अयोग्य 20 AAP विधायकों पर पहली बार बोले EC के नए मुखिया, जानें क्या कहा
EC चीफ ओपी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग ऐसे मुद्दों पर निर्णय लेता है, तो काफी सोच-विचार करता है। इसमें कोई कमी नहीं होती है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लगने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) के 20 विधायक अयोग्य हो चुके हैं। हालांकि, इस निर्णय के खिलाफ AAP ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है, जिस पर बुधवार को सुनवाई होगी। वहीं, मंगलवार को चुनाव आयोग के नवनियुक्त मुखिया ओपी रावत ने पहली बार अपना पक्ष रखा है। उन्होंने बेहद संतुलित भाषा में अपनी बात रखी और सीधे-सीथे बोलने से परहेज किया।
एएनआइ से बातचीत में ओपी रावत ने कहा कि फिलहाल यह मामला कोर्ट में है, ऐसे में इस पर प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं है। वहीं, उन्होंने कहा कि जब भी चुनाव आयोग ऐसे मुद्दों पर निर्णय लेता है, तो काफी सोच-विचार करता है। इसमें कोई कमी नहीं होती है।
इससे पहले रविवार को AAP को तब बड़ा झटका लगा, जब राष्ट्रपति ने 20 AAP विधायकों की सदस्यता रद करने के चुनाव आयोग के फैसले पर मुहर लगा दी थी। इसके बाद कानून मंत्रालय ने भी इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है।
ये सभी विधायक 13 मार्च, 2015 से 8 सितंबर, 2016 तक संसदीय सचिव पद पर थे, जिसे ‘लाभ का पद’ माना गया है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आप सरकार भले ही अभी गिरेगी नहीं, मगर उसके लिए यह अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक झटका है।
AAP ने पूरा दोष चुनाव आयोग पर मढ़ते हुए इसे राजनीतिक साजिश करार दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता आशुतोष ने इस फैसले को ‘असंवैधानिक तथा लोकतंत्र के लिए खतरा’ बताया। वहीं, आप के दिल्ली संयोजक गोपाल राय ने कहा कि राष्ट्रपति से न्याय की उम्मीद थी।
पार्टी ने उनसे मुलाकात का समय भी मांगा था, लेकिन राष्ट्रपति के सामने हमें अपनी बात रखने का मौका ही नहीं दिया गया। वहीं भाजपा और कांग्रेस ने इस फैसले को सही ठहराया है। चुनाव आयोग ने जून 2016 में इन विधायकों के खिलाफ आई शिकायत को सही ठहराते हुए शुक्रवार को सदस्यता रद करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की थी।
AAP ने विधायकों के वेतन या सुविधा नहीं लेने का हवाला देते हुए लाभ का पद होने से इन्कार किया था। लेकिन, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जया बच्चन केस का हवाला देते हुए आप के तर्कों को खारिज कर दिया। आयोग ने कहा कि संसदीय सचिव के तौर पर विधायकों ने वेतन या सुविधाएं ली हैं या नहीं यह अप्रासंगिक है।
अहम बात यह है कि कोई पद लाभ के दायरे में आता है, तो फिर कानून के मुताबिक सदस्यता जाएगी। चुनाव आयोग द्वारा अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति के पास भेजे जाने के तुरंत बाद शुक्रवार को ही इन विधायकों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मगर वहां से भी उन्हें फौरी राहत नहीं मिली। अब मंगलवार को मामले की सुनवाई होनी है।
इससे पहले रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर काम में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया। केजरीवाल ने कहा कि 20 विधायकों के खिलाफ झूठे मामले गढ़े गए। मेरे ऊपर भी रेड कराए गए, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला।
उन्होंने कहा कि मिला तो सिर्फ चार मफलर। सबकुछ आजमाया और अंत में 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करा दिया। जब हमारे 67 विधायक जीते तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, पूरी दुनिया यह भी जानती है कि ये 20 विधायक क्यों अयोग्य हुए। ऊपर वाले ने 67 सीट कुछ सोच कर ही दी थी।
जानें क्या है पूरा मामला
तकरीबन दो साल पहले 13 मार्च, 2015 को दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक आदेश पारित कर आपने 21 विधायकों को सचिव बनाया था। वकील प्रशांत पटेल ने इनकी अयोग्यता को लेकर राष्ट्रपति के पास चुनौती दी थी, दिल्ली सरकार ने इसे रोकने के लिए 2015 में असेंबली में एक विधेयक पारित किया।
मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली (रिमूवल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन) (अमेंडमेंट बिल) के नाम से इस बिल में तत्काल प्रभाव से लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर कर दिया गया। हालांकि राष्ट्रपति ने इस अमेंडमेंट बिल को रोक लिया और आगे की कार्रवाई के लिए मामले को चुनाव आयोग को सौंप दिया था। आखिरकार 21 जनवरी को इस पर राष्ट्रपति ने फैसला देते हुए आयोग के फैसले पर मुहर लगा दी।