पंजाबी साहित्य और आजादी में डा. भाई वीर सिंह का रहा है अहम रोल
देश की आजादी के लिए साहित्य की रचना करने के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं के लेखकों को एक संयुक्त प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास करने वाले साहित्यकारों में डा. भाई वीर सिंह का अहम योगदान रहा है।
जासं, अमृतसर: देश की आजादी के लिए साहित्य की रचना करने के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं के लेखकों को एक संयुक्त प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास करने वाले साहित्यकारों में डा. भाई वीर सिंह का अहम योगदान रहा है। डा. भाई वीर सिंह आधुनिक पंजाबी कविता के संस्थापक थे। उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में भी साहित्य की रचना की। भाई वीर ने साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है। यह आज पंजाबी नाटक, पंजाबी नावल और पंजाबी कहानी के नए स्वरूप में हमारे समक्ष है।
भाई वीर सिंह ने सांस्कृतिक और प्राकृति के बेहद नजदीक रहते हुए साहित्य की रचना करके नाम चमकाया है। उन्होंने महान रचयिता रवींद्र नाथ टैगोर जैसे देश के प्रमुख साहित्यकारों के साथ बैठकें की और उन दिनों के भारतीय लोगों की जीवनशैली पर आधारित वार्तालाप करके साहित्य में उन्हीं समस्याओं को उजागर किया था। भाई वीर सिंह प्राकृति के बहुत नजदीक थे। तब शहर में लारेंस रोड स्थित उनकी रिहायश पर अनेकों ही मौसमी फूल महकते थे, जो आज भी खुशबू बिखेर रहे हैं। उसी समय से उनके रिहायशी बगीचे से हर रोज एक ताजे फूलों का गुलदस्ता हरिमंदिर साहिब में चढ़ाया जाता था, वो परंपरा आज भी उसी तरह से चल रही है। पंजाबी साहित्य में सबसे पहला बड़ा सम्मान मिला था
पांच दिसंबर 1872 को जन्मे डा. भाई वीर सिंह शहर के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें पंजाबी साहित्य में भारतीय साहित्य अकादमी से सबसे पहला बड़ा सम्मान पुरस्कार हासिल हुआ था जबकि भाषा विभाग पंजाब से सबसे पहले शिरोमणि पुरस्कार साल 1952 में उन्हें ही देकर उसका आगाज किया गया था। व्यक्तिगत रूप से वह संगीत और कला प्रेमी थे। पंजाब विश्वविद्यालय ने उनको डीलिट की उपाधि देकर सम्मानित किया था। उनकी रचनाएं भाषा विभाग पंजाब और साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने देश के प्रमुख पुरस्कार से साल 1956 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। कई उपन्यास लिखे, पीयू ने डाक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा था
साहित्यकार व कहानीकार दीप दविदर सिंह ने डा. भाई वीर सिंह के विषय में बताया कि साल 1899 में अमृतसर में उन्होंने एक साप्ताहिक अखबार खालसा समाचार निकाला था। यह आज भी प्रकाशित हो रहा है। उनके उपन्यासों में 17वीं शताब्दी के गुरु गोबिद सिंह के जीवन पर आधारित उपन्यास कलगीधर चमत्कार व सिख धर्म के संस्थापक की जीवन कथा गुरु नानक चमत्कार, दो संस्करण शामिल हैं। उनके अन्य उपन्यासों में सुंदरी, बिजय सिंह और बाबा नौध सिंह प्रमुख हैं। उनकी कविता द विजिल (चौकसी) साल 1957 को उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुई। पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) चंडीगढ़ ने उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए उन्हे डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया। जनवरी 2008 में वारिस शाह फाउंडेशन ने उनके जीवन काल की रचनाओं का संकलन प्रकाशित किया है।