संसार के समस्त पदार्थ यही रह जाते हैं: डा. राजेंद्र मुनि
जैन सभा के प्रवचन हाल में जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने संसार के समस्त अनित्य पदार्थों का वर्णन किया।
संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने संसार के समस्त अनित्य पदार्थों का वर्णन करते हुए कहा कि मानव भ्रान्तिवश कई बार अनित्य पदार्थों को भी नित्य मान लेता है। उसके पीछे रात-दिन एक कर देता है। मन की चाह अनंत है इसका कभी अंत नहीं होता अपितु चाह रखने वाले का ही अंत हो जाता है। शरीर के साथ समस्त पदार्थ अनित्य होते हुए भी मोहवश उसी के पीछे जीवन यात्रा का प्रारंभ व अंत हो जाता है।
मुनि जी ने उदाहरण देते हुए महात्मा बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग सुनाया कि जब वह राजकुमार पद पर आसीन थे तो पिता की ओर से सख्त हिदायत दी गई की ऐसी कोई वस्तु या घटना बुद्ध के सामने न हो जिसे देखकर वराग्य भाव उत्पन्न हो जाए। लाख सचेत रहने के बाद भी एक दिन रथ पर आरुढ़ होकर निकले तो सामने से उन्हें मरा हुआ आदमी का क्लेवर नजर आया, पूछने पर सारथी ने कहा जो मरण इसके साथ घटा है वह सभी के साथ घटने वाला है। इस छोटी-सी घटना से बुद्ध का सोया हुआ वैराग्य जाग गया और उन्होंने उसी समय संकल्प ले लिया कि मैंने जीवन के इस जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पानी है। मुझे ये राग रंग बढ़ाने वाली वस्तुओं का त्याग कर सन्यास लेना है एवं स्व पर का कल्याण करना है।
उन्होंने कहा कि अनित्य भावना वाले अनेक प्रसंग हमारे आपके जीवन में आते ही रहते है फिर भी हम मोह ममत्व के चलते अपने को जागृत नहीं कर पाते हैं। नितिकारों ने लिखा है कि यह धन, वैभव इस धरती से निकला व इसी धरती पर रह जाता है। इसके साथ तमाम पशु आदि पदार्थ भी यही रहने हैं। परिजन श्मशान के आगे साथ नहीं निभा पाते। सुंदर काया चिता पर आग के हवाले कर दी जाती है। अपने किए कर्म ही साथ चलते हैं। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा काल चक्र का वर्णन करते हुए चतुर्थ आरा काल का विवेचन प्रस्तुत कर बतलाया गया वह सुखमय शांतिमय समय कहलाता है। सभा में महामंत्री उमेश जैन द्वारा चार सितंबर से प्रयुषण पर्व के लिए सभी को आमंत्रण निमंत्रण दिया गया।