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रैनबसेरों के नाम पर जनता से ही नहीं, सरकार से भी धोखा प्रो. लक्ष्मीकांता

पूर्व मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा है कि रैनबसेरों के नाम पर जनता से ही नहीं सरकार से धोखा हो रहा है। इसलिए उनकी मांग है कि जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं हैं उनके लिए रैनबसेरों का प्रबंध किया जाए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Jan 2021 04:00 AM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 04:00 AM (IST)
रैनबसेरों के नाम पर जनता से ही नहीं, सरकार से भी धोखा प्रो. लक्ष्मीकांता
रैनबसेरों के नाम पर जनता से ही नहीं, सरकार से भी धोखा प्रो. लक्ष्मीकांता

संवाद सहयोगी, अमृतसर : पूर्व मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा है कि रैनबसेरों के नाम पर जनता से ही नहीं सरकार से धोखा हो रहा है। पूरे देश में मानवाधिकार आयोग और न्याय का संरक्षण देने वाले सरकारों को यह आदेश देते हैं कि जो बेसहारा हैं, जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं हैं उनके लिए रैनबसेरों का प्रबंध किया जाए, जिससे सर्दी में उन्हें आसरा मिल सके, पर ज्यादातर सरकारें और जिला प्रशासन रैनबसेरों के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई करते हैं और गरीब आदमी को सड़कों पर सोने, ठंड से मरने के लिए छोड़ देते हैं। अमृतसर में भी जो रैनबसेरे बनाए गए, वे भी खानापूर्ति के लिए हैं। नगर निगम के कुछ कार्यालयों के बाहर रैनबसेरा लिख दिया है, जहां रात को ताला लग जाता है और उनके अंदर वैसे भी रहने सोने का कोई प्रबंध नहीं। जो रैनबसेरा लाखों रुपये खर्च करके रेलवे स्टेशन के सामने अमृतसर में बनवाया, यहां कमरे ऐसे हैं कि कोई रह न सके और न ही वहां कोई प्रबंधक और बिस्तरे हैं। जो हालत अमृतसर में है, निश्चित ही वह सारे पंजाब में है। सरकार रैनबसेरों का बोर्ड लगाकर जनता से मजाक न करे, ढोंग न करे, गरीब का दुख समझे और उन्हें सर्दी में रात बिताने के लिए कोई स्थान दे। इससे पहले पत्र का जवाब देरी से आने पर पीपीसीबी पर साधा था निशाना

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बता दें कि पूर्व कैबिनेट मंत्री व भाजपा नेता प्रो लक्ष्मीकांता चावला ने इससे कुछ दिन पहले अमृतसर-जालंधर राजमार्ग तथा अमृतसर शहर से अटारी तक सड़कों को चौड़ा करने व विकास के नाम पर सैकड़ों पेड़ काटने के मामले में पत्र का जवाब नहीं मिलने पर पीपीसीबी पर निशाना साधा था। क्योंकि पत्र का जवाब देने में ही विभाग ने एक साल से अधिक का समय लगा दिया गया। प्रो. चावला ने सरकारी कार्यप्रणाली पर सवाल खडे़ करते हुए कहा था कि किसी पत्र का सही व समय पर जवाब देना भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते। यही कारण है कि लोग न्याय का इंतजार करते रहते हैं।


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