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समर्पण व त्याग : ये नारियां सब पर भारी... अपनों को मौत के मुहाने से ऐसे खींच लाई

महिलाएं जब अपनों को बचाने की ठान लें तो वे हस्तरेखा के मायने बदल सकती हैं। जी हां इन महिलाओं ने साबित किया कि वह सब पर भारी हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 11:50 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 05:33 PM (IST)
समर्पण व त्याग : ये नारियां सब पर भारी... अपनों को मौत के मुहाने से ऐसे खींच लाई
समर्पण व त्याग : ये नारियां सब पर भारी... अपनों को मौत के मुहाने से ऐसे खींच लाई

अमृतसर [नितिन धीमान]। हाथों की लकीरों में एक जीवनरेखा भी होती है। हस्तरेेेेखा विज्ञान के अनुसार यह रेखा इंसान की आयु सीमा का प्रतीक है। इस रेखा को देख-परख कर ही हस्तरेखा विशेषज्ञ उम्र का आकलन करते हैं। खैर, हस्तरेखा का जो भी भावार्थ हो, लेकिन महिलाएं जब अपनों को बचाने की ठान लें तो वे हस्तरेखा के मायने बदल सकती हैं। जी हां, नारी सब पर भारी है। 

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पिछले तीन सालों में 135 महिलाओं ने अपनी किडनियां देकर अपनों की सांसों को टूटने से बचाया है। पति, बेटे, ससुर, दामाद आदि को महिलाओं ने ही दी किडनियां दी हैैं। गुरु नानक देव अस्पताल में किडनी प्रत्यारोपण अधिकृत कमेटी की बैठक में महिलाएं ही अपनों को किडनी देने के लिए आगे आईं। हालांकि परिवार में पुरुष सदस्य भी थे, जो अपनी किडनी दे सकते थे, पर महिलाओं ने समर्पण और त्याग का भाव दिखाते हुए यह पहल की।

वर्ष 2016 से 2019 तक किडनी कमेटी के सम्मुख पंजाब के कोने-कोने से मरीज प्रस्तुत हुए। ये मरीज किडनी फेल होने की वजह से मौत के मुहाने पर खड़े थे। किडनी कमेटी के सम्मुख इन तीन वर्षों में कुल 150 केस आए थे। इनमें से केवल 15 मरीजों को ही परिवार के पुरुष सदस्यों ने किडनी दी। वह भी इसलिए, क्योंकि परिवार में महिला सदस्य नहीं थीं। यदि थीं तो उनका शुगर लेवल अत्यधिक था। पुरुषों को बचाने में मां, बहन, पत्नी यहां तक कि मौसी ने भी अपनी किडनी हंसते-हंसते दे दी।

..और बचा लिया एक-दूसरे का सुहाग

हाल ही में अपना-अपना सुहाग बचाने के लिए दो महिलाओं ने खुद की जिंदगी दांव पर लगा दी। अपने-अपने पतियों की टूटती सांसों को सहेजना ही इन महिलाओं का संकल्प था, जिद थी। अमृतसर के गांव तारां कलां की संदीप कौर व गुरदासपुर के अमन नगर की मनजीत कौर ने अपनी किडनियां देकर अपने-अपने पति की जिंदगी बचाई। संदीप कौर के पति विक्रम सिंह का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था और संदीप कौर का बी पॉजिटिव। ब्लड ग्रुप मैच न होने से वह चाहकर भी अपने पति को किडनी नहीं दे पा रही थी।

ऐसी ही समस्या गुरदासपुर निवासी गुलजार सिंह के साथ थी। गुलजार का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था, जबकि उनकी पत्नी मनजीत कौर का ए पॉजिटिव। इसे महज संयोग ही कहें कि मनजीत कौर और संदीप कौर का मेल हुआ और दोनों का ब्लड ग्रुप इक-दूजे के पति से मैच कर गया। संदीप ने मनजीत से कहा- तू मेरा सुहाग बचा ले, मैं तेरे पति को जिंदगी दूंगी। पति के साथ सात फेरे लेकर साथ जीने-मरने की कसमें खाकर अद्र्धांगिनी बनीं इन महिलाओं ने इक दूजे के पति को किडनी देकर अपना-अपना सुहाग बचाया। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें नारी का समर्पण और त्याग देखकर किडनी कमेटी के सदस्य भी भावुक हो गए।

भाई को तड़पता नहीं देख सकी संदीप कौर

होशियारपुर के गांव फताहपुर की रहने वाली संदीप कौर के भाई की किडनियां फेल हुईं। भाई को तड़पता हुआ बहन नहीं देख सकी। उसे बचाने का एकमात्र विकल्प किडनी प्रत्यारोपण था। किडनी कमेटी के सम्मुख पेश होकर संदीप कौर ने गुहार लगाई कि वह सहर्ष अपने भाई को किडनी देना चाहती है। कमेटी ने मंजूरी प्रदान कर दी।

ज्यादातर पुरुष ही किडनी फेल्योर का शिकार

पंजाब में किडनी फेल्योर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। जीवनशैली व आहार में आए बदलाव की वजह से ऐसा हो रहा है। विशेषज्ञ डॉ. नवदीप शर्मा के अनुसार किडनी फेल्योर का शिकार ज्यादातर पुरुष ही हो रहे हैं। नशा सेवन के साथ-साथ गलत दवा खाने से भी यह रोग इंसान को गिरफ्त में ले लेता है।

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