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एम्स में बिना आपरेशन निकाली जाएगी गुर्दे की पथरी

एम्स बठिडा के यूरोलाजी ओपीडी विभाग में तीन करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक मशीन लगाई गई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 10:14 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:14 PM (IST)
एम्स में बिना आपरेशन निकाली जाएगी गुर्दे की पथरी
एम्स में बिना आपरेशन निकाली जाएगी गुर्दे की पथरी

नितिन सिगला,बठिडा

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एम्स बठिडा के यूरोलाजी ओपीडी विभाग में तीन करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक मशीन एक्स्ट्राकापोरियल शाक वेव लिथोट्रिप्सी (इएसडब्लूएल) स्थापित हो चुकी है, जिससे बिना आपरेशन और एनेस्थीसिया के गुर्दे की पथरी को निकाला जाएगा। मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. सतीश कुमार गुप्ता ने बताया कि यह जर्मन से लाई गई ऐसी मशीन उत्तर भारत में सिर्फ एम्स बठिंडा में ही उपलब्ध है। यह मशीन गुर्दे की पथरी से पीड़ित रोगियों के लिए वरदान साबित होगी। मशीन का उद्घाटन 26 जनवरी को एम्स के निदेशक और राज्यसभा के सांसद श्वेत मलिक करेंगे।

मरीजों को काफी कम दाम पर इस सुविधा का लाभ दिया जाएगा। ऐसे काम करती है मशीन

लिथोट्रिप्सी मशीन के आपरेटिग टेबल पर मरीज को लेटा दिया जाएगा। टेबल पर पेट की सीध में पानी से भरा तकिया लगा दिया जाएगा। यह किडनी के पीछे होगा। इसके बाद शाक वेव से पथरी को टारगेट किया जाएगा। पथरी को क्रश करने के लिए एक से दो हजार शाक वेव की जरूरत होती है। इस प्रोसिजर के बाद किडनी की पथरी का चूरा पेशाब के साथ बाहर निकलेगा। मशीन से यह होंगे फायदे

लिथोट्रिप्सी से सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपरेशन नहीं करना पड़ेगा। जब आपरेशन नहीं होगा तो मरीज और उसके तीमारदार को अस्पताल में ब्लड के लिए भटकना नहीं होगा। इस मशीन से किडनी में मौजूद पथरी को क्रश करने की पूरी प्रक्रिया में 45 से 60 मिनट का समय लगेगा। उपचार के बाद अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। गलत खानपान का नतीजा है पथरी

किडनी स्टोन गलत खानपान का नतीजा है। गुर्दे की पथरी होने पर असहनीय दर्द होता है। जब नमक एवं अन्य खनिज (जो मूत्र में मौजूद होते हैं) एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तब पथरी बनती है। कुछ पथरी रेत के दानों की तरह बहुत छोटे आकार की होती है तो कुछ मटर के दाने की तरह। पथरी मूत्र से बाहर निकल जाती है, लेकिन जो पथरी बड़ी होती है वह बहुत ही परेशान करती है।

अभी आपरेशन से होता है इलाज

अभी गुर्दे की पथरी से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए चीरफाड़ वाला आपरेशन व लेजर विधि से सुराख कर उपचार किया जाता है। इसमें मरीज को बेहोश करने की जरूरत पड़ती है। आपरेशन के बाद उसे 24 से 48 घंटे तक अस्पताल में दाखिल होकर डाक्टर की निगरानी में रहना पड़ता है। आपरेशन के बाद 10 से 15 दिन तक उसे बैड रेस्ट भी करना पड़ता है। वर्तमान में नई विधि में मरीज को इससे निजात मिलने वाली है।


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