स्व में रमन करना ही वास्तविक सुख है : डा.राजेन्द्र मुनि
जैन संत डा. राजिदर मुनि ने स्व पर की परिभाषा करते हुए कहा कि संसार में स्व तत्व एक ही है जिसे आत्मा कहते हैसंसार सांसारिक पदार्थों की गणना पर में की जाती है।
जासं,बठिडा : जैन संत डाक्टर राजिदर मुनि ने स्व पर की परिभाषा करते हुए कहा कि संसार में स्व तत्व एक ही है, जिसे आत्मा कहते है,संसार सांसारिक पदार्थों की गणना पर में की जाती है। महाप्रभु महावीर ने सुख का मूल कारण स्व की आत्मा को बतलाया, जब जब हम स्व से हटकर पर पदार्थों में सुख का अनुभव करते हैं, वहीं से हमारे दुखों की शुरूआत हो जाती है, क्योंकि जिन पर वर्तमान में प्राप्त कर सुख का अनुभव करते हैं, समय आने पर उनका वियोग होने पर वहीं हमें कष्ट प्रदान करने लगते है। घर परिवार वैभव प्राप्त होने पर सुख तो इनका वियोग होने पर दुख प्रारम्भ हो जाता है। आगम की भाषा में इसे संयोग वियोग कहा जाता है, जिनका संयोग होता है, उनका वियोग भी अवश्यभावी है।
जैन मुनि ने कहा कि महावीर भगवान ने कहा है कि स्व आत्मा पर जो आधारित हो, वही सुख सदाकाल रहता है। अत बाहरी पदार्थों से आने वाला सुख मात्र आभास दिखावा सवरूप है। सभा में साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि द्वारा सुख विपाक सूत्र द्वारा उन भव्य आत्माओं का विवेचन किया गया, जिन्होंने संसार की असारता को समझकर संयम त्याग का मार्ग ग्रहण किया एवं हमें यह शुभ सन्देश दिया की संयम ही जीवन है। महामंत्री उमेश जैन ने सबका आभार व्यक्त किया।