Move to Jagran APP

West bengal politics: ममता की छत्रधर के सहारे एक बार फिर 42 सीटों पर चुनावी फसल काटने की जुगत

West bengal politics सियासी स्वार्थ-2011 में ममता ने जंगलमहल में छत्रधर के सहारे वामपंथी वोट में लगाई थी सेंध- जपा से मिली शिकस्त तो 2021 में फिर महतो के सहारे चुनाव जीतने की रणनी

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 07:47 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 07:47 AM (IST)
West bengal politics: ममता की छत्रधर के सहारे एक बार फिर 42  सीटों पर चुनावी फसल काटने की जुगत
West bengal politics: ममता की छत्रधर के सहारे एक बार फिर 42 सीटों पर चुनावी फसल काटने की जुगत

 कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। बंगाल में माओवादियों के एक फ्रंट लाइन संगठन कहे जाने वाले पुलिस संत्रास विरोधी  जनसाधारण कमेटी (पीसीपीए) का प्रमुख चेहरा और दस वर्षों तक माओवादी गतिविधियों में शामिल होने के मामले में जेल में कैद रहे छत्रधर महतो के सहारे एक बार फिर बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी बंगाल के जंगलमहल कहे जाने वाले पश्चिम मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, बांकुड़ा, पुरुलिया जिले की 42 विधानसभा सीटों पर चुनावी फसल काटने की रणनीति बनाई हैं। इसी के तहत पहले सजा कम कराकर फरवरी में जेल से रिहा कराया और अब तृणमूल कांग्रेस में उन्हें राज्य कमेटी में शामिल कर सचिव बना दिया। 

loksabha election banner

 यह सब ममता की 2021 के विधानसभा चुनाव और भाजपा को जंगलमहल में रोकने की रणनीति मानी जा रही है। क्योंकि, इसी छत्रधर महतो के सहारे में ममता ने वर्ष 2008 के पंचायत, 2009 के लोकसभा और 2011 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा का लालदुर्ग कहे जाने वाले जंगमलह में सेंधमारी की थी। अब जबकि 2018 के पंचायत चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में इस जंगलमहल में भाजपा ने तृणमूल की जड़ें हिला दी है तो एक बार फिर छत्रधर का दाव ममता ने चला है।

वादे के बावजूद वर्षों बाद हुई रिहाई 

नवंबर, 2008 में वाममोर्चा के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के काफिले को उड़ाने की नाकाम कोशिश के आरोपित छत्रधर महतो को सितंबर, 2009 में गिरफ्तार किया गया था. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तब विपक्ष की नेता थीं और महतो की रिहाई की मांग करती रहती थीं, क्योंकि आदिवासी बेल्ट में वामदलों की जमीन खिसकाने में पीसीपीए ने तृणमूल का साथ दिया था। ममता 2011 से सत्ता में हैं, लेकिन छत्रधर की रिहाई दस वर्ष बाद एक फरवरी 2020 को हुई और अब वह वादा निभाया।

इससे पहले माओवादियों की अपील, धमकी और यहां तक कि छत्रधर की पत्नी नियति के समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने के अल्टीमेटम के बावजूद, ममता का मन नहीं डोला था। 2018 के पंचायत चुनाव के बाद हालात बदलने लगे। भाजपा को झाड़ग्राम में 42 फीसद और पुरुलिया में 33 फीसद वोट मिले। एक साल बाद वहां के छह लोकसभा क्षेत्रों में से पांच (पुरुलिया, झाडग़्राम, बांकुरा, विष्णुपुर, मेदिनीपुर) में भाजपा जीती (विधानसभा के हिसाब से देखें तो 42 सीटों पर) तो तृणमूल को खतरे की घंटी सुनाई देने लगी।

 आदिवासी चेहर की जरूरत बने छत्रधर

तृणमूल को लगा कि आदिवासी वोट (29 फीसद) वापस पाने के लिए उसे एक आदिवासी चेहरे की दरकार है और इसके लिए छत्रधर से बेहतर कौन हो सकता था। छत्रधर की उम्रकैद की सजा को कम करने के लिए फाइलें तेजी से बढ़ने लगीं और सरकार ने परिवार का भरोसा जीतना शुरू किया। छत्रधर के दो बेटों को सरकारी नौकरी दी गई। जेल से रिहा होने के बाद ऐसी चर्चा होने लगी कि छत्रधर तृणमूल में शामिल होेंगे। परंतु, जेल से इलाके में पहुंचने के बाद छत्रधर ने जंगलमहल (पूर्व माओवादी बेल्ट जिसमें पश्चिम  मेदिनीपुर, पुरुलिया, बांकुड़ा और झाड़ग्राम शामिल हैं) में विकास कार्यों के लिए ममता को धन्यवाद दिया था। इसके बाद तृणमूल के कद्दावर नेता व मंत्री मंत्री पार्थ चटर्जी ने छत्रधर का सार्वजनिक अभिनंदन किया था। वहीं छत्रधर ने कहा था कि उचित वक्त पर निर्णय लिया जाएगा और गुरुवार को जब ममता ने सांगठनिक फेरबदल किया और राज्य कमेटी में अचानक छत्रधर महतो को लाया तो सब एक बार चौंक गए।  क्योंकि तृणमूल को लगता है कि महतो उनके तारणहार हो सकते हैं।

  जंगलमहल के लोगों की है अलग राय

भारत जकत मांझी परगना महल (संथालों का एक संगठन) के कृष्ण मुर्मू जैसे सक्रिय लोगों की राय अलग है। वे कहते हैं कि आदिवासियों को लगता है कि ममता ने उन्हें धोखा दिया। हमने उन्हें सुशासन की उम्मीद से चुना, पर उन्होंने हमें भ्रष्ट नेताओं के हवाले कर दिया। हम आदिवासियों को कुछ नहीं मिला, वहीं कट्टर माओवादियों को भी मोटे मुआवजे पैकेज के साथ पुनर्वासित किया गया और उन्हें भी नौकरी दी गई। महतो का प्रभाव झाड़ग्राम लोकसभा क्षेत्र तक सीमित है जिसमें उनके गृहनगर लालगढ़ समेत 7 विधानसभा सीटें आती हैं। उनकी त्रासद नायक की छवि उनके लिए थोड़ी मददगार हो सकती है—कानून का पालन करने वाला एक नागरिक जिसे तब राजनीति में आना पड़ा था जब माओवादियों को एक ईमानदार चेहरे की जरूरत थी। उनके भाई, माओवादी नेता शशधर का एनकाउंटर हो गया था, जो वे एक स्वाभाविक विकल्प थे। अब एक दशक जेल में रहने के बाद उन्हें फिर राजनीति में लाया गया है, क्योंकि इस बार तृणमूल ऐसा चाहती है और कहा जा रहा है कि शायद उन्होंने इसी शर्त पर अपनी आजादी का सौदा किया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.