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बठिंडा में एचआइवी पाजीटिव रक्त चढ़ाने के मामले में सिविल सर्जन चंडीगढ़ तलब, बीटीओ का तबादला

बठिंडा सिविल अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में तीन बच्चों व महिला को एचआइवी पाजीटिव ब्लड चढ़ाने के मामले में हेल्थ सेक्रेटरी हुस्न लाल ने सिविल सर्जन को चंडीगढ़ तलब किया है। साथ ही मामले में ब्लड बैंक के बीटीओ का तबादला कर दिया गया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2020 04:39 PM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 04:39 PM (IST)
बठिंडा में एचआइवी पाजीटिव रक्त चढ़ाने के मामले में सिविल सर्जन चंडीगढ़ तलब, बीटीओ का तबादला
एचआइवी पाजीटिव ब्लड चढ़ाने केे मामले में सिविल सर्जन तलब। सांकेतिक फोटो

जेएनएन, बठिंडा। सिविल अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में पिछले डेढ माह में एक के बाद एक लापरवाही कर थैलेसीमिया पीड़ित तीन बच्चों व एक महिला को एचआइवी पाजिटिव रक्त चढ़ाने के मामले में हेल्थ सेक्रेटरी हुसन लाल ने वीरवार को अपना बठिंडा दौरा रद कर सिविल सर्जन बठिंडा डा. अमरीक सिंह संधू को पूरा रिकार्ड लेकर चंडीगढ़ तलब कर लिया है। इसके कारण सीएमओ वीरवार सुबह ही पूरा रिकार्ड लेकर हेल्थ सेक्रेटरी के पास पहुंच गए। जहां पर हेल्थ सेक्रेटरी ने बठिंडा सिविल अस्पताल में हो रहे नए-नए कारनामों को लेकर सीएमओ डा. संधू की जमकर क्लास लगाई और पूरे मामले की जांच कर आरोपित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ बनती कार्रवाई करने के लिए कहां गया।

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इसके साथ ही भविष्य में ऐसी घटना न हो, इसके लिए सीएमओ को अस्पताल के प्रबंधों पर विशेष ध्यान देने के आदेश दिए गए। इसी बीच, ब्लड बैंक के बीटीओ डा. मयंक जैन का तबादला कर उनकी जगह पर डा. रजिंदर कुमार की नई तैनाती कर दी गई है। वहीं, जांच कमेटी ने ने जिन चार लैब टैक्निशियनों को मामले में आरोपित करार दिया था उनके खिलाफ सेहत विभाग पंजाब के पास कार्रवाई के लिए सिफारिश की है, लेकिन वीरवार को उक्त चारों कर्मी सिविल अस्पताल में पूर्व की तरह अपनी ड्यूटी कर रहे थे। उनके खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया गया और नहीं उनका तबादला किया गया।

दूसरी तरफ सिविल अस्पताल में अनट्रेड व सिफारिशी टेक्निकल कर्मियों की भर्ती करने की आशंका के चलते ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों की कारगुजारी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। इसमें रिप्लेसमेंट एजेंसी की तरफ से जिन कर्मचारियों को ठेके पर तैनात किया जाता है उनके पास जहां अनुभव की भारी कमी है वहींं उन्हें तकनीकि ज्ञान की भी कमी है, जिसके कारण सिविल अस्पताल में आए दिन लापरवाही हो रही है व मरीजों को बिना जांच पड़ताल के ही एचआइवी रक्त चढ़ाया जा रहा है।

वहीं, बीती 17 नवंबर को थैलेसीमिया पीड़ित 13 साल के बच्चे को एचआइवी पाजिटिव रक्त चढाने की लिखित शिकायत सिविल सर्जन व संबंधित अधिकारियों के पास परिजनों की तरफ से की गई है। इससे पहले आला अधिकारी इस मामले में यह कहकर किसी तरह की कार्रवाई करने से बचते रहे कि उनके पास पीड़ित परिवार की तरफ से कोई भी शिकायत नहीं दी है। इसके कारण वीरवार को बठिंडा थैलेसीमिया वेलफेयर सोसायटी के पदाधिकारियों ने पीड़ित परिवार को लेकर एसएमओ बठिंडा को लिखित शिकायत दी। इस टिप्पणी के बाद पूरे सुुबूत व तथ्यों के साथछ प्रभावित बच्चे के परिजनों ने अधिकारियों को शिकायत दी व मामले में आरोपी लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी व विभागीय कारर्वाई करने की मांग की है।

पीड़ित बच्चे की माता बलजीत कौर की तरफ से दी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि सिविल अस्पताल में ब्लड बैंक प्रबंधन से लेकर आला अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए लगातार लापरवाही बरती व उनके बच्चे को एचआइवी पाजिटिव ब्लड देकर उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया है। बिना जांच ही एचआइवी संक्रमित खून थैलेसीमिया के मरीज बच्चों को चढ़ाया गया है।

गौर हाे कि 3 अक्टूबर को थैलेसीमिया मरीज एक बच्चे को ब्लड चढ़ाने के बाद ब्लड बैंक के ही एक कर्मचारी ने किया था। 3 अक्टूबर से 17 नवंबर के बीच अब तक तीन थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों सहित एक महिला को एचआइवी संक्रमित ब्लड चढ़ाने के केसों के उजागर होने के बाद लोग सकते में हैं, वहीं सिविल अस्पताल प्रबंधन के हाथ-पांव फूले हुए हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर मात्र लीपापोती हो रही है।

असल जिम्मेदार अधिकारियों को बचाने में जुटा सेहत विभाग

राज्य सेहत विभाग की सख्ती के बाद अब सिविल अस्पताल में पिछले छह माह में ब्लड बैंक से रक्त इश्यू करवाने वालों की जांच करवाने के लिए कहा है। इस मामले में 3 अक्टूबर के केस में जिम्मेदार तीन कर्मियों में मात्र एक पर एफआइआर दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया है, जबकि दो कांट्रेक्ट कर्मियों ब्लड बैंक इंचार्ज बीटीओ व एलटी को पहले ट्रांसफर किया व बाद में नौकरी से बर्खास्त कर आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की गई, जबकि 7 नवंबर के केस में कांट्रेक्ट कर्मियों को आरोपित ठहराने के बाद उन पर कार्रवाई कर सेहत विभाग खानापू्र्ति कर रहा है।

अब सवाल उठता है कि क्या इस गंभीर मामले में केवल निचले स्तर के कर्मी ही आरोपित हैंं, जबकि कर्मचारियों के कामकाज की देखरेख करने व प्रबंधकीय व्यवस्था देखने वाले अधिकारी इसमें दूध के धुले हुए हैंं। आला अधिकारियों के सामने एक माह में एक के बाद एक बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाया जा रहा है, जबकि अधिकारी मात्र खानापूर्ति कर मामले को दबाने व कर्मियों को बचाने में ही अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटे हैं। इसमें छह माह से एलाइजा टेेस्ट करने वाली मशीन खराब पड़ी थी। इस मशीन को ठीक करवाने की जिम्मेदारी किसकी थी व अगर उस अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया व बिना जांच के ही लोगों को संक्रमित खून चढ़ाया गया तो क्या उसके खिलाफ विभागीय व कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।

फिलहाल सिविल अस्पताल बठिंडा में पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार, भतीजा भाईवाद व राजनीतिक सिफारिश में काम करने जैसी कुर्तियों से डगमगा रहा है, लेकिन अधिकारी इसे ठीक करने के बजाय जी हजूरी व अपनोंं को बचाने की जुगत में जुटे हैं। इस सबके बीच आम आदमी लाल खून के काले कारोबार के चलते अपने परिजनों की जिंदगी को मौत के मुंह में धकेलने को मजबूर हो रहा है।

रक्त की सही जांच होती तो ना होते यह हालात

ब्लड बैंक में डोनेट ब्लड की जांच मैक एलाइजा मशीन के खराब होने पर रेपिड टेस्ट से काम चलाया गया जो कम प्रभावी है। किट बचाने के चक्कर में यह टेस्ट किए भी गए या नहीं, सभी चुप्पी साधे हैं। 3 अक्टूबर केस में एचआइवी पाजिटिव डोनर ने मई 2020 में भी ब्लड डोनेट किया था, लेकिन कागजों में जानकारी होने के बाद भी उसे एचआइवी स्टेट्स नहीं बताया गया। 7 नवंबर को खूनदान करने वाला डोनर सिविल अस्पताल में पहले तीन बार ब्लड डोनेट कर चुका है तथा उसका रक्त किन-किन लोगों को चढ़ा है इसका पता लगाया जा रहा है।


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