गर्भवती को रैफर कर देता है गायनी स्टाफ
अमृतसर : गर्भवती महिलाओं की इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी करवाने का ¨ढढोरा पीट रही पंजाब सरकार के सरकारी अस्पतालों में इन महिलाओं को भारी पीड़ा उठानी पड़ रही है।
जागरण संवाददाता, अमृतसर
गर्भवती महिलाओं की इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी करवाने का ¨ढढोरा पीट रही पंजाब सरकार के सरकारी अस्पतालों में इन महिलाओं को भारी पीड़ा उठानी पड़ रही है। अमृतसर के सिविल अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को ठीक उस वक्त दूसरे अस्पतालों में रैफर कर दिया जाता है जब उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ती है। नौ महीने तक सिविल अस्पताल में चेकअप करवाने वाली गर्भवतियों की ¨जदगी खतरे में बताकर उसे यहां से चले जाने को कहा जाता है। गायनी डॉक्टरों व नर्सिंग स्टाफ से लैस इस अस्पताल में ऐसा नित्य प्रतिदिन हो रहा है। शनिवार को भी ऐसा ही एक मामला सामने आया। एक गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही, लेकिन सिविल अस्पताल के गायनी स्टाफ ने उसे गुरुनानक देव अस्पताल चले जाने को कहा। बेबस परिजन गिड़गिड़ाते रहे कि महिला की जान जोखिम में पड़ जाएगी, पर स्टाफ ने एक बार जो कह दिया, वही बार-बार दोहराते रहे।
पूनम निवासी गेट हकीमां ने बताया कि उनकी बहू भावना शर्मा नौ महीने की गर्भवती होने के कारण सिविल अस्पताल में चेकअप करवा रही थी। हम हर महीने यहां आते और गायनी डॉक्टर से जांच करवाकर लौट जाते। शनिवार को भावना को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। हम उसे सिविल अस्पताल ले आए। यहां गायनी वार्ड के स्टाफ ने बिना जांचे-परखे ही कह दिया कि कोख में पल रहा बच्चा कमजोर है। जच्चा-बच्चा दोनों की जंदगी खतरे में हैं, इसलिए भावना को गुरुनानक देव अस्पताल स्थित बेबे नानकी मदर एंड चाइल्ड केयर सेंटर ले जाएं।
पूनम के अनुसार स्टाफ की डरा देने वाली बातें सुनकर हम सिहर गए। हमने भावना को एंबुलेंस में बिठाया और गुरुनानक देव अस्पताल जाने की बजाय एक निजी अस्पताल में ले आए। निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने आधे घंटे में डिलीवरी कर दी। डॉक्टरों ने हमें बताया कि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। बच्चे का वजन सामान्य था। स्टाफ की शिकायत सिविल सर्जन से करेंगे।
दर्द डिलीवरी का नहीं, व्यवस्था में खामियों का है
किसी समय सिविल अस्पताल में प्रतिमाह 450 डिलीवरी होती थीं। अब यह आंकड़ा महज 300 तक सिमट गया है। दैनिक जागरण द्वारा की गई पड़ताल में यह स्पष्ट हुआ कि सिविल अस्पताल में प्रतिदिन दो गर्भवती महिलाओं को यह कहकर रैफर किया जाता है कि उनकी हालत गंभीर है। कोख में बच्चा मर सकता है अथवा महिला की जान जा सकती है। अफसोस है कि सिर्फ डिलीवरी करने तक सीमित सिविल अस्पताल में यह काम भी ढंग से नहीं हो रहा।
शिकायतें मिली हैं, जांच करूंगा
मुझे ऐसी शिकायतें मिल रही हैं। मैं जांच करूंगा कि आखिर स्टाफ ऐसा क्यों कर रहा है। हमारे पास तीन गायनी डॉक्टर हैं, वहीं नर्सिंग स्टाफ की संख्या भी ठीक है। शिकायतकर्ता पूनम मुझे लिखकर दे। इस मामले की जांच के लिए एक पैनल बनाया जाएगा। हम यह देखेंगे कि पिछले तीन महीनों में कितनी गर्भवती महिलाओं को यहां से रैफर किया गया। उन्हें रैफर करने की वजह क्या रही।
— डॉ. रा¨जदर अरोड़ा
सीनियर मेडिकल ऑफिसर सिविल अस्पताल, अमृतसर।