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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का आरोप- भाजपा ने कारपोरेट घरानों को सौंपी किसानों की किस्मत

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा- बीजेपी की छल प्रपंच और झूठ की रीतिनीति ने राजनीतिक शुचिता और लोकतंत्र पर गहरा आघात किया है। केंद्र में संसद हो या प्रदेश में विधान परिषद दोनों जगह विपक्ष पर अपने बहुमत का रोडरोलर चलाकर वह लोकलाज से भी हाथ धो बैठी है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 06:36 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 06:39 PM (IST)
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का आरोप- भाजपा ने कारपोरेट घरानों को सौंपी किसानों की किस्मत
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को बयान जारी किया (अखिलेश यादव की फाइल फोटो)

लखनऊ, जेएनएन। समाजवादी पार्टी (एसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की छल प्रपंच और झूठ की रीतिनीति ने राजनीतिक शुचिता और लोकतंत्र पर गहरा आघात किया है। किसानों के हितों पर चोट करने और उनकी किस्मत कारपोरेट घरानों को सौंपने में उसे जरा भी हिचक नहीं होती है। केंद्र में संसद हो या प्रदेश में विधान परिषद दोनों जगह विपक्ष पर अपने बहुमत का रोडरोलर चलाकर वह लोकलाज से भी हाथ धो बैठी है। भारतीय जनता पार्टी तर्क से भागती है और विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देने के बजाय बुनियादी मुद्दों पर भ्रमित करने का काम करती है।

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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को जारी बयान में कहा कि उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में विपक्ष का बहुमत है किंतु पिछले दिनों कई बिल बिना बहस के विपक्ष की तमाम आपत्तियों को अनसुना करते हुए, आश्चर्यजनक रूप से पास करा लिए गए। विधान परिषद के सभापति ने विपक्ष को संरक्षण नहीं दिया, सत्तापक्ष ही हाबी रहा। भाजपा का चेहरा और चरित्र एक ही है, इसका दूसरा परिचय केंद्र में राज्यसभा की कार्यवाही में देखने को मिला। इसमें कृषि विधेयकों को भी विपक्ष की बातों को अनसुना कर पास घोषित करा लिया गया।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार ने रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तत्काल घोषित कर दिए जबकि हमेशा अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में ऐसे निर्णय सामने आते थे। एक माह पहले रबी की फसल के समर्थन मूल्य घोषित करके किसानों को ठगने की कोशिश कामयाब नहीं होने वाली है। सच तो यह है कि लंबे संघर्ष के बाद किसानों को आजादी मिली थी, लेकिन कांट्रेक्ट खेती से देर सबेर किसान फिर पुरानी हालत में लौट जाएगा, अपनी ही जमीन पर मजदूर हो जाएगा। कृषि उत्पादन मण्डी समाप्त होने से किसान अपनी फसल औनेपौने दाम पर बेचने को विवश होगा।


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