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साढ़े तीन साल में भी 'स्मार्ट' नहीं हो सके सूबे के दस शहर Uttar Pradesh News

उत्तर प्रदेश में स्मार्ट सिटी योजना के तहत लखनऊ कानपुर वाराणसी आगरा झांसी अलीगढ़ प्रयागराज बरेली सहारनपुर व मुरादाबाद शहर चयनित हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 04:36 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 04:36 PM (IST)
साढ़े तीन साल में भी 'स्मार्ट' नहीं हो सके सूबे के दस शहर Uttar Pradesh News
साढ़े तीन साल में भी 'स्मार्ट' नहीं हो सके सूबे के दस शहर Uttar Pradesh News

लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की स्मार्ट सिटी योजना भी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भी प्रदेश के शहरों को 'स्मार्ट' नहीं बना पा रही है। इस योजना में प्रदेश के 10 शहरों को चयन हुआ था। करीब साढ़े तीन साल बीतने के बावजूद योजना गति नहीं पकड़ पा रही है। इन शहरों में अब तक छोटे-मोटे कार्य ही इस योजना के तहत हो पाए हैं। यही वजह है कि अब तक स्वीकृत प्रोजेक्ट में से मात्र 10 फीसद भी खर्च नहीं हो सका है।

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उत्तर प्रदेश में स्मार्ट सिटी योजना के तहत लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा, झांसी अलीगढ़, प्रयागराज, बरेली, सहारनपुर व मुरादाबाद शहर चयनित हैं। इनका चयन मई 2016 से लेकर जनवरी 2018 के बीच चार चरणों में हुआ है। इसमें अफसरों को प्रोजेक्ट बनाकर केंद्र के स्मार्ट सिटी मिशन भेजना होता है, लेकिन अफसर ढंग के प्रोजेक्ट ही नहीं बना पा रहे हैं। यही वजह है कि इस योजना में छोटे-छोटे प्रोजेक्ट पर ही काम हो रहा है।

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 10 शहरों में 9498.58 करोड़ रुपये के 416 प्रोजेक्ट मंजूर किए गए हैं। इनमें से केवल 923 करोड़ रुपये के ही काम अब तक पूरे हो सके हैं। स्मार्ट सिटी में लखनऊ का चयन 23 मई 2016 को सबसे पहले हुआ था। यहां पर अब तक 292 करोड़ रुपये के 11 प्राजेक्ट ही पूरे हो सके हैं। इनमें 144 करोड़ रुपये से सबसे बड़ा काम एलईडी स्ट्रीट लगवाने का है। इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर 71 करोड़ रुपये से बना है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए भी 10 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं लेकिन शहर की स्थिति जस की तस है। लखनऊ जैसे बड़े शहर में केवल सात पार्को का चयन सौंदर्यीकरण के लिए किया गया है।

आगरा, कानपुर व वाराणसी का चयन सितंबर 2016 में हुआ था। आगरा में अब तक 10.75 करोड़ रुपये के पांच छोटे प्रोजेक्ट ही पूरे हो सके हैं। इनमें माइक्रो स्किल डेवलपमेंट सेंटर, सेल्फ क्लीनिंग टॉयलेट, म्यूनिसिपल स्कूल का अपग्रेडेशन व डिजिटल क्लास जैसे काम शामिल हैं। कानपुर में भी 32 प्रोजेक्ट चल रहे हैं लेकिन एक भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका है। वाराणसी में 30 में से 10 प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं। इनमें सबसे बड़ा प्रोजेक्ट 12.59 करोड़ रुपये का कान्हा उपवन का है। इसके अलावा सौंदर्यीकरण के कुछ काम इससे हुए हैं।

दस फीसद भी खर्च न हो सका स्वीकृत प्रोजेक्ट पर

नगर विकास मंत्री, आशुतोष टंडन ने बताया कि बरेली, मुरादाबाद व सहारनपुर की स्थिति सबसे खराब है। स्मार्ट सिटी में झांसी की भी स्थिति कमजोर है। इन शहरों की लगातार समीक्षा की जा रही है। लखनऊ के कार्यो में भी गति लाने के निर्देश दिए गए हैं। स्मार्ट सिटी के कार्यो में दिलचस्पी न लेने वाले अफसरों पर भी कार्रवाई की जाएगी।

झांसी में केवल छह प्रोजेक्ट स्वीकृत

स्मार्ट सिटी में झांसी सबसे पिछड़ा है। यहां केवल छह प्रोजेक्ट स्वीकृत हैं। इनमें 34 लाख रुपये से दो छोटे काम ही पूरे हुए हैं। अलीगढ़ में 52 प्रोजेक्ट में से 11 पूरे हुए हैं। इनमें 29 करोड़ रुपये में रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास शामिल है। प्रयागराज में भी केवल 16 प्रोजेक्ट पास हुए हैं। इनमें से 10 पूरे हो गए हैं। इनमें 88.66 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा काम इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर का है। इसके अलावा स्मार्ट रोड के प्रोजेक्ट हैं।

बरेली, मुरादाबाद और सहारनपुर सबसे पिछड़े

स्मार्ट सिटी में बरेली, मुरादाबाद व सहारनपुर सबसे पिछड़े हैं। इन तीनों शहरों का चयन जनवरी 2018 में हुआ था। मुरादाबाद में 48 में से केवल एक स्ट्रीट लाइट लगाने का काम पूरा हुआ है। बरेली व सहारनपुर में तो अधिकतर प्रोजेक्ट की या तो डीपीआर तैयार की जा रही है, जिनकी डीपीआर तैयार हो गए है उनके टेंडर आमंत्रित किए गए हैं। सहारनपुर में तो कई प्रोजेक्ट का अभी सर्वेक्षण ही किया जा रहा है। दोनों ही शहरों में एक भी काम पूरा नहीं हुआ है। 


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