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मानसिक विक्षिप्त बच्चों का दर्द देख पसीजा डा. अशोक उप्पल का मन, समर्पित कर दिया तन और धन

आजादी का अमृत महोत्सव भारत की प्रगति का परिचायक है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 09:00 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 09:00 AM (IST)
मानसिक विक्षिप्त बच्चों का दर्द देख पसीजा डा. अशोक उप्पल का मन, समर्पित कर दिया तन और धन
मानसिक विक्षिप्त बच्चों का दर्द देख पसीजा डा. अशोक उप्पल का मन, समर्पित कर दिया तन और धन

नितिन धीमान, अमृतसर: आजादी का अमृत महोत्सव भारत की प्रगति का परिचायक है। नि:संदेह, स्वाधीनता की बेड़ियां टूटने के बाद देश ने हर क्षेत्र में सफलता के आयाम स्थापित किए। अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के पश्चात जन-जन के स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना भी चुनौतीपूर्ण कार्य रहा।

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आज कई चिकित्सक इस क्षेत्र में असहायों की मदद कर रहे हैं। इन्हीं में एक नाम है डा. अशोक उप्पल का। डा. उप्पल न्यूरोलाजिस्ट हैं और पंजाब मेडिकल कौंसिल के सदस्य भी। एक चिकित्सक का धर्म मरीजों की जान बचाना है। इस धर्म को निभाते हुए डा. उप्पल एक और कर्म भी कर रहे हैं। मानसिक विक्षिप्त बच्चों की शिक्षा के लिए डा. उप्पल ने एक स्कूल की स्थापना की है। इस स्कूल में दर्जनों बच्चों को आक्यूपेशनल व फिजियो थैरेपी के जरिए जीवन जीने का सलीका सिखाया जा रहा है। अपनी मां राज रानी नाम पर श्रीमती राज रानी चेरीटेबल स्कूल फार स्पेशल चिल्ड्रेन की स्थापना की गई थी। इस संस्था में बच्चों के लिए सब कुछ निशुल्क है। डा. अशोक का कहना है कि ये बच्चे शारीरिक व रूप से स्वस्थ नहीं, पर मानसिक तौर पर इन्हें मजबूत बनाया जा सकता है। ऐसे बच्चे लर्निंग डिस्आडर का शिकार हैं। स्पेशल और अलग प्रकार की शिक्षा से इन्हें ठीक किया जाता है। डाक्टरों की एक बड़ी टीम इन बच्चों की सेवा में जुटी है। अब तक कई बच्चे इन थैरेपीज के माध्यम से ठीक हुए हैं। कोरोना काल में भी की मदद

डा. अशोक उप्पल ने कोरोना काल में स्वास्थ्य कर्मियों व फ्रंट लाइन वारियर्स के लिए ओपीडी फ्री की है। वहीं कोरेाना संक्रमितों को राहत किट्स भी उपलब्ध करवाईं। इस किट में कोरोना के उपचार में प्रयुक्त होने वाली दवाएं व जरूरी सामान है। कोरोना संक्रमण से मौत की आगोश में समाए अभिभावकों के बच्चों को डा. उप्पल ने एक-एक लाख रुपये आर्थिक सहायता प्रदान की। वह कहते हैं कि इस महामारी काल ने सबको बेबस कर दिया। अपनों का साथ छूट गया। जो लोग रोटी को मोहताज हुए उनके लिए हर महीने राशन का प्रबंध भी करवाया।

जनाना अस्पताल से सिविल अस्पताल तक सब अपग्रेड, हर बीमारी का इलाज यहां हो रहा

चिकत्सा के क्षेत्र में अब तक पूर्णत: आत्मनिर्भर हैं। अमृतसर के चिकित्सकों ने देश ही नहीं, विदेश में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। शहर में सबसे पहले ढाब खटिकां स्थित प्रिसेस आफ वेल्स जनाना अस्पताल स्थापित किया गया था। हालाकि इसकी शुरुआत 11 अक्टूबर 1940 को ब्रिटिश काल में हुई थी, पर आजादी के पश्चात देश की अपनी सरकार ने इस अस्पताल का विकास एवं विस्तार किया था। इसी प्रकार सरकारी मेडिकल कालेज गुरु नानक देव अस्पताल भी ब्रिटिश काल में ही शुरू हुआ। वहीं जलियांवाला बाग मेमोरियल सिविल अस्पताल की आधारशिला वर्ष 2002 में रखी गई थी। आज यहां के सरकारी एवं निजी क्षेत्र के डाक्टर हर बीमारी का उपचार करने में सक्षम हैं। हमारे बीच ऐसे कई चिकित्सक हैं जो निस्वार्थ भाव से मरीजों की सेवा कर रहे हैं।


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