहा। इस भ्रष्टचार ने ही अधिकारियों की आंखों पर काली पट्टी बांधे रखी। इसी वजह से यह समस्या गंभीर होती चली गई। अब यह हर घर की समस्या हो गई है और सबसे बड़ा मुद्दा भी बन गया है। अब अलॉटी चाहते हैं कि एक बार दिल्ली पैटर्न पर आम माफी देकर इस खेल को बंद किया जाए। उसके बाद कहीं कोई अतिरिक्त निर्माण न होने दिया जाए। अगर कोई निर्माण करे तो उस पर सख्त कार्रवाई हो। दरअसल बुधवार को सीएचबी बोर्ड मीटिग में नीड बेस्ड चेंज का मुद्दा लाया जा रहा है। बोर्ड इस पर चर्चा के बाद तय करेगा कि आगे करना क्या है। दिल्ली पैटर्न को अपनाया जाता है या नहीं यह मीटिग के बाद पता चलेगा। अलॉटी इस मीटिग से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं।

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कोट्स

जिन मकानों में कई दशकों से रह रहे हैं वह अपने होकर भी अपने नहीं हैं। परिवार बढ़ने पर लोगों ने अपनी जरूरत अनुसार कुछ बदलाव कर लिए, लेकिन यह बदलाव अब उनके लिए नासूर बन गए हैं। उन्हें शर्मिदगी महसूस होती है। बच्चे बड़े होने पर टेंशन होती है कि वह रहेंगे कहां। अलग से रूम बनाया तो उसके लिए नोटिस आने शुरू हो जाते हैं। सभी के साथ इस तरह की समस्याएं हैं।

आरके मित्तल, रेजिडेंट, सेक्टर-40 सालाना चार्ज देने के बाद राहत का कोई मतलब नहीं है। एक बार फीस लेकर मामला सेटल करना चाहिए। इससे लंबे समय के लिए अलॉटियों को राहत मिलेगी। फेडरेशन दिल्ली पैटर्न पर पूरी स्टडी कर चुकी है। प्रशासन को इसे अपनाने के लिए काम करना चाहिए। इससे प्रशासन को भी रेवेन्यू मिलेगा, साथ ही लोगों को हमेशा के लिए राहत मिल जाएगी। सालाना फीस देना संभव नहीं है।

कमल आहलुवालिया, प्रेसिडेंट, आरडब्ल्यूए, सेक्टर-44 भाजपा सांसद विजय मल्होत्रा ने 1999 में दिल्ली बेस्ड सॉल्यूशन को लागू कराया था। उनके फैसले से हजारों लोग राहत की सांस ले रहे हैं। चंडीगढ़ में दूसरे राज्यों की बेस्ट प्रेक्टिस अपनाई जाती रही है, इसे भी अपनाना चाहिए। बोर्ड के नोटिस का डर अलॉटियों की नींद हराम नहीं करेगा। ट्रांसफर कन्वर्जन फीस की बात करें तो ईडब्ल्यूएस मकान से 2.85 हजार फीस ली जा रही है। दूसरी केटेगरी में तो और भी ज्यादा है। अलॉटी यह कैसे दे पाएंगे।

वीके निर्मल, प्रेसिडेंट, यूनाइटेड वेलफेयर एसोसिएशन, सेक्टर-44


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