बदलने लगी जीएनडीएच की तस्वीर, सफाई- सेनिटेशन सहित कई व्यवस्थाओं में सुधार
अमृतसर मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग द्वारा संचालित गुरुनानक देव अस्पताल की तस्वीर अब तेजी से बदलने लगी है। ि
— मेडिकल सुप¨रटेंडेंट ने कहा, यूजर चार्जेस मिलने से काफी राहत मिली
— थैलेसीमिया वार्ड व हीमोफीलिया वार्ड का भी हो रहा है विस्तार
फोटो — 47
जागरण संवाददाता, अमृतसर
मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग द्वारा संचालित गुरुनानक देव अस्पताल की तस्वीर अब तेजी से बदलने लगी है। किसी समय अव्यवस्थाओं से घिरे इस अस्पताल में अब सफाई, सेनिटेशन, वॉर्डो की मेंटेन, खराब चिकित्सा उपकरणों की रिपेयर का काम तेजी से चल रहा है।
दरअसल, अस्पताल प्रशासन को यूजर चार्जेज की मद में प्राप्त होने वाली राशि खर्च करने का अधिकार मिलने की वजह से यह करिश्मा हुआ है। पिछले वर्ष स्वास्थ्य मंत्री ब्रह्म मो¨हदरा ने अस्पताल को यूजर चार्जेज खर्च करने का अधिकार दिया था। यूजर चार्जेज का अर्थ वह राशि है जो मरीजों से इलाज अथवा लेबोरेट्री टेस्ट की मद में प्राप्त की जाती है। पूर्व में यह राशि पंजाब सरकार के वित्त विभाग के खाते में जमा करवाई जाती थी। ऐसे में अस्पताल प्रशासन को छोटे मोटे काम करवाने के लिए पहले एस्टीमेट बनाकर भेजना पड़ता था और फिर ऊपर से स्वीकृति मिलने के बाद काम करवाया जाता था। एक नल भी ठीक करवाना हो तो इसकी रिपेयर की अप्रवूल तक लेनी पड़ती थी।
अब यूजर चार्जेज मिलने के बाद अस्पताल प्रशासन अपने स्तर पर ही सारे काम निपटा रहा है।
अस्पताल के मेडिकल सुप¨रटेंडेंट डॉ. सु¨रदर पाल का कहना है कि मेरा प्रयास है कि अस्पताल में मूलभूत ढांचा मजबूत हो। सफाई सेनिटेशन की व्यवस्था दुरुस्त कर दी गई है। पानी की सप्लाई भी निरंतर जारी है। इसके अलावा थैलेसीमिया मरीजों को विशेष सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है। अब अस्पताल में हीमोफिलिया मरीजों का उपचार भी शुरू किया गया है। रेडियोडायग्नोस्टिक विभाग में हर अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरण है। सीटी स्केन, एमआरआइ व अल्ट्रासाउंड तथा एक्सरे की फिल्में भी उपलब्ध हैं। पूर्व में फिल्में खत्म थीं, जिन्हें यूजर चार्जेज से प्राप्त आय से खरीदा गया है।
गौरतलब है कि पंजाब के प्रमुख चिकित्सा संस्थान गुरुनानक देव अस्पताल में सफाई, सेनिटेशन का बुरा हाल था। जगह-जगह गंदगी बिखरी रहती थी। वार्डो की खिड़कियां व शीशे टूटे हुए थे। कुछ वार्डों के बाथरूमों में नल तक गायब हो चुके थे। ऐसे में मरीजों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था, वहीं सरकार के प्रति उनमें खासा आक्रोश भी पैदा हो जाता था। अस्पताल प्रशासन महीने में एक या दो सेमीनार या वर्कशॉप करवाता है। इसके लिए चाय पानी का बंदोबस्त व बाजार से जरूरी सामान खरीदा जाता था। यह सामान भी उन्हें उधर लेना पड़ता था। फिर बिल भेजे जाते थे, जिन्हें पास होने में काफी वक्त लगता था। ऐसे में दुकानदारों ने उधार देना भी बंद कर दिया था।