जानें कैसे, पंजाब के इन युवकों ने बिना सरकारी मदद के बदल दी गांव की तस्वीर
पांच युवकों ने 1200 की आबादी वाले गांव के 150 घरों को सफेद रंग से रंग दिया, गलियों में सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूक करती पेंटिंग बनाई।
सुभाष चंद्र, बठिंडा। सरकारी मदद के बिना यह काम तो नहीं हो सकता। यह बात अक्सर ही लोग किसी विशेष काम को लेकर कहते सुने जा सकते हैं। इस सोच को गलत साबित करते हुए पंजाब के गांव सुक्खा सिंह वाला के पांच युवकों ने अपने दम पर अपने गांव की तस्वीर बदल दी। करीब 1200 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 150 घर हैं। इन युवकों ने पूरे गांव के घरों को सफेद रंग से रंग दिया है। इन घरों को देखकर लगता है कि ये सफेद रंग की चादर से ढक दिए गए हों।
राज्य के सबसे पिछड़े हुए क्षेत्रों में शामिल मौड़ मंडी के इस गांव को देखने के लिए दूरदराज से लोग पहुंच रहे हैं। शाम के समय इस गांव की चौपाल में मेले जैसा नजारा होता है। दीपावली के दिन तो पूरे गांव के घरों पर दीपमाला कर ऐसा नजारा पेश किया कि अन्य गांवों के लोगों के अलावा विभिन्न अधिकारी भी उसे देखने के लिए पहुंचे। वे युवाओं के इस योगदान को सलाम किए बगैर नहीं रह सके।
एक से पांच युवा हुए और फिर बना कारवां
मानसा रोड पर स्थित गांव सुक्खा सिंह वाला में पाल सिंह सिद्धू के पिता कर्म सिंह सिद्धू का निधन हो गया था। पाल सिंह ने पिता की याद में गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में शानदार पार्क बनवा दिया। उन्होंने स्कूल को भी गोद ले लिया। वर्ष 2016 में मां सुरजीत कौर का निधन हो गया तो उन्होंने पूरे गांव में पौधरोपण कर दिया। अपनी खुद की नर्सरी होने के चलते पाल सिंह ने गांव में करीब 15 हजार फाइक्स के पौधे लगा दिए।
पाल सिंह के इस काम से प्रभावित होकर गांव के युवा गुरसेवक सिंह, हरदीप सिंह, जगतार सिंह कुक्कू और अमृतपाल सिंह भी उनके साथ हो लिए। बस फिर क्या था, एक से पांच युवा हुए और फिर कारवां ही बन गया, जिन्होंने पूरे गांव को आदर्श बनाने का बीड़ा उठा लिया। महज तीन वर्षों में ही उन्होंने गांव की तस्वीर बदलकर रख दी।
रात में गांव को महका रही रात की रानी
वर्ष 2015 में सड़कें अभी बनी ही थीं कि उन पर सफेद और पीली पट्टी लगा दी। पौधरोपण हो चुका था। प्रत्येक सप्ताह सड़कों की धुलाई और फिर झाड़ू उठाकर सफाई शुरू कर दी है। छप्पड़ के पानी को साफ कर दिया गया। प्रत्येक घर के द्वार पर नेम प्लेट्स लगाकर मोबाइल नंबर भी लिख दिया। अब तक करीब 20 हजार से अधिक फाइक्स और रात की रानी जैसे पौधे लग चुके हैं। रात की रानी के पौधे रात को पूरे गांव को सुगंधित कर देते हैं। इस गांव में न तो किसी दुकान पर तंबाकू बिकता है और न ही शराब का ठेका कभी खुला है।
पांचों युवकों के अनुसार गांव को देखने के लिए यूं तो अनेक अधिकारी अब तक यहां आ चुके हैं। आज तक किसी ने मदद नहीं दी। अब तक सात लाख रुपये गांव के विकास पर खर्च हो चुके हैं। यह अपने स्तर पर, गांव के लोगों और कुछ एनआरआइ मित्रों के सहयोग से खर्च की गई है। आर्थिक मदद के लिए एक बार डीसी दफ्तर भी गए थे, लेकिन वहां घंटों बैठकर वापस लौट आए।