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Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में सरकार बचे या जाए भाजपा के लिए रहेंगे अवसर

Rajasthan Political Crisis सियासी संकट का जो भी परिणाम निकलेगा उसमें भाजपा न सिर्फ सबसे सुरक्षित स्थिति में है बल्कि उसके लिए नए अवसर खुलने की संभावना भी पूरी है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 05:47 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 05:47 PM (IST)
Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में सरकार बचे या जाए भाजपा के लिए रहेंगे अवसर
Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में सरकार बचे या जाए भाजपा के लिए रहेंगे अवसर

मनीष गोधा, जयपुर। Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में सियासी संकट में इस बार भाजपा के हौंसले बुलंद हैं और पार्टी बहुत तसल्ली के साथ घटनाक्रम देख रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस सियासी संकट का जो भी परिणाम निकलेगा, उसमें भाजपा न सिर्फ सबसे सुरक्षित स्थिति में है बल्कि उसके लिए नए अवसर खुलने की संभावना भी पूरी है। राजस्थान में चल रहे सियासी संकट के दो संभावित परिणाम बताए जा रहे हैं। इनमें पहला है सचिन पायलट गुट के सदस्यों की सदस्यता समाप्त होना और सरकार का जैसे-तैसे बहुमत साबित कर लेना। वहीं, दूसरा परिणाम सरकार का बहुमत साबित करने में विफल रहना।

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जानकार मानते हैं कि जो भी परिणाम निकले, उसमें भाजपा खुद की एकजुटता बनाए रखती है तो उसके लिए “विन विन सिचुएशन“ जैसी स्थिति है। राजस्थान में भाजपा अभी विपक्ष में है और 200 सदस्यों वाली विधानसभा में उसके 72 सदस्य हैं। उसके पास राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन सदस्यों का समर्थन भी हैं। ऐसे में उसके 75 सदस्य माने जा सकते हैं। मौजूदा सियासी संकट की बात करें तो भाजपा के सदस्यों में अभी तक कोई सेंधमारी नहीं हुई है और इसके व इसके समर्थन वाले सभी 75 सदस्य एकजुट दिख रहे हैं। संकट कांग्रेस का है और इसी के 19 सदस्य बगावत कर रहे हैं।

सियासी संकट के पहले परिणाम की बात करें तो विधानसभा सत्र आहुत होते ही सरकार व्हिप जारी करेगी और किसी भी बिल पर मत विभाजन के जरिए जैसे-तैसे अपना बहुमत साबित कर लेगी, क्योंकि कांग्रेस के 101 सदस्यों में से सचिन पायलट के गुट 19 सदस्य कम भी कर दें तो कांग्रेस के खुद 82 सदस्य रह जाते हैं। इनके अलावा दस निर्दलीय, दो भारतीय ट्राइबल पार्टी और एक-एक माकपा तथा राष्ट्रीय लोकदल तथा छह बसपा के सदस्य मिला कर उसके पास 102 विधायक है। इस प्रक्रिया में व्हिप का उल्लंघन करने पर सचिन पायलट गुट के सदस्यों की सदस्यता जाने की पूरी संभावना है। ऐसा होता है तो इन सीटों पर फिर से चुनाव होगा और भाजपा को अपनी सदस्य संख्या का बढ़ाने मौका मिलेगा। जो भी कमी होगी, वह कांग्रेस के सदस्यों में ही होगी। अभी कांग्रेस 101 सदस्यों के साथ वह खुद के दम पर बहुमत में है, लेकिन बाद में उसे पूरे कार्यकाल में सहयोगी दलों और निर्दलियों पर निर्भर रहना पड़ेगा।

वहीं, दूसरा परिणाम यह है कि सत्र आहुत होने के बाद हो सकता है कि सरकार बहुमत ही साबित ना कर पाए, क्योंकि बसपा के सदस्यों के कांग्रेस के विलय में पेंच फंसा हुआ है और बसपा के यह छह सदस्य सरकार का सबसे बड़ा सहारा है। ऐसी स्थिति में सरकार गिरती है तो कांग्रेस मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान भी खो देगी। वहीं, यह भाजपा के लिए सत्ता में लौटने का सबसे बड़ा अवसर होगा। तीसरी लेकिन लगभग असंभव दिख रही स्थिति यह है कि सचिन पायलट गुट की बगावत खत्म हो जाए। ऐसा होता है तो भी भाजपा को अभी तत्कालिक कोई फायदा भले ही न मिले, लेकिन वह अगले चुनाव तक कांग्रेस की इस आपसी खींचतान को मुद्दा बनाती रहेगी।

इन स्थितियों को देखते हुए ही पार्टी इस पूरे घटनाक्रम पर सिर्फ नजर बनाए हुए है। पार्टी की ओर बहुमत साबित करने या राष्ट्रपति शासन लगाने जैसी कोई मांग नहीं की जा रही है। पार्टी की ओर से बयानबाजी जरूर है, लेकिन किसी तरह की हड़बड़ी नहीं दिखाई जा रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आलाकमान की तरफ से अभी सिर्फ “वेट एंड वाॅच“ किए जाने के निर्देश हैं। हालांकि पार्टी की एकजुटता इस पूरे मामले में बेहद जरूरी है। 


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