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West Bengal: बंगाल पर भारी पड़ सकता है एनपीआर का विरोध

NPR In West Bengal. एनपीआर का बंगाल में लागू न करने का एलान कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भले मोदी सरकार से अपने विरोध का रंग गाढ़ा कर रही हैं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 06:51 PM (IST)
West Bengal: बंगाल पर भारी पड़ सकता है एनपीआर का विरोध
West Bengal: बंगाल पर भारी पड़ सकता है एनपीआर का विरोध

कोलकाता, आनन्द राय। NPR In West Bengal. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का बंगाल में लागू न करने का एलान कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भले मोदी सरकार से अपने विरोध का रंग गाढ़ा कर रही हैं, लेकिन अपने राज्य के नागरिकों के हितों की भी अनदेखी कर रही है। इसके विरोध में वह तर्कों का पहाड़ खड़ा कर रही हैं, लेकिन विशेषज्ञों की दलील है कि अगर एनपीआर में नागरिक अपना ब्योरा दर्ज नहीं कराएंगे तो बंगाल को इसका खामियाजा चुकाना पड़ेगा। इस राज्य के नागरिक सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाएंगे।

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ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की सभी राज्यों के साथ होने वाली बैठक का बहिष्कार कर इस बहस को नया मोड़ दे दिया है। आखिर देश के बाकी राज्यों ने बैठक में शामिल होने की हामी क्यों भरी। स्पष्ट है कि वे राज्य अपने नागरिकों के हितों को जाया नहीं होने देना चाहते हैं। वह भी तब जब यह सर्वविदित है कि यदि कोई व्यक्ति एनपीआर में अपना ब्योरा नहीं देता है तो उस पर कार्रवाई नहीं हो सकती है और न ही कोई जुर्माना लगेगा। एनपीआर से लोगों के डाटा के जरिये योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने में मदद मिलेगी। 2010 में जब 2011 के लिए जनगणना शुरू हुई तो भी एनपीआर के लिए जानकारी एकत्र की गई थी। 2015 में इस डाटा को घर-घर सर्वे करके अपडेट किया गया था।

अप्रैल से सितंबर 2020 तक जनगणना के आंकड़े जुटाए जाएंगे उसी दौरान एनपीआर भी अपडेट होना है। पर ममता बनर्जी की सरकार ने आदेश जारी कर इसे रोक दिया है। विशेषज्ञ कहते हैं 'राज्य सरकार बिना वजह इसे राजनीतिक रंग दे रही है। एनपीआर में तो सरकारी कर्मचारी घर-घर जाकर लोगों से निवास की अवधि से लेकर पूरा ब्योरा हासिल करते हैं और इसके लिए कोई दस्तावेज देने की जरूरत भी नहीं होती है। सारी जानकारी मौखिक रूप से ली जानी है तो फिर इस पर कोई विवाद होना ही नहीं चाहिए।' हालांकि तृणमूल कांग्रेस के लोग कहते हैं 'इसमें माता-पिता की जन्म तिथि पूछना और मातृभाषा की जानकारी मांगना गलत है।

यह इसलिए मांगा जा रहा है ताकि पता लगाया जा सके कि देश भर में किन-किन क्षेत्रों में कहां-कहां के लोग कितने रह रहे हैं।' नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता पंजीयन व राष्ट्रीय पहचान पत्र आवंटन नियम, 2003 के तहत एनपीआर तैयार कराया जाता है। अगर कोई विदेशी नागरिक भी देश के किसी हिस्से में छह माह से ज्यादा समय से रह रहा है तो उसका ब्योरा भी एनपीआर में दर्ज किया जाना है। दरअसल एनपीआर का लक्ष्य देश में रहने वाले हर व्यक्ति की पहचान करना है। यह ब्योरा तैयार होने से हर तरह की योजना लागू करने में सहूलियत होगी।

एनपीआर लागू न होने से ये होंगे खतरे

- सरकारी योजनाओं के अंतर्गत दिया जान वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहंुचे और व्यक्ति की पहचान की जा सके। एनपीआर दर्ज न होने से योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

- एनपीआर के जरिये देश की सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है। इससे आतंकवादी गतिविधि रोकने में सहूलियत होगी। पश्चिम बंगाल की सीमा बांग्लादेश, नेपाल से लगी है। यहां घुसपैठियों की आमद धड़ल्ले से होती है। कोस्टल इलाके भी हैं। कई आतंकी संगठन भी सक्रिय हुए हैं। एनपीआर लागू नहीं हुआ तो घुसपैठियों को सहूलियत मिलेगी और राज्य और देश असुरक्षित होगा।

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