दान व धर्म से निर्मलता को प्राप्त करती है आत्मा: राजेंद्रर मुनी
जैन सभा के प्रवचन हाल में प्रवचन करते हुए डा. राजेंद्र मुनि ने धर्म के विविध प्रकार समझाते हुए दान धर्म को स्व पर कल्यानक बतलाया।
संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में प्रवचन करते हुए डा. राजेंद्र मुनि ने धर्म के विविध प्रकार समझाते हुए दान धर्म को स्व पर कल्यानक बतलाया। शील धर्म व तप धर्म स्व के लिए है, कितु दान स्व पर दोनों को लाभ पहुंचाता है। देने वाला भी दान धर्म का पुण्य उपार्जन करता है साथ ही लेने वालों की आवश्यकता की पूर्ति होती है।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में कोई धर्म के आधार पर तो कोई मानवता के आधार पर दान करते हैं। दोनों में मानव कल्याण की भावनाएं निहित हैैं क्योंकि हमारा जीवन एक-दूसरे पर आधारित होने से एक-दूसरे की जरूरत रहती है। दान में भावना, देने के पहले देने के समय व देने के बाद भी शुद्ध रहनी चाहिए तभी दान सफल सार्थक कहलाता है। वस्तुत: दान अपनी मन की संतुष्टि के लिए होना चाहिए। इंसान के अलावा प्रकृति नदी-नाले छोटे बड़े वृक्ष निरंतर दान धर्म का कार्य कर रहे हैं। हमें इस महान प्रकृति से प्रेरणा लेकर दान की भावना बनानी चाहिए। मुनि जी ने हृदय के चार प्रकार बतलाते हुए कहा प्रथम कृपण हृदय वाला मानव न तो स्वयं शांति से रहता है न औरों को रहने देता है। दूसरा हृदय अनुदार कहलाता है जो स्वार्थी दिल कहलाता है। मात्र अपने लिए सोचता है। मरने के बाद समाज द्वारा वह तिरस्कार अपमान का पात्र बनता है। तीसरा ह्रदय उदार ह्रदय होता है जो सेवा दान पुण्य परोपकार के कार्य करते हुए प्राप्त तन, मन, धन को सदा सदुपयोग करता रहता है। चतुर्थ प्रकार का ह्रदय अति उत्तम निर्मल पवित्र होता है, जो अपना हित न चाहता हुआ औरों के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देता है। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि ने आगम स्वाध्याय कराते हुए सुख को आत्मिक सुख बतलाते हुए कहा कि धर्म श्रवण से ही वह सच्चा सुख प्राप्त होता है। बाहरी सुख सुविधाओं को त्याग कर सुबाहु राज कुमार परम सुख को प्राप्त करता है। महामंत्री उमेश जैन द्वारा सभी का हार्दिक अभिनंदन किया गया।