चुनावी साल में विधान परिषद गठन की ओर बढ़े सीएम नवीन पटनायक
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक असंतुष्टों और राज्य के प्रमुख प्रभावशाली बौद्धिक वर्ग को विधानपरिषद में समायोजित करेंगे।
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने राज्य में विधान परिषद गठन की तैयारी की ओर कदम बढ़ा दिया है। विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराके लोकसभा भेजा जाएगा, जहां पर मानूसन सत्र में मंजूरी मिलने की संभावना है। विपक्ष इसे असंतोष दबाने को तुष्टीकरण के नजरिये से देख रहा है। सवाल है कि आखिर चुनाव से ठीक एक साल पहले ओडिशा सरकार ने विधान परिषद के गठन की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक असंतुष्टों और राज्य के प्रमुख प्रभावशाली बौद्धिक वर्ग को विधानपरिषद में समायोजित करेंगे।
मानसून सत्र में इसे विधानसभा में पारित करके लोकसभा भेजा जा सकता है। ओडिशा विधानसभा में सदस्यों की संख्या 147 के अनुपात के हिसाब से 49 सदस्य तक विधानपरिषद में आ सकते हैं। हालांकि इसका एप्रूवल तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वर्ष 2015 में ही दे दिया था और परिवहन मंत्री नृ¨सह चरण साहू की अध्यक्षता में बीजद, भाजपा तथा कांग्रेस के विधायकों की टीम बनाकर बिहार और आंध्र प्रदेश का दौरा करके कामकाज समझने को भेजा था। इसके बाद यह प्रयास ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन अब गठन के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लगाकर अधिकारिक तौर पर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। चुनावी साल में गठन के लिए कोशिशें तेज करके बीजू जनता दल (बीजद) ने नए राजनीतिक संकेत दिए हैं।
विधानसभा सदस्य का चुनाव प्रत्यक्ष तथा विधानपरिषद के लिए परोक्ष रूप से किया जाता है। साहू कहते हैं कि आंध्र प्रदेश और बिहार में द्विसदनात्मक प्रणाली के कामकाज का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अध्ययन दल ने महाराष्ट्र और कर्नाटक का दौरा भी पहले इसी प्रयोजन से किया था। विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 33 प्रतिशत सदस्य विधान परिषद में कम से कम होने चाहिए। ओडिशा में 147 विस सदस्य हैं। इस प्रकार ओडिशा में विधान परिषद गठित होने की स्थिति 49 सदस्य होंगे। किसी भी विधान परिषद में न्यूनतम सदस्य संख्या 40 होनी चाहिए।
कुछ ही राज्यों में है विधान परिषद
विधान परिषद देश के कुछ राज्यों में ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के जरिये सदन में पहुंचते हैं। कुछ राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। यह व्यवस्था आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तरप्रदेश में है। राजस्थान और असम को भारत की संसद ने विधान परिषद के गठन की मजूरी दे दी है। संविधान के अनुच्छेद 169, 171 (2) में विधानपरिषद के गठन का प्रावधान है। राज्य की विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव लोकसभा भेजा जाता है। राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति के दस्तखत होते हैं। विधानपरिषद के सदस्यों का कार्यकाल छह साल का होता है। हर दो साल एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं। यह व्यवस्था राज्यसभा की तरह ही होती है।
जानें, किसने क्या कहा
यह एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ ही बौद्धिक वर्ग को विधिक प्रक्रिया से जोड़ने की कोशिश है। इसका राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाने वाले तो विरोध के लिए विरोध की राजनीति करते हैं।
-सुलोचना दास, प्रवक्ता, बीजू जनता दल
वर्ष 2015 के प्रस्ताव की ऐन चुनावी मौके पर ही सीएम को क्यों याद आई। बीजद में भीतर ही भीतर पनप रहे असंतोष को दबाते हुए उन्हें विधान परिषद में समायोजित करने का खेल है।
- सज्जन शर्मा, प्रवक्ता, भाजपा
तीन साल बाद विधान परिषद गठन की प्रक्रिया शुरू करने से साफ है कि बीजद में असंतोष का लावा फूटने वाला है। सरकार इसे दबाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है।
-निरंजन पटनायक, अध्यक्ष, ओडिशा कांग्रेस।