चारित्र की कोहेनूर की तरह रक्षा करें: डा. राजेंद्र मुनि
उन महान त्यागी तपस्वी आत्माओं को वंदन करते हुए चरित्र के तीन प्रकार बतलाए।
संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में संत डा. राजेंद्र मुनि ने पर्यूषण के चौथे दिन चरित्र संयम पर बोलते हुए उन महान त्यागी तपस्वी आत्माओं को वंदन करते हुए चरित्र के तीन प्रकार बतलाए।
उन्होंने कहा कि मन, वचन और काया का संयम जीवन में अत्यावशक है। मन के संयम के अभाव में तरह-तरह के रोग शोक जीवन में पनपते रहते हैं। जब व्यक्ति मन का गुलाम बन जाता है तो मन में हजारों इच्छाएं प्रतिदिन उभरती पणपति रहती है। उन तमाम इच्छाओं को इस जन्म में तो क्या कई जन्मों में भी पूर्ण नहीं किया जा सकता। मन के मते चलने वालों का पतन ही हुआ है। मन संयम से जीवन का उत्थान कल्याण होता है। इसी के साथ वाणी का संयम भी आवश्यक है। वाणी के चलते तो महाभारत हो गया। हम घर परिवार संघ समाज में शांति चाहते हैं, तो हमेशा बोलने के पूर्व एक-एक शब्द हृदय रूपी तराजू में तोल-तोल के बोलना सीख लें। इसी से जुडा हुआ है अपनी काया का संयम अर्थात पांच इंद्रियों को वश में रखना भी जरूरी है। जो हमें पांच इंद्रिया कान, आंख, नाक, जीभ व शरीर के अंग प्राप्त हुए हैं उनका संयम भी जरूरी है। मुनि जी ने चरम शरीर जीवों अर्थात अंतिम शरीर धारी उन आत्माओं को, जो उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेती है, का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि चारित्र बोलता है राम कृष्ण महावीर नानक को हम नमन उनके चारित्र के कारण ही तो करते हैं। गांधी जी का स्मरण उनके चारित्र को लेकर ही किया जाता है।
सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा अंतगढ़ आगम के 90 जीवों का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण के लघु भ्राता श्री गज सुकुमाल के मुनि बनने का व उसी दिन मोक्ष गति प्राप्त करने का वृतांत श्रवण कराकर धर्म मार्ग में दृढ़ रहने की प्रेरणा प्रदान की। महामंत्री उमेश जैन ने कल के प्रवचन में भगवान महावीर का जन्म उत्सव कार्यक्रम में सभी को हार्दिक आमंत्रित किया।