इस 'ऑरो' को जिंदगी की चाह, लेकिन माता-पिता की बेबसी से संकट में एक साल के मासूम की जान
अमृतसर के एक साल का एक मासूम दुर्लभ हाइड्रोसिफलिस रोग से पीडि़त है। गरीबी उसके माता-पिता की बेबसी बन गई है और बच्चे की जिंदगी की चाह की कोई राह नजर नहीं आ रही।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। इस बच्चे की कहानी आपको विचलित कर सकती है। एक वर्षीय इस बच्चे के सिर का आकार आम बच्चों से तीन गुणा अधिक है। हाइड्रोसिफलिस (जलशीर्ष) रोग की वजह से बच्चे के मस्तिष्क में फ्ल्यूड (तरल पदार्थ) भरा है। हाइड्रोसिफलिस रोग तो जन्म से था, लेकिन कोरोना काल में अब यह बच्चा कोरोना संक्रमित भी हो गया है। अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पा' के ऑरो की तरह दिखने वाले इस बच्चे की जिंदगी जोखिम में है, लेकिन गरीबी के कारण माता-पिता बेबस हैं और उसका इलाज नही करवा पा रहे। वे बस उसकी सलामती की दुआ मांगने को ही मजबूर हैं। अमृतसर में हाइड्रोसिफलिस रोग से पीडि़त यह पहला बच्चा है। सरकारी अस्पताल में उसे इलाज नहीें मिल पा रहा है
हाइड्रोसिफलिस रोग से बढ़ा सिर का आकर, उस पर कोरोना की मार
कोट खालसा क्षेत्र में जन्मे इस बच्चे को सरकारी अस्पताल लाया गया। दुर्भाग्यवश सरकारी अस्पताल में न्यूरोसर्जन व पीडिएट्रिक सर्जन नहीं हैं। बच्चे को किसी निजी अस्पताल में उपचार करवाने की बात कहकर डॉक्टरों ने परिजनों को अपनी बेबसी बता दी। अब बच्चा अपने घर पर है।
-अमृतसर के कोट खालसा में रहने वाले दंपती का एक वर्षीय बच्चा दुर्लभ रोग का शिकार
कोरोना संक्रमित होने की वजह से उसे अलग रखना जरूरी है, लेकिन उसकी आयु एक वर्ष की है, इसलिए अभिभावक ऐसा नहीं कर सकते। बच्चे के पिता सब्जी बेचने का काम करते हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। बीमारी के कारण शरीर के अनुपात में बच्चे के सिर का आकार काफी बड़ा है। डॉक्टरों के अनुसार बच्चे का उपचार होना बेहद जरूरी है। उपचार में लाखों का खर्च होगा।
मस्तिष्क की बीमारी है हाइड्रोसिफलिस
मेडिसिन डॉक्टर मनिंदर सिंह के अनुसार हाइड्रोसिफलिस रोग मस्तिष्क से जुड़ा है। ज्यादातर मामलों में इस बीमारी की वजह कुपोषण है। गर्भावस्था के दौरान फोलिक एसिड व आयरन की कमी की वजह से ऐसा होता है। जन्म से ही बच्चे के शरीर की तुलना में उसका सिर तेजी से बड़ा होता चला जाता है। मस्तिष्क में पानी की मात्रा काफी बढ़ जाती है। माथे की हड्डयिां तेजी से फैलने लगती हैं। जन्म के बाद सिर का आकार बढ़ता है और तीन सालों तक यह नब्बे फीसद तक बढ़ जाता है।
उन्हाें बताया कि ऐसे बच्चा कोमा में जा सकते हैं। ऑपरेशन के दौरान एक नली को मस्तिष्क में डालकर बड़ी रक्तवाहिनी में छोड़ दिया जाता है। इससे मस्तिष्क में जमा फ्ल्यूड शरीर से बाहर निकल जाता है। भविष्य में फ्ल्यूड न बने, इसके लिए दवाएं दी जाती हैं। लाखों में किसी एक बच्चे का जन्म इस अवस्था में होता है। जन्म के पहले दो तीन महीनों में ऐसे बच्चों की सर्जरी हो जाए तो ठीक है, वरना यह जोखिम भरा है।
बदहाल सरकारी सेहत सेवाएं
स्वास्थ्य सेवाओं का ढिंढोरा पीट रही पंजाब सरकार अमृतसर के सिविल अस्पताल व गुरु नानक देव अस्पताल में एक अदद न्यूरो सर्जन या पीडिएट्रिक सर्जन की व्यवस्था नहीं कर पाई। इन दोनों अस्पतालों में कोलोडियन बेबी, ब्लू बेबी जैसे असामान्य बच्चे जन्म ले चुके हैं। वहीं बच्चों के सिर पर चोट लगने, नवजात शिशुओं की किसी भी प्रकार की सर्जरी के लिए डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं।
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