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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में किया जापानी तकनीक का जिक्र, अब खत्‍म होगा जानलेवा प्रदूषण

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह उत्तर भारत और दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समाधान खोजने के लिए हाइड्रोजन आधारित ईंधन तकनीक का पता लगाए।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 03:02 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 03:11 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में किया जापानी तकनीक का जिक्र, अब खत्‍म होगा जानलेवा प्रदूषण
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में किया जापानी तकनीक का जिक्र, अब खत्‍म होगा जानलेवा प्रदूषण

नई दिल्‍ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपना लिया है। बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह उत्तर भारत और दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समाधान खोजने के लिए हाइड्रोजन आधारित ईंधन तकनीक (Hydrogen based fuel technology) का पता लगाए।

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तीन दिसंबर तक रिपोर्ट करनी है प्रस्‍तुत

केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट तीन दिसंबर तक प्रस्तुत करनी है। कोर्ट ने केंद्र से यह भी कहा है कि जापान ने इस तकनीक के जरिये वायु प्रदूषण पर काबू पाया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली सरकार और सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) से दिल्‍ली के प्रदूषण को लेकर डाटा मांगा है। कोर्ट ने कहा कि पिछले साल के एक अक्‍टूबर से लेकर 31 दिसंबर तक के डाटा का पूरा रिकार्ड मांगा है। जानकारी के लिए बता दें कि दिल्‍ली में ठंड के बढ़ते ही पराली और अन्‍य कारणों से प्रदूषण का स्‍तर काफी ज्‍यादा हो जाता है। दिल्‍ली एक गैस चेंबर बन जाती है।

60 फीसद से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के चल रहे

बता दें कि चिंताजनक यह भी है कि दिल्ली में चलने वाले 60 फीसद से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के रफ्तार भर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला परिवहन विभाग मुहूर्त निकालकर विशेष जांच अभियान चलाता भी है तो वह खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता। दिल्ली की सड़कों पर रोज करीब 55 लाख से अधिक वाहन उतरते हैं, लेकिन इनकी प्रदूषण जांच के लिए परिवहन विभाग के पास पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों की टीम तक नहीं है। कुछ प्रदूषण जांच केंद्र ऐसे भी हैं जो डीजल वाहनों की जांच करने में आनाकानी करते हैं और वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी जारी नहीं करते हैं। वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण की जांच के लिए बनी तकनीक का आज तक ऑडिट नहीं कराया गया। इससे इसकी कार्य क्षमता की सत्यता का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।

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