UP Assembly By-Election 2020: बसपा के 'भाजपा प्रेम' से छिटके मुस्लिमों पर कांग्रेस की नजर
UP Assembly By-Election 2020 बसपा का भाजपा प्रेम सामने आने के बाद माना जा रहा है कि मुस्लिम बसपा से छिटकेंगे। ऐसे में कांग्रेस की नजर इस पर टिकी है कि मुस्लिम मतदाता उससे वफा दिखाते हैं या उनकी नजर में अब सिर्फ सपा ही विकल्प है।
लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। उत्तर प्रदेश विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान तीन नवंबर को होना है, जिसके परिणाम दस नवंबर को आएंगे। हार-जीत तो हर दल के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इन नौ दिनों में कांग्रेस की चुनावी रणनीति का वह रिजल्ट भी दबा है कि वह अब तक कितने कोस वाकई चली है। बसपा का 'भाजपा प्रेम' सामने आने के बाद माना जा रहा है कि मुस्लिम बसपा से छिटकेंगे। ऐसे में कांग्रेस की नजर इस पर टिकी है कि सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों पर खुले दिल से लड़ाई के बाद मुस्लिम मतदाता उससे वफा दिखाते हैं या उनकी नजर में अब सिर्फ सपा ही विकल्प है।
अब तक कांग्रेस मानकर चल रही थी कि उपचुनाव की दो सीटों बांगरमऊ और घाटमपुर पर उसकी मजबूत स्थिति है, लेकिन सपा-बसपा की इंतकाम की जंग में मायावती के बयान के बाद कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि जहां मुस्लिम बहुतायत में हैं, वहां पार्टी की स्थिति अब और सुधर सकती है। मसलन, उम्मीदों के तार बुलंदशहर की सीट से भी जुड़ गए हैं। इसके पीछे कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता बृजेंद्र कुमार सिंह तर्क देते हैं कि सीएए और एनआरसी के फैसलों के खिलाफ मुस्लिमों के पक्ष में सबसे मुखर होकर कांग्रेस ने ही लड़ाई लड़ी है। डॉ. कफील पर सरकार ने एनएसए लगाकर जेल भेजा, तब भी पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा ने ही इंसाफ की आवाज उठाई, जबकि सपा ऐसे मसलों पर खुलकर सामने नहीं आ सकी।
वह मानते हैं कि 1990 के बाद से मुस्लिम मतदाताओं के वोट देने का पैटर्न बदला है। वह सबसे पहले तय करते हैं कि भाजपा हारे, दूसरे नंबर पर मुस्लिम प्रत्याशी को देखते हैं और तीसरे क्रम में पार्टी आती है। बीते एक वर्ष में कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ी है, उससे मुस्लिम मतदाताओं के मन में यह बात आने लगी है कि भाजपा से मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है। उन्हें लगता है कि सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव के परिणाम भी इस स्थिति को काफी हद तक साफ कर देंगे।
वहीं, पार्टी के दूसरे नेता दबी जुबां से स्वीकार करते हैं कि यदि उपचुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा सपा को वोट दिया तो फिर स्पष्ट हो जाएगा कि उत्तर प्रदेश में अभी इस वर्ग के लिए सपा ही एकमात्र विकल्प बची है और तब कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति की समीक्षा करनी होगी।
आजम फैक्टर भी है दिमाग में : कांग्रेसी यह भी मानते हैं कि सांसद आजम खां राजनीतिक व्यक्ति हैं और सपा के कद्दावर नेता हैं। उन्हें जेल भेजे जाने के बाद सपा अपेक्षित रूप से उनके साथ खड़ी नहीं हुई। इससे मुस्लिमों में नाराजगी है। वहीं, कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ-हानि के इतर डॉ. कफील का साथ दिया।