UP: गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेलकर सपा-बसपा की राह में बिछाए कांटें
पूर्व महापौर प्रत्याशी डोली शर्मा को टिकट देकर सपा-बसपा गठबंधन की बनिस्पत कांग्रेस ने पलड़ा भारी कर लिया है। वहीं सपा-बसपा में भी नए सिरे से मंथन शुरू हो गया है।
गाजियाबाद [मनीष शर्मा]। भाजपा को सत्ताच्युत करने के सपने के साथ ही धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में गठबंधन की गांठ बंधी। कांग्रेस ने भी दुश्मन का दुश्मन दोस्त की कहावत का राग अलापा, लेकिन गठबंधन से दूरी भी कायम रखी। अब कांग्रेस ही अनाम दोस्त' की राह में कांटे बिछाती दिख रही है। दरअसल, सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस ने भी ब्राह्मण कार्ड खेलकर चुनावी समीकरण बदल दिए हैं। पूर्व महापौर प्रत्याशी डोली शर्मा को टिकट थमाकर सपा-बसपा गठबंधन की बनिस्पत कांग्रेस ने अपना पलड़ा भारी कर लिया है। वहीं कांग्रेस के कदम से सपा-बसपा में भी बेचैनी बढ़ने के साथ ही नए सिरे से मंथन शुरू हो गया है।
सूत्रों की मानें तो टिकट कटने से मायूस कुछ दिग्गज कांग्रेसी गठबंधन के सिरमौरों के संपर्क में आ गए हैं। साथ ही हाथी के कुछ महावत भी बदले मौजूदा हालातों की दुहाई के साथ सक्रिय होते दिख रहे हैं। कयासबाजी के दौर के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की इस शह को सपा-बसपा कैसे मात देंगे?
गाजियाबाद लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने सोमवार की आधी रात महानगर अध्यक्ष नरेंद्र भारद्वाज की बेटी डोली शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया। डोली शर्मा निकाय चुनाव में गाजियाबाद महापौर पर भी राजनीतिक जौहर दिखा चुकी हैं। अपने पहले ही चुनाव में डोली शर्मा गाजियाबाद के अवाम के साथ-साथ पार्टी आलाकमान की नजरों में भी खास बन गई। इसी का फायदा डोली को लोकसभा के टिकट के लिए मिला। डोली शर्मा के अलावा पूर्व कांग्रेसी दिग्गज सुरेंद्र प्रकाश गोयल व पूर्व विधायक केके शर्मा भी प्रबल दावेदारों में थे।
सूत्रों की मानें तो निकाय चुनाव के प्रदर्शन के अलावा प्रियंका गांधी की पार्टी में बढ़ती सक्रियता और बतौर महिला दावेदारी का लाभ गाजियाबाद लोकसभा के टिकट की धुरी बना। आधी रात के इस फैसले से सबसे ज्यादा बेचैनी सपा और बसपा के खेमे में हैं। पांच दिन पहले ही समाजवादी पार्टी ने अपने जिलाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार उर्फ मुन्नी शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेस की ब्राह्मण चेहरे की तलाश को झटका दिया था। ऐसे में संभावना जताई जा रही थी कि अब कांग्रेस ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने से कतराएगी। लेकिन, कांग्रेस के नहले पर दहले ने राजनीतिक नक्शा ही बदल दिया।
कांग्रेस की इस चाल से सबसे ज्यादा नुकसान सपा-बसपा को होगा। बहुलता वाले ब्राह्मण मत बंटने तय हैं। साथ ही सपा और कांग्रेस दोनों की ओर रुझान रखने वाले मुस्लिम मतदाता भी असमंजस में पड़ते दिखेंगे। मैदान में अपने समाज से कोई भी प्रत्याशी नहीं होने पर वैश्य वर्ग का झुकाव स्वभावत: भाजपा की ओर रहेगा। एक बार फिर सियासी हल्कों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। चर्चा यहां तक है कि टिकट नहीं मिलने से मायूस कुछ कांग्रेसी दिग्गजों ने सपा हाईकमान से संपर्क साधा है। वहीं बसपा के कुछ पुराने धुरंधर भी गठबंधन के सिरमौरों को बदले समीकरणों का नफा-नुकसान समझा फैसले पर पुनर्विचार की दुहाई दे रहे हैं। इनमें वैश्य वर्ग के कई दावेदार हैं।
यहां तक कि सपा प्रत्याशी के विरोध और इस्तीफे को भी मुद्दा बनाया रहा है। हालांकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पहले भी सुरेंद्र कुमार मुन्नी के साथ ऐसा हो चुका है कि सपा से टिकट देकर उनसे वापस ले लिया गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुरेंद्र कुमार मुन्नी ने टिकट नहीं होता देख कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थामा था। सपा ने उन्हें मुरादनगर से प्रत्याशी भी घोषित किया, लेकिन एनवक्त पर सीट उस वक्त गठबंधन की साथी रही कांग्रेस को सौंप दी। बहरहाल, कांग्रेस ने डोली शर्मा को टिकट देकर चुनावी रंग चटख करने के साथ ही सपा-बसपा के लिए राह थोड़ी कठिन जरूर कर दी है।
महिलाओं को टिकट देने में कांग्रेस अव्वल
गाजियाबाद लोकसभा सीट पर महिलाओं को टिकट देने में अभी तक कांग्रेस सबसे आगे रही है। गाजियाबाद से एकमात्र महिला सांसद रहीं कमला चौधरी भी कांग्रेस के ¨सबल पर जीती थीं। अगली बार वर्ष 1967 में दोबारा कांग्रेस ने कमला चौधरी पर विश्वास जताया। इसके बाद 1996 के चुनाव में भी कांग्रेस ने ही रीटा ¨सह को टिकट देकर मैदान में उतारा। इसके अलावा किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने महिला उम्मीदवार पर विश्वास नहीं जताया। गत लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जरूर गाजियाबाद से शाजिया इल्मी को टिकट दिया। इस बार फिर कांग्रेस ने डोली शर्मा को टिकट देकर इस मामले में बढ़त बरकरार रखी है।