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प्रार्थना से होता है रोगों का निवारण : डा राजेंद्र मुनि

जैन सभा प्रवचन हाल में राजेंद्र मुनि ने भक्तामर स्तोत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि यह चमत्कारी महास्तोत्र भक्त द्वारा की गई आदिनाथ की भक्ति है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 10:01 PM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 10:01 PM (IST)
प्रार्थना से होता है रोगों का निवारण : डा राजेंद्र मुनि
प्रार्थना से होता है रोगों का निवारण : डा राजेंद्र मुनि

संस, बठिडा: जैन सभा प्रवचन हाल में राजेंद्र मुनि ने भक्तामर स्तोत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि यह चमत्कारी महास्तोत्र भक्त द्वारा की गई आदिनाथ की भक्ति है। इसीलिए प्रारंभ में भक्त व अमर देव को स्मरण किया गया। नामकरण भक्तामर रखा गया।

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उन्होंने बताया कि विभिन्न श्लोकों में यंत्र, मंत्र, तंत्र का उपयोग किया गया। प्रत्येक श्लोक में विशेष ध्वनियों का उच्चारण हुआ है। प्राचीन काल में बड़ी से बड़ी बीमारियों का निराकरण ध्वनि विज्ञान से सम्पन्न होता था। आज भी किरणों द्वारा आप्रेशन आदि करवाए जा रहे हैं। हमारी ध्वनियों से ही संसार का संपूर्ण क्रम चल रहा है। टीवी मोबाइल या अत्याधुनिक साधनों का प्रयोग भावना व ध्वनि से हो रहे हैं। आने वाले समय में दृश्य व अदृश्य ध्वनियों से संसार का संचालन संभव है। जो विज्ञान तंत्र मंत्र यंत्र के माध्यम से जाना जाता है। नामकरण समयानुसार अदलते बदलते रहते हैं। मूल विषय वस्तु वो ही विधमान रहती है। नास्तिक विचारक अज्ञानता के कारण धर्म का पदार्थ को अस्वीकार करते हो कितु हकीकत यही थी है व रहेगी। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा महान सुखदाई कलियुगी कल्पवृक्ष भक्तामर जी के विविध रूपों का वर्णन विवेचन किया गया। भक्तजनों के हृदय श्रवण कर हर्ष विभोर है। समाज के महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई। आराधरना भक्ति बिना साधना का कोई मूल्य नहीं: जैन साध्वी जैन स्थानक में साध्वी डा. सुनीता महाराज ने कहा कि क्रोध, मान, माया लोभ, एक श्रृंखलाबद्ध कषाय की प्रक्रिया है। अगर हमारी आत्मा में मान उत्पन्न हो गया तो हमें मायाचारी व लोभ उत्पन्न हो जाएगा, जो प्रतिकूल निमित्त मिलने पर क्रोध उत्पन्न करेगा। साध्वी ने कहा कि जब तक हमारी आत्मा के अंदर विनय शीलता, विनय संपन्नता नहीं आएगी, तब तक धर्म हमारे जीवन में प्रवेश नहीं कर सकता।

इस अवसर पर साध्वी शुभिता ने कहा परमात्मा की आराधना भक्ति बिना साधना का कोई मूल्य नहीं होता है। जो धर्म करेगा वह कष्ट में होगा तो भी दुख में भी सुख मानकर स्वीकार करेगा। उसमें करुणा मैत्री भाव रहेगा। भक्ति भाव शुद्ध होगा तभी आत्म कल्याण होगा। भाव का पुण्य देवलोक के रूप में मिलता है। पूजन से संपूर्ण शांति मिलती है। पूजा संस्कारों से घर को स्वर्ग बना सकते है। युवा वर्ग रोजगार व्यवसाय भोजन के पीछे धर्म का ध्यान छोड़ देते हैं।

उन्होंने कहा कि लोग स्वार्थी नहीं बनें। कर्तव्य का पालन करते हुए धर्म आराधना नहीं छोड़ना चाहिए। जिनका जो जिस समय जो लिखा है वह तो होगा ही, लेकिन हम धर्म आराधना का त्याग नहीं करना चाहिए। सफलता में नम्रता विफलता में धैर्य प्रदान करते हैं। भगवान मन में ऐसे बसे जैसे मक्खन में घी, नदी में धार, सागर में लहर, फूलों में खुशबू, भगवान से रिश्ता नदी और धारा जैसा होना चाहिए। नौका स्वास्थ्य नदी पार करते समय साथ रहती है। बाद में अलग हो जाती है। प्रीति सागर व नदी जैसी होनी चाहिए। जो प्रभु भक्ति में एक में होते हैं वह फिर कभी अलग नहीं होते हैं। वचनों को पाकर जीवन में परिवर्तन लाना चाहिए। स्वतंत्रता सम्यक कल्याण मित्र का जीवन में महत्वपूर्ण योगदान होता है। ज्ञान दर्शन चरित्र ही जीवन का कल्याण कर सकता है। जीवन में बिना मित्र रह जाना लेकिन दुर्जन मित्र नहीं करना चाहिए। मित्रता सज्जन व्यक्ति से ही करनी चाहिए। जीवन एक प्रयोगशाला है।


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