वेस्ट मैटीरियल से तैयार किया 800 वर्ष पुराना कावट
राजस्थान में इस कला के जरिये पौराणिक कहानियों को बताया जाता था।
शंकर सिंह, चंडीगढ़ : 800 वर्ष पुरानी कहानी सुनाने की कला, जिसे कावट कहा जाता है। राजस्थान में इस कला के जरिये पौराणिक कहानियों को बताया जाता था। ये विधा वक्त के साथ पुरानी हुई, तो अब दुर्लभ भी हो गई। इसे नई पीढ़ी के लिए संजो रहे हैं शुभाशीष नियोगी। आमतौर पर लकड़ी से बनने वाले कावट को शुभाशीष वेस्ट मैटीरियल से तैयार कर रहे हैं। उन्होंने इस तकनीक से स्कूली बच्चों को भी जोड़ा, ताकि नई पीढ़ी इससे जुड़ सके। शहर के एकमात्र पपेट थिएटर आर्टिस्ट शुभाशीष ने इस पर बात की। पाठशाला नहीं होती थी तो बंजारे इसके जरिये सुनाते थे कहानी
शुभाशीष ने कहा कि वर्षो पहले जब पाठशाला नहीं होती थी, उस दौरान कलाकार इसी तकनीक के जरिये समाज की अच्छी और बुरी बातों को कहानियों के द्वारा मंचित करते थे। ये कावट लकड़ी से बना होता है। जिसमें कई परतें होती हैं। हर परत के साथ कहानी का एक अध्याय होता है। इसे परत दर परत खोलकर सुनाया जाता है। इसमें चित्रित करके कहानी को दर्शाया जाता है। इसे मंदिर की तरह बनाया जाता है, क्योंकि पहले कावट के जरिये भगवान से जुड़ी कहानियों को सुनाया जाता था। इसे मंदिर के रूप में पूजा भी जाता था। मैंने ऐसा ही एक कावट कई वर्ष पहले राजस्थान से खरीदा था। जो अब कम ही वहां मिल पाता है। ऐसे में इसे शहर में दोबारा बनाया। जिसके लिए एल्यूमीनियम की रॉड का इस्तेमाल किया, ताकि ये अच्छे से मुड़ सके। क्योंकि इसमें काफी फोल्ड होते हैं, ऐसे में इस तरह का मैटीरियल जरूरी था, जो मजबूत और फोल्ड हो सके। इसमें मैंने हाथों से चित्रित कहानी के दृश्य को दिखाया है। जो कहानी दर कहानी बढ़ती रहती है। अंग्रेजी और अन्य कहानियां सुनाते हैं इस भारतीय तकनीक से
शुभाशीष ने जवाहर नवोदय विद्यालय के 72 स्टूडेंट्स को कावट तकनीक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इस तकनीक के जरिये वे अंग्रेजी और अन्य कहानियों को प्रदर्शित करते हैं। ताकि इसे नया रूप दिया जा सके। फिलहाल मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी कावट को समझे और साथ ही हमारी भारतीय तकनीक को भी, जिससे हम एक-दूसरे को कहानियां सुनाते थे। इसी तरह मैं पपेट थिएटर के जरिये वर्षो पुरानी अपनी परंपरा को भी जीवित रखना चाहता हूं, वेस्ट मैटीरियल का इस्तेमाल इसलिए करता हूं, ताकि कोई भी इसे बना सके।