सरकार का दावा- फ्री है डिलीवरी, पर जीएनडीएच के डॉक्टर खर्च करवाते हैं हजारों
अमृतसर गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों से डिलीवरी करवाने की नसीहत दे रही सरकार इन अस्पतालों में फैली कुव्यवस्था का ट्रीटमेंट नहीं कर पा रही।
— गर्भवती महिला की डिलीवरी से पहले डॉक्टर ने निजी लेबोरेट्री से टेस्ट करवाए, हजारों रुपये की दवाएं व सामान भी मंगवाया
— जननी सुरक्षा योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में फ्री है डिलीवरी की प्रक्रिया
— मेडिकल सुपरिटेंडेंट के पास पहुंची शिकायत, पर कार्रवाई नहीं
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नितिन धीमान, अमृतसर
गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों से डिलीवरी करवाने की नसीहत दे रही सरकार इन अस्पतालों में फैली कुव्यवस्था का ट्रीटमेंट नहीं कर पा रही। जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल गुरु नानक देव अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को न दवा मिलती है और न ही डॉक्टर। सोमवार को यहां उपचाराधीन एक महिला की डिलीवरी तब तक नहीं की गई जब तक उनके परिजन निजी मेडिकल स्टोर्स से दवाएं व सर्जिकल सामान लेकर न आए। देश के सभी सरकारी अस्पतालों की तरह इस सरकारी अस्पताल में निशुल्क डिलीवरी का नियम लागू है, पर हजारों रुपये खर्च करवाकर ही डॉक्टर डिलीवरी करते हैं।
दरअसल, पूजा नामक महिला को गुरु नानक देव अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। पूजा के पति सुनील के अनुसार वह पूजा का ट्रीटमेंट पहले सकत्तरी बाग स्थित सरकारी सेटेलाइट अस्पताल से करवा रहे थे। सेटेलाइट अस्पताल से सभी टेस्ट निशुल्क हुए थे। डिलीवरी का समय नजदीक आने पर सेटेलाइट अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि अब वह इसे गुरु नानक देव अस्पताल ले जाए। रविवार को मैं पूजा को गुरु नानक देव अस्पताल की गायनी विभाग की यूनिट नंबर 3 में ले आया। यहां कार्यरत डॉक्टर ने कहा कि पूजा के सभी टेस्ट करवा लो। मैंने उनसे कहा कि हमने सभी टेस्ट सरकारी सेटेलाइट अस्पताल से करवाए हैं, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि आप निजी लेबोरेट्री से टेस्ट करवाकर लाओ, ताकि हम पूजा का ट्रीटमेंट शुरू कर सकें।
सुनील के अनुसार गुरुनानक देव अस्पताल में सभी टेस्टों की सुविधा उपलब्ध है। इसके बावजूद मुझे 3000 रुपये खर्च कर निजी लेबोरेट्री से टेस्ट करवाने पड़े। टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर ने कहा कि पूजा की डिलीवरी के वक्त कुछ दवाओं व सर्जिकल सामान की जरूरत पड़ेगी। यह भी खरीदकर ले आओ। मरता क्या न करता, मैं निजी मेडिकल स्टोर गया और साढ़े तीन हजार की दवाएं, दस्तावेज व सर्जिकल सामान खरीदकर लाया। इसके बाद डॉक्टरों ने डिलीवरी की।
सुनील के अनुसार सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी की सुविधा निशुल्क रखी गई है। अब तो सरकार डिलीवरी के बार गर्भवती महिला की डाइट के लिए छह हजार रुपये देने की घोषणा भी कर चुकी है। दूसरी तरफ गुरुनानक देव अस्पताल में न निशुल्क डिलीवरी होती है और न ही सरकार द्वारा भेजी जाने वाली राशि दी जाती है। इस अस्पताल में गायनी से संबंधित सभी दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन डॉक्टर कमीशन के चक्कर में मरीजों शोषण कर रहे हैं।
सुनील कुमार ने इस मामले की शिकायत अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. शिवचरण से लिखित रूप में की। हालांकि डॉक्टर शिवचरण का कहना है कि अस्पताल में अभी दवाएं आ नहीं रहीं, जिसके चलते यह समस्या उत्पन्न हो रही है। हम प्रयास कर रहे हैं कि गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के दौरान सब कुछ अंदर से ही मिले। निजी अस्पताल में 20 हजार में डिलीवरी, जीएनडीएच में खर्च होते हैं 12 हजार
इस सरकारी अस्पताल और निजी अस्पतालों का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो डिलीवरी में आने वाले खर्च में थोड़ा ही अंतर है। निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी के लिए पंद्रह से बीस हजार रुपये लिए जाते हैं। डिलीवरी की प्रक्रिया भी सलीके से की जाती है। दूसरी तरफ गुरुनानक देव अस्पताल में डिलीवरी के लिए लगभग 12 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। गायनी विभाग का स्टाफ निजी मेडिकल स्टोर्स से दवाएं मंगवाता है, निजी लेबोरेट्री से ही टेस्ट भी करवाए जाते हैं। गायनी वार्ड में अक्सर निजी लेबोरेट्री व मेडिकल स्टोर के कारिदे घूमते हैं, जो मरीजों के अटेंडेंट को दवाएं व टेस्ट की सुविधा उपलब्ध करवाने की बात कहकर मोटी राशि ऐंठते हैं। इसका कुछ हिस्सा कमीशन के रूप में डॉक्टर की जेब में भी जाता है।
बूचड़खाने जैसा है लेबर रूम
लिखना उचित नहीं, पर यह जानना भी जरूरी है कि गायनी वार्ड का लेबर रूम किसी बूचड़खाने जैसा है। लेबर रूम में पांच बेड रखे गए हैं, जहां एक साथ पांच महिलाओं की डिलीवरी की जाती है। डिलीवरी होने के पश्चात लोहे के बेड्स को साफ नहीं किया जाता। नियमानुसार इन बेड को संक्रमण मुक्त करने के लिए केमिकल से धोना पड़ता है, पर यहां ऐसा कुछ नहीं होता। खून से सने बेड पर ही दूसरी गर्भवती महिला को लिटा दिया जाता है। अनुमान कर सकते हैं कि खून से सना यह बेड कई गंभीर बीमारियां बांट सकता है।