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दुबई से लौटी बेटियां बोलीं, नरक से निकलकर आई, अब अपने देश में ही करेंगी मेहनत

लड़कियों के लिए विदेश विशेषकर अरब देश में मजदूरी करना किसी नरक से कम नहीं। अपने ही देश में मेहनत कर कम रोटी खाना ही सबसे अछा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 11:57 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 11:57 PM (IST)
दुबई से लौटी बेटियां बोलीं, नरक से निकलकर आई, अब अपने देश में ही करेंगी मेहनत
दुबई से लौटी बेटियां बोलीं, नरक से निकलकर आई, अब अपने देश में ही करेंगी मेहनत

रविदर शर्मा, अमृतसर

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लड़कियों के लिए विदेश विशेषकर अरब देश में मजदूरी करना किसी नरक से कम नहीं। अपने ही देश में मेहनत कर कम रोटी खाना ही सबसे अच्छा है। अब वे कभी भी विदेश जाकर मजदूरी करने का नाम नहीं लेंगी। यह बातें शुक्रवार को दुबई से लौटी लड़कियों ने श्री गुरु रामदास जी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर रोते-रोते कही। इन लड़कियों ने कहा कि वे एक सपना लेकर दुबई गई थी, लेकिन वहां की धरती पर पांव रखने के कुछ समय बाद ही उनका सपना चूर-चूर हो गया। हाउस कीपिग का झांसा लेकर भेजा दुबई

महानगर की ग्वाल मंडी की बबली ने बताया कि एजेंट ने उसे हाउस कीपिग का झांसा देकर दुबई भेजा, लेकिन वहां एक कंपनी में रख दिया और बंदी बना लिया गया। उसने जब हाउस कीपिग की नौकरी दिलवाने की बात की तो उसके साथ टालमटोल किया जाने लगा। इस पर उसने वापस भारत भेजने की बात एजेंट से कही तो उसने इसके लिए डेढ़ लाख रुपये मांगे। इसके बाद उन्होंने डा. एसपीएस ओबराय के साथ संपर्क किया और अब वह उनकी बदौलत अपने घर लौट सकी है। मजदूरी के बाद भी रखा जाता था भूखा

मुक्तसर साहिब जिला के पंडोरी गांव की मनदीप कौर ने बताया कि एजेंट उनसे एक लाख रुपये लेकर दुबई काम दिलाने का झांसा देकर अपने साथ ले गया। वहां काम तो कोई नहीं दिलाया उलटा उन्हें बंदी बना लिया गया। उन्हें न तो बाहर निकलने दिया जाता और न ही किसी के साथ बात करने की ही इजाजत होती। दुबई में उनसे मजदूरी करवाने के बाद भी भरपेट खाना नहीं दिया जाता। इस दौरान वह कई दिनों तक भूखी ही रही। दुबई जाकर टूट गया विदेशी चमक का सपना

लुधियाना जिला के गांव शेखूपुरा की अमृतपाल कौर ने बताया कि वह तो परिवार को आर्थिक तंगी से निकालने का सपना लेकर दुबई गई थी, लेकिन वहां ले जाकर उसे बंदी बना लिया गया। जब उसने एजेंट से काम दिलाने की बात कही तो वह एक-दो दिन में काम दिलाने का झांसा देता रहा। तीन महीने बीतने के बाद भी जब उसे काम नहीं दिलाया गया तो उसने एजेंट से भारत भेजने की गुहार लगाई। इस पर एजेंट ने कहा कि वह उसे तभी भारत भेजेंगे जब वह उसे डेढ़ लाख रुपये देगी। हर उम्मीद टूटने के बाद डा. ओबराय के साथ संपर्क किया और वह अपने परिवार में लौट सकी।


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