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AAP-कांग्रेस में गठबंधन हुआ तो दिल्ली में भाजपा की राह होगी मुश्किल

AAP-कांग्रेस के बीच गठबंधन होने पर दोनों में से किसे फायदा होगा, किसे नुकसान, यह तो पता नहीं, लेकिन भाजपा के लिए दिल्ली का सियासी सफर और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।

By Edited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 10:37 PM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2018 08:20 AM (IST)
AAP-कांग्रेस में गठबंधन हुआ तो दिल्ली में भाजपा की राह होगी मुश्किल
AAP-कांग्रेस में गठबंधन हुआ तो दिल्ली में भाजपा की राह होगी मुश्किल

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। चुनावी गठबंधन की राह पर बढ़ रही दिल्ली की राजनीतिक सूरत भी बदल जाएगी। दिल्ली के इतिहास में ऐसा कोई गठबंधन पहले कभी नहीं हुआ है। यही नहीं, आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने पर दोनों में से किसे फायदा होगा, किसे नुकसान, यह तो पता नहीं, लेकिन भाजपा के लिए दिल्ली का सियासी सफर और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।

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लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर इस गठबंधन की चर्चाएं तो काफी लंबे समय से चल रही थीं, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन के बार बार इनकार के बाद इन पर कुछ समय के लिए विराम लग गया था। गत 30 नवंबर को दिल्ली में हुई किसान रैली से इन चर्चाओं को फिर से हवा मिल गई।

दरअसल, इस रैली में पहली बार राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने न सिर्फ मंच साझा किया, बल्कि हाथ उठाकर विपक्षी एकजुटता का परिचय भी दिया। इससे पूर्व ऐसा ही नजारा कर्नाटक में गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण में भी दिखा था, लेकिन तब मंच साझा करते हुए भी राहुल और केजरीवाल अलग थलग से थे।

यहां तक कि किसी फोटो तक में साथ न थे। बीते दिनों रामलीला मैदान में पेट्रोल डीजल की दरों में वृद्धि हुए धरने में भी राहुल के साथ आप सांसद संजय सिंह ने तो मंच साझा किया, लेकिन केजरीवाल ने दूरी ही बनाए रखी थी। किसान रैली के दौरान पहली बार केजरीवाल और राहुल एक दूसरे के करीब नजर आए। दोनों के बीच अनौपचारिक शिष्टाचार भेंट भी हुई।

केजरीवाल ने राहुल से हालचाल पूछा, जिस पर राहुल ने भी उन्हें मुस्करा कर जवाब दिया। बाद में समूह फोटो के दौरान अन्य नेताओं के साथ इन दोनों ने भी एकजुट रहने का संकेत दिया।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आप व कांग्रेस दोनों का लक्ष्य भाजपा को हराना है। दिल्ली में दोनों का वोट बैंक भी कमोबेश एक ही है। अगर दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो आपस में वोट काटेंगे और इसका फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिलेगा।

विचारणीय पहलू यह भी है कि चार दिन पूर्व ही केजरीवाल ने भाजपा को हराने के लिए सभी कदम उठाने का बयान दिया था। उसके बाद शीला दीक्षित का बयान भी गठबंधन की चर्चा को हवा देता प्रतीत होता है।

जानकार बताते हैं कि किसान रैली के मंच पर दिखा नजारा अगर आगे किसी राजनीतिक रिश्ते के रूप में परवान चढ़ा तो यह वाकई दिल्ली की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव होगा।

यही नहीं, तीन और चार सीट के अनुपात में आप और कांग्रेस के संभावित गठबंधन के बाद कांग्रेस के भविष्य का तो खैर पता नहीं, लेकिन भाजपा के लिए अभी खासी दूर चल रही दिल्ली कहीं और दूर न हो जाए।


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