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धर्म अराधना करना ही ही चातुर्मास: डा. राजेंद्र मुनी

कपड़ा मार्केट में स्थित जैन सभा के प्रवचन हाल में जैन संत पूज्य डा. राजेंद्र मुनि ने कहा कि हमारा मन हमेशा शरीर मुखी बना रहता है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 10:01 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 10:01 PM (IST)
धर्म अराधना करना ही ही चातुर्मास: डा. राजेंद्र मुनी
धर्म अराधना करना ही ही चातुर्मास: डा. राजेंद्र मुनी

संस, बठिडा: कपड़ा मार्केट में स्थित जैन सभा के प्रवचन हाल में जैन संत पूज्य डा. राजेंद्र मुनि ने कहा कि हमारा मन हमेशा शरीर मुखी बना रहता है। शरीर को लेकर कई तरह के चितन मन में खाने, पीने, घूमने फिरने, व्यापार व परिवार इत्यादि को लेकर चलते रहते है, कितु हम शरीर मुखी न बनकर आत्म मुखी बनने का प्रयास करें।

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उन्होंने कहा कि आने वाले इन चार महीनों में आत्मा का चितन मनन करें। आत्मा की खुराक लें जिसमें दया, दान, पौषध, प्रतिक्रम, तप, जप, साधना करके पूर्व भवों के कर्म बंधनों से मुक्ति प्राप्त करें। इसे वर्षावास भी कहा जाता है। भगवान महावीर का प्रमुख सिद्धांत अहिसा का रहा है। वर्षावास में स्थान स्थान पर जीवों की उत्पति होती रहती है, हमारी दौड़ा दौड़ी आने जाने से असंख्य जीवों की हिसा होती है। एक स्थान पर रहकर धर्म अराधना करना ही चातुर्मास कहलाता है। मुनि ने आत्मा को ही सामायिक बताते हुए कहा की प्रतिपल प्रतिक्षण समता भाव में रहना ही सच्ची सामायिक है। साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा सामूहिक पा‌र्श्वनाथ भगवान का जाप व भक्ति का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अखंड महामंत्र नवकार का जाप व सामूहिक सामायिक तथा अनेक तप जप के संकल्प लिए गये, प्रधान महेश जैन एवं महामंत्री उमेश जैन व समस्त समाज की और से सामूहिक वंदना कर आभार व्यक्त किया गया। कर्म के अनुसार ही फल मिलेगा: शुभिता महाराज जैन स्थानक धर्मसभा में सत्संग के दौरान जैन भारती सुशील कुमारी महाराज की पौत्र शिष्या साध्वी शुभिता महाराज ने कहा कि जीवन में कितना ही उठा-पटक कर लो, लेकिन कर्म के अनुसार ही फल मिलेगा।

उन्होंने कहा कि मोह-माया से दूर रहकर जीवन को धर्म की राह पर चलने दो तो भवसागर से पार हो जाओगे। मृत्यु ही जीवन का एक मात्र कटु सत्य है, बाकी सब मिथ्या है। जीवन तभी सार्थक है जब उसे मानव सेवा परोपकार में लगाया जाए। ज्ञान-ध्यान सीखोगे तो आपका समय सार्थक होगा, हमारा समय सार्थक होगा। भगवान महावीर स्वामी का शासन जयवंत है। उनकी आज्ञा के अनुसार ही साधु-साध्वियों का विचरण चलता रहता है।


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