आरटीआइ पर आरटीआइ, जवाब, आप थर्ड पार्टी हो, सूचना का नहीं अधिकार
जिले का डीसी दफ्तर सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की जमकर धज्जियां उड़ाने में लगा है।
गुरप्रेम लहरी, बठिडा : जिले का डीसी दफ्तर सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की जमकर धज्जियां उड़ाने में लगा है। अधिकारी उक्त कानून को सिरे से नकार कर मनमानी चला रहे हैं। प्रदेश सरकार का कोई भी विभाग आरटीआइ कार्यकर्ताओं द्वारा मांगी सूचना को समय पर नहीं दे रहा। अगर जानकारी दी भी जाती है तो वह आधी-अधूरी। जिले के डीसी को डाली एक आरटीआइ से ही उनके दफ्तर में इस प्रति की जा रही लापरवाही उजागर हुई। डीसी दफ्तर को 2018 में एक जनवरी से 31 दिसंबर तक 475 आरटीआइ की दरखास्तें प्राप्त हुई। लेकिन हैरानी की बात है कि इनमें से सिर्फ 209 यानि कि 44 फीसद का ही निर्धारित समय में जवाब दिया गया है।
आरटीआइ एक्टिविस्ट हरमिलाप ग्रेवाल ने बठिडा के डीसी दफ्तर को आरटीआइ में पूछा कि आपको पिछले साल कितनी आरटीआइ मिली और किसका जवाब कब तक दिया गया। इसके जवाब में जो जानकारी डीसी दफ्तर ने दी वह बहुत ही हैरान करने वाली है। डीसी दफ्तर ने कहा, 2018 में 475 में से 209 का ही जवाब निर्धारित समय पर दिया गया। इनमें भी आवेदकों को सूचना नहीं दी गई बल्कि उनको सिर्फ जवाब ही दिया। किसी को कहा कि आप थर्ड पार्टी हैं, इसलिए इस बारे में आपको सूचना नहीं दी जा सकती। किसी से जानबूझकर हजारों रुपये की मांग की गई ताकि आवेदक फीस से ही डर जाए।
आरटीआइ से प्राप्त सूचना के अनुसार डीसी दफ्तर बठिडा ने 67 दरखास्तों के जवाब निर्धारित समय के बाद यानि 30 दिन के बाद दिए। इनमें चार का समय भी शामिल है। कई दरखास्तें दफ्तर में पड़ी रहती है और अचानक चार-पांच माह बाद अधिकारी को आरटीआइ के तहत मांगी सूचना याद आती है तो उनका जबाव दे दिया जाता है। जबकि नियम के अनुसार एक माह में जवाब देना अनिवार्य है।
41 फीसद का रिकॉर्ड नहीं
साल 2018 में 199 दरखास्तें ऐसी हैं जिसका डीसी दफ्तर के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। डीसी दफ्तर के मुताबिक उनको 475 आवेदन मिले। इनमें से 199 को उन्होंने आगे ब्रांचों को फॉरवर्ड कर दिया। आवेदकों को इनके जबाव मिले या नहीं, इसकी कोई सूचना नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी जानकारी से इस बात का पता चला है। हैरानी तो यह है कि डीसी दफ्तर ने ऐसे केसों में आरटीआइ मिलने के पहले दिन ही उनको फॉरवर्ड नहीं किया। कई केस तो ऐसे हैं जिनको चार-पांच महीनों के बाद आगे भेजा गया। यानि कि इतने माह तक इनको अपने पास ही दबाकर रखा गया।
कांग्रेस के राज में ही हो रही लापरवाही
आवेदक आरटीआइ डालने के बाद समय पर जानकारी न मिलने के लिए कई बार लिखित में स्मरण पत्र प्रेषित करते रहते हैं। लेकिन अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगती। जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम मात्र कागजी आदान प्रदान तक ही सीमित रह गया है। जब से प्रदेश में कांग्रेस सरकार आई है तब से उनको आरटीआइ के तहत सूचना नहीं मिल रही जबकि अकाली सरकार में अधिकारी समय पर जवाब दे दिया करते थे। लेकिन चाहिए था इससे उलट, क्योंकि आरटीआइ को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लागू किया था।
हरमिलाप ग्रेवाल, आरटीआइ एक्टिविस्ट
चेक करा लेता हूं
डीआरओ का पद काफी समय से रिक्त पड़ा है। आरटीआइ के पीआइओ डीआरओ हैं। अब मेरे पास इसका चार्ज है। चेक करा लेता हूं कि इसमें इतनी देरी क्यों हो रही है।
सुखबीर सिंह बराड़, तहसीलदार कम पीआइओ