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सिद्धांतों और मूल्य से भरी है भारत की परंपरा: प्रो. तिवारी

पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूपी) के अंग्रेजी विभाग की ओर से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 Mar 2022 09:50 PM (IST)Updated: Sat, 26 Mar 2022 09:50 PM (IST)
सिद्धांतों और मूल्य से भरी है भारत की परंपरा: प्रो. तिवारी
सिद्धांतों और मूल्य से भरी है भारत की परंपरा: प्रो. तिवारी

संस, बठिडा: पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूपी) के अंग्रेजी विभाग की ओर से 24 व 25 मार्च को नरेटिव्स आफ नेशन कंटेंपरेरी लिटरेरी, कल्चरल एंड थेओराटिक्ल डिबेट्स विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के हार्वर्ड विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स से प्रो. मार्टिन पुचनर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (भारत) से प्रो. धनंजय सिंह मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। वहीं इस मौके पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी ने कहा कि भारत की एक समृद्ध परंपरा है, जो सिद्धांतों और मूल्यों से भरी हुई है।

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कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में प्रो. पुचनर ने कहा कि राष्ट्र एक काल्पनिक अवधारणा है और इसे अपने लोगों को एक साथ रखने के लिए अतिरिक्त उपकरणों की आवश्यकता है। कथा-वाचन सबसे शक्तिशाली उपकरण में से एक के रूप में विकसित हुआ है और कागज और मुद्रण प्रौद्योगिकियों के आविष्कार ने हमारे पूर्वजों को साहित्य विकसित करने और अपने ज्ञान, विश्वास और संस्कृति को आने वाली पीढि़यों को हस्तांतरित करने में मदद की है। उन्होंने सामाजिक मान्यताओं को आकार देने में पवित्र पुस्तकों में उपलब्ध सिद्धांतों व मूलभूत ग्रंथों की भूमिका पर चर्चा की और बदलते वैश्विक परिस्थितियों पर साहित्य के महत्व पर प्रकाश डाला।

दूसरे दिन प्रो. धनंजय सिंह ने विचार और परंपरा में राष्ट्र और दर्शन विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने राष्ट्र को भारत के नाट्यशास्त्र से उपजे परिदृश्य, पदार्थ और विशेषता के रूप में समझा है। बेनेडिक्ट एंडरसन, राजा राव और विजय मिश्रा जैसे पाश्चात्य और भारतीय विचारकों द्वारा प्रस्तावित राष्ट्र के विभिन्न विचारों को चर्चा में लाकर उन्होंने राष्ट्र के उत्तर-औपनिवेशिक और प्रवासी दृष्टिकोण पर जोर दिया। प्रो. सिंह ने दोहराया कि राष्ट्र राज्य के औपनिवेशिक विचार को त्यागने की जरूरत है, क्योंकि भारत एक समुदाय के रूप में स्वयं के विचार से उपजा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या राष्ट्र एक अदृश्य इकाई के रूप में अनुभव का आधार हो सकता है।

इस मौके पर कुलपति प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी ने रेखांकित किया कि भारत की प्राचीन सभ्यता ने दुनिया को ईश्वर एक है। वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवंतु सुखिन आदि जैसे शक्तिशाली राष्ट्रीय आख्यान प्रदान किए हैं जो हमेशा पूरी मानवता के लिए लाभदायक रहेंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस कार्यशाला में प्रस्तुत विचार-विमर्श प्रतिभागियों को भौतिक सीमाओं से परे राष्ट्र की अवधारणा को समझने में मदद करेंगे और इस ग्रह को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने में योगदान देंगे। पांच तकनीकी सत्रों में 20 शोध पत्र किए प्रस्तुत

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिस दौरान भारत और विदेशों के शिक्षकों और शोधार्थियों ने विभिन्न उप-विषयों पर 20 शोध पत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में प्रो. रामकृष्ण वुसिरिका, डीन-इन-चार्ज अकादमिक और प्रो. अंजना मुंशी, डीन रिसर्च ने मुख्य वक्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया और पेपर प्रस्तुतकर्ताओं को बधाई दी। अंग्रेजी विभाग की प्रमुख डा. शाहिला जफर ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन दिया। उन्होंने आयोजन समिति के सदस्यों प्रो. अल्पना सैनी, डा. विपन पाल सिंह (समन्वयक), डा. दिनेश बाबू पी. और डा. पृथ्वी राज के साथ-साथ पीएचडी रिसर्च स्कालर्स- अनुषा हेगड़े, अंकित शर्मा, डॉन जोसेफ, गुरजीत सिंह और सूरज सोनी को इस कार्यशाला के सुचारू निष्पादन के लिए बधाई दी।


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