आत्मचिंतन का संदेश देता है पर्युषण पर्व: डा. राजेंद्र मुनि
जैन सभा के प्रवचन हाल में संत डा. राजेंद्र मुनि जी ने महापर्व पर्युषण पर्व के संबंध में कहा कि परि उपसर्ग वस धातु अन्न प्रत्यय मिलाकर इस शब्द का निर्माण हुआ है।
संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में संत डा. राजेंद्र मुनि जी ने महापर्व पर्युषण पर्व के संबंध में कहा कि परि उपसर्ग, वस, धातु, अन्न, प्रत्यय मिलाकर इस शब्द का निर्माण हुआ है। जिसका भावार्थ है सभी तरह से मन को हटाकर पूर्णत: अपने आप में अर्थात आत्मा के समीप रहना। आत्मा का ही चितन मनन करना। हम अनंत काल से शरीर व शरीर से संबंधित पदार्थों का ही संग्रह करते रहे। खाना पीना कमाना तन को अच्छा रखना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य रहा है।
उन्होंने बताया कि प्रभु महावीर ने पर्युषण के इन आठ दिनों में आत्म पर कार्य करने की प्रेरणाएं प्रदान की हैं। जैन इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजा महाराजा सम्राट व तत्कालीन उद्योगपति लोग अपने सारे लौकिक कार्य बंद कर इन दिनों में आत्मा लोकन में लग जाते थे। मैं वास्तव में कौन हूं मेरी आत्मा कहां से आई है? भविष्य में यहां से मरकर कहां जांऊगा? यद्यपी ये बातें असंभव सी लगती है कितु धर्म का ज्ञाता इन बातों को आसानी से ज्ञात कर सकता है। इसके लिए आवश्यक है अपने भीतर अवलोकन करने की। पर्व की व्याख्या करते हुए मुनि जी ने लोकोत्तर पर्व बतलाते हुए इन पर्युषण के पावन दिनों में तप, जप, सामायिक साधना, दान व जीवदया के शुभ कार्यों की प्रेरणा प्रदान की।
सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि ने अंतगढ़ सूत्र का विधिवत प्रारंभ किया, जिसके अंतर्गत उन त्यागी मोक्षगामी आत्माओं का उल्लेख किया गया। संसार की असारता का ख्याल कर के उन जीवों ने इसी भव में मोक्ष गति को पा लिया था, इन आठ दिनों में क्षमा भाव रखते हुए संसार के समस्त जीवों के सुखी रहने की शुभ कामनाएं की जाती हैैं। महामंत्री उमेश जैन ने सभी का हार्दिक स्वागत किया। डाक्टर सुभाष जैन ने प्रभावना का लाभ लिया।