सीताराम येचुरी को नहीं मिल सकता है दूसरा कार्यकाल
माकपा की कोलकाता में हुई केंद्रीय कमेटी में हुई उठापठक के बाद माकपा महासचिव सीताराम येचुरी को दूसरा कार्यकाल मिलना मुश्किल नजर आ रहा है।
कोलकाता, [राज्य ब्यूरो]। माकपा की कोलकाता में हुई केंद्रीय कमेटी में हुई उठापठक के बाद माकपा महासचिव सीताराम येचुरी को दूसरा कार्यकाल मिलना मुश्किल नजर आ रहा है।
कांग्रेस के साथ किसी भी तरह का समझता या गठबंधन पर केंद्रीय कमेटी में येचुरी व बंगाल माकपा लॉबी का प्रस्ताव प्रकाश करात के केरल लॉबी के सामने धराशाई हो गया है। इसके बाद येचुरी ने दो बार अपना इस्तीफा पोलित ब्यूरो (पीबी) को भेजा था लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। पोलित ब्यूरो की ओर से कहा गया है कि यह पार्टी की एकता के लिए विनाशकारी होगा। उन्हें अपने कार्यकाल पूरा करने के लिए कहा गया, जिसमें से केवल तीन माह शेष है। माकपा पार्टी संविधान के मुताबिक, एक व्यक्ति तीन बार महासचिव बन सकता है जिसका कार्यकाल तीन साल का होता है।
येचुरी के करीबी सूत्रों के मुताबिक, वह अब अप्रैल में होने वाली माकपा पार्टी कांग्रेस में इस लड़ाई को ले जा सकते हैं। जहां राजनीतिक लाइन पर अंतिम फैसला होना है। सीताराम येचुरी को दूसरा मौका देने के लिए पार्टी कांग्रेस में वोटिंग हो सकती है यदि वहां बहुमत मिल जाता है तो कोई समस्या नहीं होगी। यदि नहीं तो दूसरा कार्यकाल शायद ही मिल पाए। पार्टी कांग्रेस में 700 प्रतिनिधि हैं वे एक राज्य में सदस्यों की संख्या और आंदोलन की ताकत के आधार पर राज्यों से चुने गए हैं।
पार्टी कांग्रेस 175 कर पश्चिम बंगाल और केरल के प्रतिनिधियों की समान संख्या है। त्रिपुरा, तमिलनाडु, आंध्र और तेलंगाना मिलाकर प्रत्येक के करीब 60 सदस्य हैं। केरल, त्रिपुरा, बिहार, आंध्र, तेलंगाना के प्रतिनिधियों ने करात की लाइन का समर्थन किया, जबकि पश्चिम बंगाल के तीन प्रतिनिधि को छोड़कर महाराष्ट्र, पंजाब के कुछ, तमिलनाडु के आधे प्रतिनिधि और उत्तराखंड के प्रतिनिधियों ने येचुरी का समर्थन किया था।
सवाल पूछा जा रहा है कि क्या विपक्षी एकता को बनाए न रखकर माकपा ने क्या भाजपा के लिए राह आसान कर दिया है। 2015 में येचुरी माकपा महासचिव बने थे।