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चुनाव परिणामों के बाद बिना लड़े हार जाने वाले महारथी बने राज ठाकरे

राज ठाकरे की पार्टी ने इन लोकसभा चुनावों में सीधे भाग नहीं लिया लेकिन पूरे राज्य में 10 बड़ी-बड़ी रैलिया कर भाजपा को हराने की अपील करते रहे।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 10:07 AM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 10:07 AM (IST)
चुनाव परिणामों के बाद बिना लड़े हार जाने वाले महारथी बने राज ठाकरे
चुनाव परिणामों के बाद बिना लड़े हार जाने वाले महारथी बने राज ठाकरे

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी।  महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने हाल के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ट्विटर पर एक शब्द की प्रतिक्रिया दी थी – अनाकलनीय। वास्तव में इन चुनाव परिणामों ने राज ठाकरे के राजनीतिक भविष्य को ही अनाकलनीय बना दिया है। 

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परप्रांतीय द्वेष के लिए कुख्यात राज ठाकरे की पार्टी ने इन लोकसभा चुनावों में सीधे भाग नहीं लिया। उन्होंने अपना एक भी उम्मीदवार नहीं खड़ा किया, लेकिन पूरे राज्य में 10 बड़ी-बड़ी रैलियां करके भाजपा को हराने की अपील करते रहे। वह अपने मंच पर बड़ी स्क्रीन लगाकर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनकी योजनाओं में खामियों तक का जिक्र करते रहे। उनकी विशेष वक्तृत्व शैली के कारण उन्हें सुनने के लिए लोग भी बड़ी संख्या में आते रहे। उनकी इन रैलियों से भाजपा में भय का वातावरण भी बना। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को उनके आरोपों का खंडन करना पड़ा।

मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार को एक कार्यक्रम आयोजित कर राज के एक-एक आरोप का जवाब देना पड़ा। लेकिन चुनाव परिणाम आने पर राज ठाकरे बेअसर दिखाई दिए। उन्होंने जिन 10 क्षेत्रों में अपनी रैलियां की थीं, उनमें से आठ जगह भाजपा-शिवसेना को शानदार जीत हासिल हुई। रायगढ़ और सातारा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जीती भी, तो अपने मजबूत उम्मीदवार के कारण, ना कि राज ठाकरे की रैलियों के कारण। संभवतः इसीलिए राज ठाकरे इन परिणामों को 'अनाकलनीय' मानने पर मजबूर हुए हैं। 

इन चुनाव परिणामों के बाद राज ठाकरे की छवि बिना लड़े ही हार जाने वाले महारथी की बन गई है। जिसके फलस्वरूप कुछ ही माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन करने वाले राज ठाकरे को शुरुआती दौर में अच्छी सफलता मिली थी। मराठीभाषी युवाओं के बीच सीधे-सौम्य उद्धव ठाकरे की तुलना में तेजतर्रार राज ठाकरे ज्यादा पसंद किए जा रहे थे। युवाओं को उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। इन्हीं उम्मीदों के बल पर 2009 के लोकसभा चुनाव में मनसे राज्य के 11 लोकसभा क्षेत्रों में इतने मत जुटाने में कामयाब रही कि उसके कारण शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा था। नासिक और दक्षिण मुंबई में तो उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। उसी वर्ष हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी मनसे ने राज्य की 288 में से 13 विधानसभा सीटें जीतकर सबको अचरज में डाल दिया था। मुंबई सहित कई महानगरपालिकाओं में भी उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा था। नासिक महानगरपालिका में तो वह बाकायदा सत्ता में आ गई। लेकिन यही उसके राजनीतिक उत्थान का शिखर था। 2014 की मोदी लहर में मनसे कोई विशेष करिश्मा नहीं कर पाई। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी 13 से घटकर एक पर आ गई। अब वह एक विधायक भी शिवसेना में शामिल हो चुका है। पिछले मुंबई मनपा चुनाव में भी वह एक सीट जीतकर सिर्फ अपना खाता भर खोल सकी। 

राज ठाकरे को उम्मीद थी कि उनके करिश्माई भाषण से इस लोकसभा चुनाव में यदि कांग्रेस-राकांपा कुछ अधिक सीटें जीतने में कामयाब हो जाती हैं, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में वह इन दलों से सम्मानजनक समझौता कर लेंगे। लेकिन उनकी सभाओं का असर नांदेड़, सोलापुर और मावल जैसी सीटों पर भी नहीं हुआ और इन सीटों से लड़े अशोक चह्वाण, सुशीलकुमार शिंदे एवं पार्थ पवार जैसे दिग्गज चुनाव हार गए। दूसरी ओर प्रकाश आंबेडकर और असदुद्दीन ओवैसी की वंचित बहुजन आघाड़ी कांग्रेस-राकांपा को गहरी चोट पहुंचा गई।

अब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-राकांपा को राज ठाकरे के बहाने मिलने वाले मराठी मतों से ज्यादा कीमती वंचित बहुजन आघाड़ी के दलित-मुस्लिम वोट लगेंगे। कांग्रेस तो इस लोकसभा चुनाव के दौरान भी राज ठाकरे से दूरी बनाकर रखना चाहती थी। क्योंकि वह राज ठाकरे से सगापा दिखाकर अपने हिंदीभाषी मतदाताओं को और नाराज नहीं करना चाहती। ऐसी स्थिति में राज ठाकरे के लिए विधानसभा चुनाव में भी सभी रास्ते बंद नजर आ रहे हैं। 

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