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बेजान संगमरमर में फूंकते हैं जान, गुरुनगरी में गीत गाते हैं पत्थर

बरसों पहले एक हिंदी फिल्म आई थी गीत गाया पत्थरों ने। इस फिल्म में बेजान पत्थरों को सजीव रूप देने वाले शिल्पकार (मूíतकार) की अनोखी कहानी दिखाई गई थी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 11:55 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 11:55 PM (IST)
बेजान संगमरमर में फूंकते हैं जान, गुरुनगरी में गीत गाते हैं पत्थर
बेजान संगमरमर में फूंकते हैं जान, गुरुनगरी में गीत गाते हैं पत्थर

हरदीप रंधावा, अमृतसर

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बरसों पहले एक हिंदी फिल्म आई थी 'गीत गाया पत्थरों ने'। इस फिल्म में बेजान पत्थरों को सजीव रूप देने वाले शिल्पकार (मूíतकार) की अनोखी कहानी दिखाई गई थी। गुरुनगरी अमृतसर में भी कला के ऐसे ही जादूगर बेजान संगमरमर के पत्थरों को सजीव करते हैं। इन्हें देखकर लगता है कि ये बोल उठेंगे, गा उठेंगे। अमृतसर में पत्थरों को सजीव करने की कला की बहुत पुरानी परंपरा है। यहा के कलाकार देश भर में संगमरमर की कलामक मूíतया बनाकर भेजते हैं। यहा के कलाकारों की खास खूबी है, ग्राहकों की इच्छा को वे पत्थरों में ढाल देते हैं यानि इच्छा के अनुरूप भंगिमा व भाव प्रकट करने वाली मूíतया बनाते हैं। अमृतसर के राम तलाई चौक के नजदीक सिटी सेंटर स्थित भंडारी मार्बल एंड हैंडीक्राफ्ट से मकराणा मार्बल से बनी मूíतया राज्य सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी अलग पहचान रखती हैं। राजस्थानी कारीगर बनाते हैं मार्बल की मूíतया

भंडारी मार्बल एंड हैंडीक्राफ्ट के मालिक भंडारी लाल शर्मा ने बताया कि लगभग 115 साल पहले उनके पिता पंडित अनंत राम ने हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना स्थित गाव दौलतपुर से अमृतसर में आकर कुलचे व छोलों का कारोबार शुरू किया था। साल 2000 के करीब उन्होंने कारोबार बदला और मार्बल एंड हैंडीक्राफ्ट का काम शुरू किया। अभी कला के इस कार्य में उनका बड़ा बेटा अखिल शर्मा व छोटा बेटा निखिल शर्मा भी हाथ बंटा रहे हैं। उनके साथ करीब 12 हुनरमंद कारिगर संगमरमर को तराश कर उसे सजीव मूíतयों का रूप देते हैं। ये सभी राजस्थान से संबंधित हैं। मूíतयों में मार्बल व रंगों की है बेहतरीन क्वालिटी

भंडारी लाल शर्मा का कहना है कि शहर ही नहीं बाहर से भी लोग अपनी मन की इच्छा के मुताबिक साधु, संतों और देवताओं की फोटो भेजकर मूíतया तैयार करवाते हैं। हम उनकी इच्छाओं के अनुरूप भावपूर्ण मूíतया तैयार कर तय समय में घर या मंदिर तक पहुंचाते हैं। इन मूíतयों को तैयार करने में बढ़यिा क्वालिटी का मार्बल इस्तेमाल कर उन्हें बेहतरीन रंगों से सजाया जाता है। 12 इंच की मूíत बनाने में चार-पाच दिन लगते हैं

भंडारी मार्बल एंड हैंडीक्राफ्ट के कारिगर नेमी चंद स्वामी (निवासी राजस्थान के मकराना जिला नागौर) का कहना है कि साल-2001 से मूíत बनाने का काम कर रहे हैं। बारहवीं के बाद संगमरमर की मूíतया बनाना सीखने लगा। 12 इंच की मूíत बनाने में लगभग चार-पाच दिन का समय लग जाता है। एक से लेकर पाच फीट की मूíतया होती हैं तैयार

भंडारी लाल शर्मा ने बताया वह पंजाब के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी मूíतया सप्लाई करते हैं। उनके पास एक से साढ़े पाच फीट तक की मूíतया तैयार होती हैं। वैसे डिमाड पर किसी भी साइज की मूíत बनवा दी जाती है। इनमें अधिकतर लाल, सफेद और काला पत्थर इस्तेमाल होता है। मूíतयों में श्री राम दरबार, मा दुर्गा, बावा बालक नाथ, बावा लाल दयाल, काली माता, श्री राधा-कृष्ण, बजरंग बली, शिव परिवार, श्रीचंद, भैरव नाथ आदि की मूíतया उनके पास हर समय उपलब्ध रहती हैं।


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