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दिन-रात पढ़कर नवाब नहीं, स्ट्रेस का शिकार बन रहे बच्चे

पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे तो होओगे खराब. यह वाक्य उन बच्चों के लिए सार्थक नहीं है जो दिन रात किताबों में उलझे रहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 12:57 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 12:57 AM (IST)
दिन-रात पढ़कर नवाब नहीं, स्ट्रेस का शिकार बन रहे बच्चे
दिन-रात पढ़कर नवाब नहीं, स्ट्रेस का शिकार बन रहे बच्चे

जागरण संवाददाता, अमृतसर : पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होओगे खराब. यह वाक्य उन बच्चों के लिए सार्थक नहीं है जो दिन रात किताबों में उलझे रहते हैं। इन दिनों परीक्षा की घड़ी टिकटिक दौड़ रही है। फरवरी माह में होने वाली दसवीं व बारहवीं की परीक्षा में विद्यार्थी पूरी शिद्दत से जुटे हैं। सभी को दूसरों से ज्यादा अंक अर्जित करने की ललक है। दिन रात किताबों में उलझे रहने वाले कुछ बच्चे तो खाना-पीना तक भूल रहे हैं। मां-बाप की अपेक्षाओं का उन पर दबाव है। इन सबके बीच विद्यार्थी एग्जाम स्ट्रेस का शिकार बन रहे हैं। एग्जाम स्ट्रेस बच्चों को अंदर से खोखला कर देती है। सिर्फ एग्जाम ही नहीं, अपितु किसी भी कारण से आजकल लोगों को स्ट्रेस हो सकता है। दैनिक जागरण के कार्यक्रम हेलो जागरण में शुक्रवार को पहुंचे विश्व प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. हरजोत सिंह मक्कड़ ने स्ट्रेस का शिकार लोगों को इससे बचने के उपाय बताए। पेश है कुछ अंश. सर! मेरा बेटा पिछले काफी दिनों से अकेला रहना पसंद करता है। उसे लगता है कि वह परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित नहीं कर पाएगा। क्या करूं।

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— एक पाठक

डॉ. मक्कड़ : बच्चे पर पढ़ाई का ज्यादा दबाव न बनाएं। उसके साथ बातें करें। यह समझाएं कि अच्छे अंक अर्जित करने से ही कुछ नहीं होगा, वह तनाव मुक्त होकर पढ़ें। बच्चे को कुछ समय खेलने दें। मेरी बेटी रात को ठीक से सो नहीं पाती। एक बार उसकी आंख खुल जाए तो फिर नींद नहीं आती।

— सुनीता, अमृतसर।

डॉ. मक्कड़ : आपकी बेटी को एग्जाम स्ट्रेस है। उसे हर वक्त पढ़ने के लिए मजबूर न करें। आजकल अभिभावक अपने बच्चों को दिन रात पढ़ने को कहते हैं। बच्चा न चाहकर भी ऐसा करने को मजबूर हो जाता है। फिर स्ट्रेस तो होगा ही। मेरा बेटा मोबाइल, टीवी पर ज्यादा वक्त बिताता है। उसे कई बार समझाया पर मानता नहीं।

एक पाठक, अमृतसर।

डॉ. मक्कड़ : यह एक एडीक्शन है। अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल पकड़ाते हैं। उन्हें समय नहीं देते। इसका प्रतिफल यह निकलता है वो मोबाइल व टीवी में ही अपनी दुनिया तलाशते हैं और फिर स्ट्रेस का शिकार बनते हैं। आप बच्चे को आउटडोर में ले जाएं। उसके साथ बातें करें, खेलें सर मैं डिप्रेशन का शिकार हूं। अल्प्रेक्स दवा का सेवन करता हूं। इसकी आदत लग चुकी है। क्या करूं

— अरुण कुमार, अमृतसर।

डॉ. मक्कड़ : यह दवा प्रतिबंधित है। आप दवा का सेवन धीरे-धीरे बंद करें। मॉर्निंग वॉक व मेडीटेशन जरूर करें। डिप्रेशन की कुछ सेफ दवाएं हैं, जिनका सेवन किया जा सकता है, पर अल्प्रेक्स बंद कर दें। बॉक्स .

बच्चों का हो एप्टीट्यूट टेस्ट : डॉ. मक्कड़

हमारे देश की शिक्षा नीति पर पाश्चात्य की रंगत चढ़ चुकी है। पहले गुरुकुल होते थे, जहां शिष्य गुरु के सानिध्य में आश्रम में रहकर शिक्षा दीक्षा प्राप्त करते थे। उनमें नैतिक मूल्यों का विकास भी होता था। आज की शिक्षा बच्चों का मानसिक संतुलन बिगाड़ रही है। बच्चों को बारहवीं तक सभी विषय पढ़ाए जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि छठी या सातवीं क्लास में ही बच्चे का 'एप्टीट्यूट टेस्ट' करवाया जाए। इससे यह पता चलेगा कि वह किस विषय में पारंगत हो सकता है। उसे उसी विषय की शिक्षा दी जाए। आज स्कूलों में शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियों में विद्यार्थियों को भाग लेकर अव्वल आने का दबाव है। बच्चों की खुद की कोई सोच नहीं है। उन्हें जो कहा जाता है, वह उस पर चलने लगते है। वह अपन इंट्रस्ट डेवलप नहीं कर पाता। इसका परिणाम स्ट्रेस के रूप में सामने आता है।


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