Move to Jagran APP

किडनी पेशेंट्स और गर्भवती महिलाओं पर 'सरकारी' अत्याचार

। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को पटरी पर लाने की ज्यादातर सरकारी घोषणाएं निरर्थक साबित हो रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 12:49 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 12:49 AM (IST)
किडनी पेशेंट्स और गर्भवती महिलाओं पर 'सरकारी' अत्याचार
किडनी पेशेंट्स और गर्भवती महिलाओं पर 'सरकारी' अत्याचार

नितिन धीमान, अमृतसर

loksabha election banner

सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को पटरी पर लाने की ज्यादातर सरकारी घोषणाएं निरर्थक साबित हो रही हैं। सिविल अस्पताल अमृतसर में जो स्थिति बनी है वह मरीजों के लिए बेहद पीड़ादायी है। इस अस्पताल में मरीजों के साथ 'सरकारी अत्याचार' हुआ है। वीरवार को रेडियोलॉजी विभाग एवं डायलिसिस यूनिट बंद हो गए। स्वास्थ्य विभाग ने रेडियोलॉजिस्ट और मेडिसिन डॉक्टर को पदोन्नत कर सरकारी मेडिकल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर बनाकर भेज दिया है, लेकिन सिविल अस्पताल में रिक्त हुए पदों को भरने की दिशा में पहल नहीं की।

वीरवार को इन दोनों विभागों के बाहर ताला जड़ा देखकर मरीजों की पीड़ा और बढ़ गई। अल्ट्रासाउंड सेंटर के बाहर सुबह सात बजे से ही गर्भवती महिलाएं पहुंच गई थीं। कुछ महिलाएं आठ माह की गर्भवती थीं और उनकी कोख में पल रहे बच्चे की पोजीशन की जांच करना बेहद जरूरी था। ठीक इसी प्रकार गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन करवाने से पहले मरीजों का अल्ट्रासाउंड होना लाजमी था। ऐसे मरीज भी अल्टासाउंड केंद्र के बाहर खड़े रहे, मगर उन्हें क्या मालूम था कि अब यहां डॉक्टर नहीं है, इसलिए उनका टेस्ट नहीं हो सकेगा। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग ने अल्ट्रासाउंड टेस्ट करने वाली रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सुमन भगत को सहायक प्रोफेसर के रूप में पदोन्नति देकर मेडिकल कॉलेज भेज दिया है। यही वजह है कि वीरवार को यह विभाग बंद रहा। सुबह 10 बजे जब मरीजों को जानकारी मिली कि डॉक्टर का स्थानांतरण हो चुका है तो वे व्याकुल हो गए। वीरवार को अस्पताल पहुंचीं 26 गर्भवती महिलाओं और 12 सामान्य मरीजों में से एक का भी अल्ट्रासाउंड नहीं हो पाया। बता दें कि सिविल अस्पताल में प्रतिदिन 40 से अधिक गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं, जबकि विभिन्न रोगों से पीड़ित 10 से 15 मरीजों को भी यह टेस्ट अनिवार्य रूप से करवाना पड़ता है। वहीं, कुछ मरीजों ने आपातकालीन स्थिति में निजी डायग्नोस्टिक सेंटरों में 800 रुपये खर्च कर टेस्ट करवाया, जबकि बाकी आर्थिक अभाव के चलते टेस्ट नहीं करवा सके और लौट गए।

ठीक इसी प्रकार डायलिसिस यूनिट भी बंद रहा। इस यूनिट का संचालन करने वाले मेडिसिन डॉक्टर इंद्रजीत सिंह को भी मेडिकल कॉलेज भेजा गया है। इस यूनिट में वीरवार को छह किडनी पेशेंट्स डायलिसिस करवाने पहुंचे, लेकिन बाहर ताला लगा देख ठिठक गए। इन बेबस मरीजों को तो यह बताने वाला भी कोई न था कि अब यहां डॉक्टर नहीं है इसलिए उनका ट्रीटमेंट अथवा टेस्ट नहीं हो पाएगा। खतरे में किडनी पेशेंट्स की जिदगी दिलबाग सिंह निवासी सुल्तानविड रोड ने कहा कि मैं पिछले एक साल से किडनी रोग से जूझ रहा हूं। दोनों किडनियां जवाब दे गई। डॉक्टर ने कहा है कि या तो किडनी ट्रांसप्लांट करवाओ या फिर सप्ताह में एक बार डायलिसिस करवाओ। मेरे पास न तो इतने आर्थिक साधन हैं कि ट्रांसप्लांट करवा सकूं और न ही किडनी डोनर की व्यवस्था हो पाई है, इसलिए डायलिसिस करवाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं। स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टर का स्थानांतरण करवाकर हमें मुश्किल में डाल दिया है। इससे पहले वर्ष 2018 में भी स्वास्थ्य विभाग की अदूरदर्शी नीति के कारण डायलिसिस यूनिट आठ माह तक बंद रहा था। तब डॉ. मनिदर सिंह का स्थानांतरण किया गया था और अब डॉ. इंद्रजीत सिंह का। संध्या निवासी मजीठा रोड ने कहा कि मैं आठ माह की गर्भवती हूं। गायनी डॉक्टर ने जांच कर बताया है कि गर्भ में बच्चे की पोजीशन ठीक नहीं, इसलिए अल्ट्रासाउंड करवाना जरूरी है। सिविल अस्पताल में अल्ट्रासाउंड सेवा बंद है। मेरे पास इतने पैसे नहीं कि निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में जाकर अल्ट्रासाउंड करवा सकूं। डर लगता है कि कहीं कोख में पल रहे बच्चों के साथ कोई अनहोनी न हो जाए। दो दिन में शुरू हो जाएगी डायलिसिस व अल्ट्रासाउंड सेवा

सिविल अस्पताल के सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ. राजिदर अरोड़ा ने कहा कि आज काफी मरीज आए थे। डॉक्टर नहीं होने की वजह से उन्हें खासी परेशानी हुई है। हमें इस बात का खेद भी है। डायलिसिस यूनिट को कार्यान्वित करने के लिए मैंने सिविल सर्जन डॉ. हरदीप सिंह घई से प्रार्थना की है कि वे वेरका अस्पताल में कार्यरत डॉ. राजकुमार को डेपुटेशन पर सिविल अस्पताल में लगाएं। डॉ. राजकुमार एमडी मेडिसिन स्पेशलिस्ट हैं, वहीं उनके पास डायलिसिस विभाग को संचालित करने का अनुभव भी है। इसी प्रकार सिविल अस्पताल में कार्यरत डॉ. बनप्रीत सिंह रेडियोलॉजिस्ट हैं। वह अल्ट्रासाउंड करने के लिए पंजीकृत भी हैं। पूर्व में डॉ. सुमन भगत थीं, इसलिए हमने डॉ. बनप्रीत को रेडियोलॉजी का काम नहीं सौंपा। अब सिविल सर्जन से अपील की है कि वे डॉ. बनप्रीत को भी रेडियोलॉजी विभाग में काम करने की अनुमति प्रदान करें। निश्चित ही एक दो दिन में दोनों विभागों में काम सुचारू ढंग से चलने लगेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.