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Jammu And Kashmir: अलगाववादी सियासत के साथ डांवाडोल है पीडीपी की नैय्या

PDP जम्मू-कश्मीर में महबूबा घर में ही कैद हैं और अन्‍य नेता अब कैडर से संपर्क करने से कतरा रहे है चूंकि अनुच्‍छेद 370 के खात्‍मे के साथ पीडीपी के नारों का ही अंत हो गया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 09:05 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2020 09:05 PM (IST)
Jammu And Kashmir: अलगाववादी सियासत के साथ डांवाडोल है पीडीपी की नैय्या
Jammu And Kashmir: अलगाववादी सियासत के साथ डांवाडोल है पीडीपी की नैय्या

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। PDP: अलगाववादी नारों और आतंकियों के परिवारों को गले लगाने की सियासत के बूते नेशनल कांफ्रेंस को एक समय सत्‍ता से किनारे लगाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अब लड़खड़ा चुकी है। हालात देख पार्टी के ज्‍यादातर बड़े नेता संगठन से किनारा कर चुके हैं और जो साथ हैं, वह इसे डूबते हुए देख रहे हैं। ऐसे समय में नेतृत्व का अभाव और कश्‍मीर में जनमानस की सोच का बदलता दायरा लगातार पीडीपी पर और भारी पड़ रहा है। महबूबा घर में ही कैद हैं और अन्‍य नेता अब कैडर से संपर्क करने से कतरा रहे है, चूंकि अनुच्‍छेद 370 के खात्‍मे के साथ पीडीपी के नारों का ही अंत हो गया। ऐसे में अलगाववादी सियासी में साथ पीडीपी की नैय्या भी हिचकोले खा रही है।

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संगठन नेताओं का मनभेद इतना बढ़ चुका है कि पार्टी एक साल में एक भी बैठक नहीं कर पाई। एक साल का सियासी सूखा सब खत्‍म किए जा रहा है। जब कभी मतभेद भुला साथ बैठाने का प्रयास किया गया, यह और अधिक बढ़ते दिखे। महबूबा के आदेश पर भी नेता साथ बैठने तक को तैयार नहीं हुए। यही वजह है कि कभी नेताओं की नजरबंदी और कभी अन्‍य कारण गिनाकर बैठक टाली जाती रही। इस समय वही बचे हैं जो परिवार करीबी हैं या सईद ने स्‍वयं शामिल कराया था। इनमें से अधिकतर पुराने नौकरशाह हैं। इनकी सियासत अपने घर से शुरू होकर पीडीपी मुख्यालय में खत्म होती है। इनकी बेग सरीखे नेताओं से नहीं पटती। बीते सप्ताह पार्टी संरक्षक बेग ने घर पर बैठक बुलाई तो कोई नेता नहीं पहुंचा। वीरवार को पार्टी मुख्यायल में बैठक बुलाई गई तो उसमें कथित तौर पर बेग को नहीं बुलाया गया। इसका जिम्मा महबूबा के करीबी एआर वीरी को सौंपा गया था। खैर यह बैठक भी नहीं हो पाई।

पीडीपी की मौजूदा स्थिति पर सियासी विशेषज्ञ एजाज वार ने कहा कि पीडीपी में वही लोग टिके हैं, जिन्हें ठिकाना नहीं मिल रहा या फिर अपना जनाधार नहीं है। सिर्फ पीडीपी के कारण ही पहचान है। पीडीपी एक साल में आगे की कोई रणनीति तय नहीं कर पाई। इसके नेताओं की आपस में एक भी बैठक नहीं हुई। इसमें प्रमुख चेहरे आज अन्य दलों में नजर आते हैं। अब केवल महबूबा का ही चेहरा है और वह भी हिरासत में हैं। इस समय पीडीपी वजूद बचा जाए तो बड़ी बात होगी।

जमात का करीबी रहा है उसका वोटर

पीडीपी का ज्‍यादातर वोटर जमात की पृष्ठभूमि से रहा है। इसके अलावा नेशनल कांफ्रेंस और अन्‍य दलों से नाराज लाेग भी जुड़े। भाजपा के साथ जाने और वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों के बाद यह वोटर पीछे हट गया। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के साथ ही स्‍वायतता और अलगाववादी सियासत का दौर भी खत्‍म हो गया। पीडीपी नेताओं ने खुलकर महबूबा मुफ्ती को हालात के लिए जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। इनमें पार्टी संरक्षक मुजफ्फर हुसैन बेग सबसे आगे रहे। वह अभी पार्टी में हैं लेकिन आरोप है कि उसे बचाने के लिए भी उन्‍होंने कुछ नहीं किया। अल्ताफ बुखारी, दिलावर मीर, जावेद हसन, गुलाम हसन मीर, बशारत बुखारी, मोहम्मद खलील बंड सरीखे बड़े नेता पीडीपी का हाथ झटक जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के तौर पर नये सियासी प्‍लेटफार्म का हिस्सा बन चुके हैं।

मुफ्ती सईद ने 1999 में किया था गठन

पूर्व गृहमंत्री स्व मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर पीडीपी का गठन किया था। संगठन को कश्मीर में मजबूती प्रदान करने में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने हर गांव-देहात जाकर सुरक्षाबलों की कथित ज्यादतियां को मुद्दा बनाया और इस तरह कट्टरवादी ताकतें उनके पक्ष में आ खड़ी हुईं। वहीं, मुजफ्फर हुसैन बेग, तारिक हमीद करा, गुलाम हसन मीर, दिलावर मीर, चौ जुल्फिकार अली, मोहम्मद खलील बंड जैसे नेताओं ने इसे मजबूती दी। इन्हीं नेताओं ने पीडीपी को जम्मू-कश्मीर में सत्‍ता तक पहुंचाया और वर्ष 2002 में नेकां को सत्ता से बाहर कर दिया। 2009 के चुनावों में हार के बाद 2015 में भाजपा के सहारे फिर सत्‍ता तक पहुंची। वर्ष 2016 में मुफ्ती माेहम्मद सईद के निधन के बाद पीडीपी को झटके लगने आंरभ हो गए। अपनी पार्टी के उदय के साथ ही पीडीपी नेताओं में भगदड़ और तेज हो गई।

अब बस परिवार के करीबी ही बचे हैं

पिता की मौत के बाद महबूबा के लिए भाजपा से सामंजस्‍य बनाते हुए पीडीपी को संभालना अत्यंत चुनौतिपूर्ण था। सामंजस्‍य बिगड़ा तो पार्टी बिखरनी आरंभ हो गई और नेता मूल दलों को लौट चले गए। श्रीनगर में पीडीपी का आधार तैयार करने वाले तारिक हमीद करा कांग्रेसी बन गए। गुलाम हसन मीर ने भी नाता तोड़ लिया था। महबूबा को चापलूसों ने घेर लिया और संगठन के पुराने सिपहसालार उनसे दूर हो गए। परिवार के सदस्यों को संगठन में आगे बढ़ाने से काफी नेता नाराज होते गए। वर्ष 2018 में भाजपा के साथ गठबंधन टूटते ही पीडीपी के समीकरण उलटे पड़ने लग गए। 


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