भक्ति की शुभ तरंगों से रोग निवारण संभव: डा. राजेंद्र मुनि
भक्ति का तापमान जब चरम सीमा पर पहुंचता है तो अशुभ परमाणु अशुभ पापमय शक्तियां समाप्त हो जाती हैं।
जासं,बठिडा: जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने भक्तामर के उप संहार पर बोलते हुए कहा कि इसके रचनाकार रचना करते हुए प्रभु आदिनाथ की भक्ति में इतने तल्लीन हो गए कि उनकी एकाग्रता पूर्णत: समर्पित होने लगी। युगल शब्दों की ध्वनियों से जो बेड़ियों से शरीर बंधा जकड़ा हुआ था, वह स्वत: मुक्त होने लगा एवं समस्त कष्टों का निवारण हो गया।
उन्होंने कहा कि भक्ति का तापमान जब चरम सीमा पर पहुंचता है, तो अशुभ परमाणु अशुभ पापमय शक्तियां समाप्त हो जाती हैं। अर्थात आसुरी शक्तियां भी देविक शक्तिओं के सामने नत मस्तक हो जाती हैं। इतिहास के उज्जवल पृष्ठ इस बातों के आज भी साक्षी हैं। चाहे नल दमयंती के कष्ट हों, चाहे राम सीता की, मीरा, कबीर, सूरदास या प्रभु महावीर आदि के जीवन मे आने वाली बाधाएं हों, उनका सहज निवारण हो जाता है। इसके पीछे मुनि ने तीव्र भावों के परिणामों का असर बतलाया जो वर्तमान में भी सम्भव है। सभा मे आचार्य देवेन्द्र जयंती निमित्त प्रारम्भ में भक्तामर पाठ के साथ णमो लोए सव्व साहूनम का सामूहिक जाप करवा कर वंदनाएं समर्पित की गर्इं एवं इसी के साथ 48 दिवसीय विधान में भाग लेने वाले भाई बहनों का साधना के साथ अभिनन्दन किया गया।
साधना रत समस्त श्रावक श्रविका जनों ने इसी क्रम को जीवन मे अपनाने का संकल्प ग्रहण किया एवं अनेक साधकों ने इस विधान के दौरान होने वाले शुभ परिणाम संस्मरण का अनुभव सुनाया। महामंत्री उमेश जैन ने सभी का आभार प्रकट करते हुए 31अक्टूबर को आचार्य देवेन्द्र जन्म जयंती के विशेष आयोजन में सभी को आमंत्रित किया व सामाजिक सूचनाएं प्रदान कीं।