पंजाब में सिकुड़ती जा रही AAP, तीन विधायकों के बाद कुछ और नेता अलविदा की तैयारी में
Punjab AAP पंजाब में आम आदमी पार्टी लगातार सिकुड़ती जा रही है और इससे नेताओं का जाना लगा हुआ है। पार्टी के विधायकाें की संख्या भी कम हो रही है। तीन विधायकों के बाद कुछ और नेता पार्टी को अलविदा करने की तैयारी में बताए जाते हैं।
चंडीगढ़, जेएनएन। Punjab AAP: पंजाब में आम आदमी पार्टी लगातार सिकुड़ती जा रही है और नेता लगातार पार्टी छोड़कर जा रहे हैंं। पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी और सिकुड़ गई है। विधानसभा में आप के 20 विधायकों में से अब 16 ही रह गए हैं और उसमें भी दो पार्टी से साथ नहीं हैं। तीन विधायकों के बाद अब कुछ और नेता पंजाब आप को अलविदा करने की तैयारी में हैं।
20 में से अब केवल 16 विधायक रह गए, उनमें भी दो बिल्कुल विमुख
आप के विधायक रहे सुखपाल खैहरा, पिरमल सिंह और जगदेव सिंह कमालू के कांग्रेस में शामिल होने और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद पार्टी के अब विधानसभा में तकनीकी तौर पर तो 16 विधायक रह गए हैं। इनमें खरड़ के विधायक कंवर संधू और मानसा से नाजर सिंह मानशाहिया अब केवल तकनीकी तौर पर पार्टी के साथ हैं, वैसे पार्टी ने ही उनकी सीटें अलग करके देने के लिए पंजाब विधानसभा के स्पीकर राणा केपी सिंह से कहा हुआ है।
इन दोनों विधायकों ने भी सुखपाल सिंह खैहरा के साथ ही पार्टी से बगावत कर दी थी लेकिन ये खैहरा, पिरमल और जगदेव सिंह की तरह कांग्रेस में शामिल नहीं हुए, पर ये आम आदमी पार्टी के भी साथ नहीं हैं। यानी विधायक तो आप के हैं लेकिन आप से बिल्कुल किनारा किए हुए हैं।
सात साल में अनेक नेता छिटके, कुछ और कह सकते हैं पार्टी को अलविदा
आप की मजबूरी यह है कि अगर इन दोंनों विधायकों को निकाल देती है तो उसके पास प्रमुख विपक्षी पार्टी का रुतबा नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में आप और शिरोमणि अकाली दल दोनों के ही 14-14 विधायक हो जाते हैं। आप को प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा केवल इसलिए मिला हुआ है क्योंकि विधानसभा में अब भी कंवर संधू और नाजर सिंह मानशाहिया आप के विधायक हैं। यानी जो लोग पार्टी से विमुख हैं लेकिन इस्तीफा नहीं दे रहे उन्हें पार्टी निकालने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही। इससे आप की लाचार हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्थिति यह है कि 2017 के चुनाव से पहले जो पार्टी दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आने का दावा कर रही थी, मात्र साढ़े चार साल बाद उसका विपक्षी पार्टी का दर्जा भी दो बागी विधायकों के पास गिरवी रखा हुआ है। आने वाले छह महीने में पार्टी के बचे हुए विधायकों में से भी कितने रह पाते हैं यह दो से तीन महीने बाद पता चल जाएगा। दरअसल कई विधायक पाला बदलने को तैयार हैं लेकिन वे मात्र छह महीनों के लिए एक और उपचुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसलिए वह कुछ और वक्त निकलने का इंतजार कर रहे हैं। चूंकि पंजाब में अब विधानसभा चुनाव होने का मात्र आठ महीने का समय बचा है।
दिलचस्प बात है कि 2014 में आम आदमी पार्टी को पूरे देश में सबसे ज्यादा रिस्पांस पंजाब से मिला था जब पार्टी के चार सांसद भगवंत मान, डा. धर्मवीर गांधी, हरविंदर सिंह खालसा और प्रो. साधू सिंह संसद में पहुंचे थे लेकिन 2019 तक आते - आते चार में से मात्र एक ही सांसद भगवंत मान रह गए। 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व पार्टी ने सुच्चा सिंह छोटेपुर जैसे टकसाली नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जिन्होंने पार्टी को संगठित किया था। यह खामियाजा पार्टी को 2017 के चुनाव में भुगतना पड़ा। उस समय पार्टी की इन्हीं गलतियों की वजह से सत्ता हाथ में लेने का उसका ख्वाब पूरा नहीं हो सका।
गलतियों से नहीं सीखा कोई सबक
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गलतियों से भी पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा। विधानसभा में साढ़े चार साल में तीन नेता बदले गए। पहले ही साल एचएस फूलका पार्टी को अलविदा कह गए। सुखपाल खैहरा को बनाया तो दिल्ली के नेताओं की जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी ने उन्हें भी बाहर जाने को मजबूर कर दिया। उनकी जगह हरपाल चीमा ने ली जो इस समय विपक्ष के नेता हैं। पिरमल ¨सह और जगदेव सिंह कमालू भी सुखपाल खैहरा की तरह 'दिल्ली' की दखलंदाजी के चलते आप से बाहर हो गए।